भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले 15 दिनों से जारी सियासी दांवपेंच की लड़ाई अब धीरे धीरे राज्यपाल और सरकार के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष के अधिकारों के टकराव पर पहुंचती दिख रही है। राज्यपाल लालजी टंडन ने कमलनाथ सरकार को अल्पमत की सरकार बताते हुए बजट सत्र के पहले दिन अपने अभिभाषण के तुरंत बाद फ्लोर टेस्ट कराने का जो निर्देश दिए था उसको अब एक तरह से सरकार ने मानने से इंकार कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने अपने विधायकों के बंगलुरू में बंधक होने का हवाला देते हुए फ्लोर टेस्ट के औचित्य पर ही सवाल उठा दिए है। देर रात राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात करने के बाद बाहर निकले मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुमत परीक्षण कब होगा यह स्पीकर तय करेंगे जो काम स्पीकर का वो करेंगे जो काम मेरा है वो मैं करूंगा।
विधानसभा के बजट सत्र को लेकर पहले दिन सदन की कार्यवाही की जो कार्यसूची जारी हुई है उसमें केवल राज्यपाल के अभिभाषण का उल्लेख है उसमें विश्वासमत का कोई उल्लेख नहीं है। ऐसे में इस बात के साफ संकेत है कि सत्ता संघर्ष की यह लड़ाई अब धीमे धीमे संवैधानिक टकराव की ओर भी बढ़ती दिख रही है।
वेबदुनिया से बातचीत में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं सदन की कार्यवाही चलाने के लिए स्पीकर पूरी तरह से स्वतंत्र है। वह कहते हैं कि सदन (विधानसभा) राज्यपाल के निर्णय को मानती है या नहीं यह पूरी तरह से उसपर निर्भर होगा। वह कहते हैं संविधान के मुताबिक राज्यपाल किसी भी विषय पर संदेश भेज सकते है और सदन (विधानसभा) को उनके संदेश पर तुरंत विचार करना चाहिए।
वह कहते हैं कि राज्यपाल के संदेश पर विचार करने के लिए सदन बाध्य है लेकिन वह क्या निर्णय लेता है यह पूरी तरह सदन के ऊपर है। वह कहते हैं कि यह पूरी तरह सदन पर निर्भर है कि वह राज्यपाल के संदेश को मानती है या नहीं मानती है।
वह कहते हैं कि अगर राज्यपाल और सरकार में टकराव के हालात बनते है तो इसमें कोई भी पक्ष सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। वह कहते हैं कि कार्यकारी और विधायी सभी निर्णय में ज्यूडिशियल रिव्यू के अंतर्गत आते है और यह पूरी तरह सुप्रीमकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में है कि वह इस पर क्या निर्णय देती है।