भोपाल। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने छत्तरपुर की बक्सवाहा जंगल में अगले आदेश तक हीरा खनन पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आरवी मलिमथ और जस्टिस विजय शुक्ला की डबल बेंच ने रोक लगाते हुए कहा हाईकोर्ट की अनुमति के बिना बक्सवाहा जंगल में किसी भी प्रकार की खनन संबंधी कार्रवाई नहीं की जाए। हाईकोर्ट ने पुरातत्व विभाग सहित केन्द्र एवं राज्य सरकार को पूरे मामले में नोटिस जारी कर 8 नवंबर तक जवाब पेश करने के निर्देश भी दिए।
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के अध्यक्ष पीजी नाजपांडे की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि पुरातत्व विभाग को बक्सवाहा के जंगल में 25 हजार वर्ष पुरानी पाषाण युग की रॉक पेटिंग मिली है। इसके साथ ही चंदेल और कल्चुरी युग की मूर्तियां और स्तम्भ मिले है। यदि बक्सवाहा के जंगल में हीरा खनन की अनुमति दी गई कि पुरातात्विक महत्व की संपदा नष्ट हो सकती है।
बक्सवाहा चर्चा में क्यों?- मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में छतरपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा बक्सवाहा अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है लेकिन अब बक्सवाहा के सुर्खियों में रहने की वजह है यहां पर देश के सबसे बड़ा हीरा भंडार का पाया जाना। बकस्वाहा के जंगल की जमीन में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान है, और इन्हें निकालने के लिए 382.131 हेक्टेयर पर फैले जंगल की बलि लिए जाने की तैयारी हो रही है। वन विभाग ने बक्सवाहा के जंगल के पेड़ों की जो गिनती की है उनमें 2 लाख 15 हजार 875 पेड़ बताए गए। इनमें लगभग 40 हजार पेड़ सागौन के हैं,इसके अलावा केम,पीपल, तेंदू,जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं।
बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस स्थान का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की, जिसमें आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। प्रदेश सरकार यह जमीन इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दे रही है। इस जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया है। चिह्नित क्षेत्र पर ही खदान बनाई जाएगी लेकिन कंपनी ने कुल 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है, जिसमें बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जाएगा।
हीरे निकालने के लिए बकस्वाहा के जंगल से केवल सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही 2.15 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि वास्तविकता में यह संख्या और भी अधिक है, कारण वन विभाग ने गिनती में केवल पेड़ों को ही लिया है। पेड़ों के काटने के साथ इस इलाके की 383 हेक्टेयर वन भूमि बंजर हो जाएगी। पहले से ही पानी की समस्या से जूझ रहा बुंदेलखंड में इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों के काटने को मानव त्रासदी ही कहा जाएगा। हीरे निकालने के लिए जंगल के बीच से गुजरने वाली एक छोटी सी नदी को डायवर्ट कर बांध बनाया जाना भी प्रस्तावित है, जो प्राकृतिक पर्यावरण के लिए खतरा है।