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धर्म से सहारे राजनीति चमकाने वालों को नितिन गडकरी ने दिखाया आईना, इशारों ही इशारों में कहीं बड़ी बात

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विकास सिंह

, सोमवार, 1 सितम्बर 2025 (16:16 IST)
अपनी साफगोई के लिए पहचाने जाने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार फिर नेताओं को आईना दिखाया है। महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने धार्मिक कार्यों से नेताओं और मंत्रियों को दूर रखने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि धर्म व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है जबकि कुछ राजनीतिज्ञ इसका इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म की आड़ में राजनीति समाज के लिए नुकसानदायक है। राजनीतिज्ञ जहां घुसते हैं वहां आग लगाए बिना नहीं रहते हैं, अगर सत्ता के हाथ में धर्म को देंगे तो नुकसान ही होगा।

इसके साथ नितिन गडकरी ने कहा कि जो लोगों को सबसे अच्छा मूर्ख बना सकता है वही सबसे अच्छा नेता हो सकता है। साथ ही यह भी जोड़ा कि वह जिस क्षेत्र में काम करते है वहां सच बोलने की मनाही है लेकिन वह अपने मन और अनुभव की बात कर रहे है।

धर्म और राजनीति को लेकर नितिन गडकरी का यह बयान अब काफी सुर्खियों में है। गडकरी का यह बयान ऐसे समय है जब धर्म और राजनीति का दौर अपने पूरे उफान पर है। भाजपा के कई सीनियर नेता अक्सर धार्मिक मंचों पर नजर आते है, इसके साथ ही धर्म गुरुओं के दरबार में राजनेताओं को पहुंचना आम बात है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदुत्त्व का झंडा बुलंद करने वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री के दरबार में हाजिरी लगा चुके है। वहीं चुनाव के दौरान वोटरों को ध्रुवीकरण में धर्मगुरु अपनी बड़ी भूमिका निभाते है।

दरअसल देश सियासी इतिहास में 90 के दशक से राजनीतिक सत्ता पर धर्मिक सत्ता के हावी होने का जो प्रभाव देखा गया था वह आज अपने चरम काल पर है। चुनाव में धर्म के सहारे राजनीतिक दल वोटरों के ध्रुवीकरण कर सत्ता पर काबिज होने की पूरी कोशिश करते नजर आते है। यहीं कारण है कि चुनाव से पहले कथाओं और अनुष्ठानों पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए जाते है।

भारत के इतिहास में धर्म और राजनीति दोनों सदियों से व्यक्ति और समाज पर गहरा प्रभाव डालते आए है। आजादी के बाद के अगर इतिहास के पन्नों को पलटे तो साफ पता चलता है कि धार्मिक केंद्र राजनीतिक सत्ता के केंद्रों के तौर पर कार्य करते आए है। वहीं आज जहां एक ओर देश में एक ओर दक्षिण से लेकर उत्तर के कई राज्यों में मठ-मंदिर सत्ता के शक्तिशाली केंद्र के रूप में नजर आते है तो दूसरी ओर इनके पीठाधीश्वर को राजनीति में खूब पंसद आ रही है।   

अगर देखा जाए तो धर्म में राजनीति की गुंजाइश नहीं होती है लेकिन आज के दौर में जिस तरह से धार्मिक मंचों का उपयोग राजनीतिक दल के नेता अपनी सियासत चमकाने के लिए कर रहे है वह किसी से छिपा नहीं है। दरअसल धर्मिक मंचों से राजनीति कर नेता सीधे तौर पर वोटरों को प्रभावित कर रहे है और धर्म के सहारे सत्ता को हासिल करने के साथ सत्ता अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाह रहे है। ऐसे में आज जब धर्म और राजनीति दोनों में गिरावट का संक्रमण काल चल रहा है, तब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकारी ने एक बार फिर अपने बयान से राजनेताओं और धर्मगुरुओं दोनों को आईना दिखाने का काम किया है।

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