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किशोर कुमार हाईस्कूल परीक्षा में तृतीय श्रेणी में हुए थे पास

Webdunia
शुक्रवार, 3 अगस्त 2018 (23:43 IST)
इंदौर। हिन्दुस्तानी फिल्म जगत के हरफनमौला कलाकार किशोर कुमार का मन लड़कपन से ही पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा गीत-संगीत में रमता था। उनकी हाईस्कूल परीक्षा की मार्कशीट इस बात की गवाही देती है जिसमें उन्हें 6 विषयों में कुल 800 में से 326 अंक मिले थे और वे तृतीय श्रेणी में पास हुए थे। इस मार्कशीट की प्रति को इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर स्वरूप बाजपेयी ने किशोर की यादों के साथ करीने से संजोकर रखा है।
 
 
उन्होंने किशोर कुमार की 89वीं जयंती की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को बताया कि किशोर की अंकसूची की यह प्रति हमारे कॉलेज की दशकों पुरानी फाइलों में दबी पड़ी थी जिस पर धूल की मोटी परत चढ़ गई थी। हमने आखिरकार इस ढूंढ निकाला, क्योंकि यह दस्तावेज एक महान कलाकार के विद्यार्थी जीवन के अहम पड़ाव से जुड़ा है।
 
बाजपेयी ने बताया कि खंडवा के मूल निवासी किशोर कुमार जब वर्ष 1946 में मैट्रिक पास कर इंटरमीडिएट में पहुंचे तो उनके पिता कुंजलाल गांगुली ने उनका दाखिला इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में करा दिया था। तत्कालीन ब्रितानी राज के मध्य प्रांत एवं बरार के नागपुर स्थित हाईस्कूल शिक्षा बोर्ड की वर्ष 1946 में आयोजित परीक्षा किशोर कुमार ने हिन्दी माध्यम से दी थी और इसमें उनका रोल नंबर था- 4197।
 
हाईस्कूल शिक्षा बोर्ड की 2 जुलाई 1946 को जारी अंकसूची बताती है कि किशोर कुमार को अंग्रेजी और इसके साथ पढ़ाए जाने वाले एक अन्य विषय में 175 में से 69 अंक, सामान्य ज्ञान में 25 में से 9 अंक, रसायन शास्त्र एवं भौतिकी (सैद्धांतिक) में 150 में से 64 अंक, भूगोल एवं प्रारंभिक इतिहास में 150 में से 64 अंक, हिन्दी में 150 में से 67 अंक और ड्राइंग में 150 में से 53 अंक प्राप्त मिले थे।
 
बाजपेयी ने हालांकि किशोर को खुद नहीं पढ़ाया है, लेकिन क्रिश्चियन कॉलेज में इतिहास के वरिष्ठ प्रोफेसर के पास अपने संस्थान के इस पूर्व छात्र के प्रचलित किस्सों की लंबी फेहरिस्त है, जो बाद में भारतीय फिल्म जगत का बड़ा सितारा बना। वे इन्हीं किस्सों के हवाले से कहते हैं कि ऐसा लगता है कि कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही किशोर ने तय कर लिया था कि उन्हें जीवन में क्या करना है।
 
उन्होंने बताया कि एक बार नागरिक शास्त्र के पीरियड में किशोर अपनी कक्षा में टेबल को तबले की तरह बजा रहे थे। तत्कालीन प्रोफेसर जयदेवप्रसाद दुबे ने उन्हें फटकार लगाते हुए हिदायत दी कि वे पढ़ाई पर ध्यान दें, क्योंकि गाना-बजाना उन्हें जिंदगी में बिलकुल काम नहीं आएगा। इस पर किशोर ने अपने अध्यापक को मुस्कुराते हुए जवाब दिया था कि इसी गाने-बजाने से उनके जीवन का गुजारा होगा। बाजपेयी ने बताया कि साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ी महाविद्यालयीन संस्था बज्म-ए-अदब की कार्यकारिणी में भी किशोर शामिल थे।
 
क्रिश्चियन कॉलेज परिसर के खेल के मैदान में आज भी मौजूद इमली का पेड़ नौजवान किशोर की अल्हड़ सुर लहरियों का गवाह है। किशोर लैक्चर से भागकर इस पेड़ के नीचे यार-दोस्तों की मंडली जमाने के लिए प्रोफेसरों के बीच कुख्यात थे।
 
बाजपेयी ने बताया कि किशोर कुमार इमली के पेड़ के नीचे 'यॉडलिंग' (गायन की एक विदेशी शैली) का अभ्यास भी करते थे। उन्होंने खासकर पुरानी हिन्दी फिल्मों के गीतों में इस शैली का कई बार खूबसूरती से इस्तेमाल किया और श्रोताओं को गायकी की अपनी इस खास अदा का दीवाना बनाया।
 
किशोर कुमार अपने छोटे भाई अनूप कुमार के साथ क्रिश्चियन कॉलेज के पुराने हॉस्टल की पहली मंजिल के एक कमरे में रहते थे। मौसम की मार सहने और संरक्षण के अभाव में करीब 100 साल पुराना होस्टल अब खंडहर में बदल गया है। ऐसा कहा जाता है कि हॉस्टल के उनके कमरे में किताबें कम और तबला, हारमोनियम तथा ढोलक जैसे वाद्य यंत्र ज्यादा रहते थे।
 
बाजपेयी ने बताया कि किशोर कुमार वर्ष 1948 में महाविद्यालयीन पढ़ाई अधूरी छोड़कर इंदौर से मुंबई चले गए थे लेकिन क्रिश्चियन कॉलेज के कैंटीन वाले के उन पर 5 रुपए और 12 आने (उस समय प्रचलित मुद्रा) उधार रह गए थे। माना जाता है कि यह बात किशोर कुमार को याद रह गई थी और उधारी की इसी रकम से 'प्रेरित' होकर फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' (1958) के मशहूर गीत 'पांच रुपैया बारह आना...' का मुखड़ा लिखा गया था। इस गीत को खुद किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने आवाज दी थी। 
 
4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश (तब मध्य प्रांत एवं बरार) के खंडवा में पैदा हुए किशोर का वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। उनका निधन 13 अक्टूबर 1987 को मुंबई में हुआ था। (भाषा)

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