मध्यप्रदेश के स्कूलों में स्टूडेंट्स पढ़ेंगे ‘हैप्पीनेस’ का पाठ, नए सत्र से लागू करने की तैयारी

विकास सिंह
बुधवार, 23 फ़रवरी 2022 (15:43 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में स्कूली बच्चों में लगातार बढ़ते डिप्रेशन के केस और सुसाइड के बढ़ते मामलों के बाद अब सरकार स्कूली बच्चों को ‘हैप्पीनेस’ का पाठ पढ़ाने की तैयारी कर रही है। राज्य सरकार नए शैक्षणिक सत्र से माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्कूलों की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में ‘‘हैप्पीनेस’’ को एक विषय के रुप में शामिल करने पर विचार कर रही है। प्रदेश में नौवीं से 12वीं तक के सभी विषयों के विद्यार्थियों के लिए यह विषय अनिवार्य होगा।
 
मध्यप्रदेश आनंद विभाग के सीईओ अखिलेश अर्गल के मुताबिक कक्षा 9 से 12 तक के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में हैप्पीनेस को शामिल करने का मसौदा लगभग तैयार हो गया है। अब पुस्तकों को अंतिम रुप देने के बाद उन्हें मंजूरी के लिए राज्य शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) के पास भेजा जाएगा। वह कहते हैं कि मध्यप्रदेश संभवत: देश का पहला ऐसा राज्य होगा जहां इस विषय को स्कूलों में पढ़ाया जाएगा।
 
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर पिछले कई सालों से मुहिम चला रहे मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी स्कूली पाठ्यक्रम में ‘हैप्पीनेस’ से जुड़े पाठ्यक्रम को शामिल करने की तैयारी को सरकार की एक अच्छी पहल बताते है। वह कहते है कि कोरोना काल का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है। कोरोना के चलते स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने और ऑनलाइन क्लास के चलते बच्चे एक अलग तरह के दबाव का अनुभव कर रहे थे। 
डॉक्टर सत्यकांत आगे कहते हैं कि अब जब स्कूल खुल भी गए तब यह समस्या और बढ़ी नजर आ रही है। इसका बड़ा कारण स्कूलों में होने वाली पढ़ाई का प्रभावित होना है। दो साल से बच्चे अगली क्लास में प्रमोट तो हो गए लेकिन उनके कॉन्सेप्ट नहीं क्लियर होने के के कारण वह दबाव का अनुभव कर रहे है। डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कोरोना से पहले जहां 10 में से 3 स्टूडेंट मानसिक दबाव का अनुभव करते थे तो वहीं अब 10 में से 7 स्टूडेंट्स को इसकी जरूरत पड़ रही है। 

डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि स्कूलों के सिलेबस में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धी अध्याय जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा, जीवन प्रबंधन, साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड को शामिल किया जाए। जिसमें हमारी नयी पीढ़ी बचपन से ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बन सकें और जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना बखूबी कर सकें और मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता के साथ कलंक का भाव भी न रहे.शिक्षकों को भी मानसिक रोगों के प्रति जानकारी होना आवश्यक है।

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