बरखा की बूंद-बूंद को धरती की गोद में सहेजने की तैयारी

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जल ही जीवन है। जल है तो कल है और पानी बचाने के तमाम नारों और दावों के बीच एक अनोखी पहल इंदौर के समीप ग्राम सनावदिया में की गई। समाज सेविका पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने जिम्मी मगिलिगन सेंटर, सनावदिया में वर्षा जल संरक्षण प्रक्रिया का विधिवत प्रत्यक्ष प्रशिक्षण प्रदान किया। पानी बचाने की यह प्राकृतिक तकनीक अपनाने की सलाह हर कोई देता है लेकिन यह कोई नहीं बताता कि इसे किया कैसे जाए। 
 

डॉ. जनक ने ग्राम सनावदिया और तिल्लौर की युवा शक्ति को साथ लेकर मानसून से पूर्व बरखा के जल की बूंद-बूंद बचाने की कोशिश आरंभ कर दी  है। 23 मई 2016 को सपन्न विशेष जल कार्यशाला में ग्रामवासियों को बारिश की बूंद-बूंद सहेजने का निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया गया और वॉटर हॉर्वेस्टिंग की समूची प्रक्रिया को प्रत्यक्ष दिखाया और समझाया गया साथ ही उनकी समस्त जिज्ञासाओं को भी शांत किया गया। 
 
सभी ने इस प्रशिक्षण में जल की हर अमृत बूंद को मकान की छ‍त के सहारे जमीन की गोद में सहेजने का शुभ संकल्प लिया। डॉ. जनक ने बताया कि पानी बचाने की सीख और सलाह हर कोई देता है लेकिन यह कैसे किया जाए इसका तरीका और तकनीक कोई नहीं बताता। जबकि यह पहल कार्यरूप में तब ही परिणत हो सकती है जब कागज पर लिखने के बजाय  प्रत्यक्ष कर के दिखाया जाए। हमने इस कार्यशाला में वही किया है। जिम्मी  मगिलिगन सेंटर, सनावदिया पर प्रतिभागी ग्रामवासियों को यह प्रक्रिया प्रत्यक्ष कर के दिखाई गई। 
 
आज जब चारों तरफ से सूखा, जल संकट, फसल सूखने और किसानों के आत्महत्या करने की दर्दनाक खबरें आ रही है ऐसे में प्राकृतिक रूप से जल संरक्षण प्रविधि बहुत बड़ा सहारा बन सकती है। इस कार्यशाला में तकनीकी सहयोगी नरेन्द्र वर्मा ने इस विधि की सभी बारीकियां समझाई। ग्राम सनावदिया और तिल्लौर के 29 उत्साही युवाओं के साथ जिम्मी सेंटर के प्रशिक्षक राजेन्द्र चौहान व नंदा चौहान के साथ भरत पटेल, सरपंच, सनावदिया ने सक्रिय भागीदारी दी। 
 
डॉ. जनक के अनुसार, इस कार्यशाला का मु्ख्य उद्देश्य मानव संसाधन को जल संरक्षण में इतना कुशल बनाना है कि वह इस अपने घर के साथ सामुदायिक विकास और गांव की सुविधा के लिए भी अपना सके और मॉनसून से पूर्व अपना जल -भविष्य सुरक्षित कर सके। यह कार्यशाला अचानक आए जल संकट का समाधान तो है ही साथ ही सतत् सामुदायिक विकास की दिशा में भी मिल का पत्थर साबित हो सकती है। यह अत्यंत सरल और न्यूनतम व्यय पर होने वाली तकनीक है जो कृषि भूमि की गुणवत्ता बढ़ाने में भी अत्यंत उपयोगी है।

इसतरह के जल संरक्षण, संवर्धन और एकत्रीकरण के कई सामाजिक फायदे हैं। जैसे पानी जुटाने के लिए ग्रामीण महिलाओं को दूर-दूर तक जाना पड़ता है, इससे बचा जा सकता है। स्थानीय स्तर पर संरक्षित जल की व्यवस्था स्थानीय समुदाय की ही होने से उनकी बाहरी स्त्रोतों पर निर्भरता कम होगी और वे अपनी आवश्यकतानुसार जल अपने ही प्रयासों से अपने पास ही प्राप्त कर सकेंगे। 
 
यह कार्यशाला जल संबंधी जागरूकता लाने में विशेष मददगार है। इसके माध्यम से प्रतिभागियों ने जाना कि कैसे संरक्षित जल भूमि में निहित जल को और अधिक सक्रिय कर सकता है,उसे बढ़ा सकता है। अत: यह तकनीक बोरवेल और कुओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। 
 
डॉ. जनक ने बताया कि जिम्मी सेंटर पर कैसे 6 फिट चौड़े 5 फिट गहरे गड्ढे को बोरवेल से 4 फिट की दूरी पर बनाया गया। इसमें पीवीसी के 280 फिट लंबे पाइप इस कुशलता से बिछाए गए कि छत का एकत्र पानी जमीन की गहराई तक निर्बाध रूप से पहुंच सके। बरखा जल सरंक्षण की इस तकनीक में इसकी चरणबद्ध रूप से की गई भराव प्रक्रिया सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।  इंट के टुकड़े, बड़े पत्थर, छोटे पत्थर की टुकडियां, कंकड़ और बालुु रेत को निश्चित अंतराल पर डाला जाता है। तब जाकर पानी की छनन और एकत्रीकरण की प्रविधि सुचारू रूप से संपन्न होती है इसलिए सभी प्रतिभागियों को आवश्यक तकनीकी सावधानियां लिखवाई भी गई। कार्यशाला में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि कैसे इस तकनीक से कुएं और बोरवेल केे पानी की आवक को और अधिक बढ़ाया जा सकता है।  
 
गौरतलब है कि ग्राम सनावदिया और तिल्लौर के अलावा इंजीनियरिंग के छात्रों ने भी इसमें उत्साह से भाग लिया। इनमें प्रमुख रूप से आनंद बड़जात्या-जीएसआईटीएस इंदौर,वॉटर हॉर्वेस्टिंग कंसल्टेंट डॉ. समरेन्द्र पांडे, सुकृति गुप्ता-आर्किटेक्ट, भोपाल, रूद्राक्ष गुप्ता-आईआईटी-दिल्ली और स्वयंसेवी सुश्री अल्पा चौहान के नाम उल्लेखनीय हैं। 
 
पर्यावरण सुरक्षा और सामुदायिक सेवा के पवित्र भाव के साथ सभी ने इस कार्यशाला में बरखा के जल की हर बूंद को बचाने का शुभ संकल्प लिया।  
 
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