कुंती एक अद्भुत महिला थीं। पति की मृत्यु के बाद कैसे उन्होंने अपने पुत्रों को हस्तिनापुर में दालिख करवाकर गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा दिलवाई और अंत में उन्हें राज्य का अधिकार दिलवाने के लिए प्रेरित किया यह सब जानना अद्भुत है। आओ जानते हैं कुंती के 6 ऐसा निर्णय जिनके कारण पांडवों को मिला राज्य और बदल गई महाभारत की तस्वीर।
1. श्रीकृष्ण और ऋषियों से किया रिश्ता मजबूत : कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। कुंती ने हर समय श्रीकृष्ण को अपने जीवन से जोड़े रखा। इसके साथ ही कुंती ने हमेशा ऋषि मुनियों की सेवा की जिसके चलते ऋषि मुनियों ने भी उसका हर कदम पर साथ दिया। ऋषि दुर्वासा ने उन्हें देव आह्वान मंत्र शक्ति दी थी तो हस्तिनापुर के ऋषियों और विद्वानों ने उनका साथ दिया था।
2. देव आह्वान मंत्र से पुत्र जन्म का लिया निर्णय : कुंती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पांडु से हुआ था। पांडु को दो पत्नियां कुंती और माद्री थीं। एक शाप के चलते वे पुत्र के प्रयास नहीं कर सकते थे। पांडु ने कुंती से निगोद प्रथा को अपनाने को कहा लेकिन पहले कुंती इससे इनकार करके वह अपने वरदान के बारे में बताती है। तब पांडु की अनुमति से कुंती धर्मराज का आह्वान करती है। इससे उन्हें युधिष्ठिर का जन्म होता है। फिर क्रम से वह इंद्र से अर्जुन और पवनदेव से भीम को प्राप्त करती है। अंत में कुंती माद्री को भी वह मंत्र सिखा देती है जिसे दुर्वासा ने दिया था। तब माद्री दो अश्विन कुमारों का आह्वान करती है जिससे उन्हें नकुल और सहदेव नाम पुत्र की प्राप्ति होती है। विवाह पूर्व कुंती ने मंत्र का ट्रायल किया था जिसके चलते कर्ण का जन्म हुआ था जिसे उसने नदी में बहा दिया था। नदी से अधिरथ नाम के एक रथी ने उस पाला रथी की पत्नी का नाम था राथा। इसीलिए कर्ण को राधेय भी कहते हैं।
3. हस्तिनापुर में अपने पुत्रों के हक की लड़ाई- अपने पति की और सौत माद्री की मृत्यु के बाद कुंती ने मायके की सुरक्षित जगह पर जाने के बजाय ससुराल की असुरक्षित जगह को चुनने का कठिन निर्णय लिया। पांच पुत्रों के भविष्य और पालन-पोषण के निमित्त उसने हस्तिनापुर का रुख गया, जोकि उसके जीवन का एक बहुत ही कठिन निर्णय और समय था। कुंती ने वहां पहुंचकर अपने पति पांडु के सभी हितेशियों से संपर्क कर उनका समर्थन जुटाया। सभी के सहयोग से कुंती आखिरकार राजमहल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गई। कुंती और समर्थकों के कहने पर धृतराष्ट्र और गांधारी को पांडवों को पांडु का पुत्र मानना पड़ा। राजमहल में कुंती का सामना गांधारी, शकुनी और दुर्योधन से हुआ जिन्होंने उसके समक्ष कई चुनौतियां खड़ी की। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं, तो गांधारी गंधार नरेश की पुत्री और राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी। कुंती और गांधारी में अपने-अपने पुत्रों को राज्य का पूर्ण अधिकार दिलाने की अप्रत्यक्ष जंग शुरू हो गई।
4. हिडिम्बा से विवाह कराने का निर्णय : पांचों पांडव लक्षागृह से बचने के बाद जंगल में रहने लगे। कुंती को भी उनके साथ जंगल में ही रहना पड़ा। वहां रहकर उसने पांचों पांडवों के भोजन पानी की व्यवस्था की। एक रात पांचों पांडव जंगल में सो रहे थे और भीम पहरा दे रहे थे। जिस जंगल में सो रहे थे वह जंगल नरभक्षी राक्षसराज हिडिम्ब का था। उसकी पुत्री का नाम हिडिम्बा था। हिडिम्ब ने हिडिम्बा को जंगल में मानव का शिकार करने के लिए भेजा। हिडिम्ब जब जंगल में गई तो उससे भीम को पहरा देते हुए देखा और बाकी पांडव अपनी माता कुंती के साथ सो रहे थे। भीम को देखकर हिडिम्बा मोहित हो गई। बाद में भीम सहित पांचों पांडवों ने हिडिम्बा से विवाह का निर्णय कुंती पर छोड़ दिया। कुंती ने सोच समझकर भीम को हिडिम्बा से विवाह की अनुमति दे दी। कुंती यदि ऐसा नहीं करती तो विशालकाय घटोत्कच का जन्म नहीं होता और घटोत्कच का चमत्कारिक तथा शक्तिशाली पुत्र बर्बरिक भी नहीं होता।
5. कुंती के कारण द्रौपदी बनी पांचों पांडवों की पत्नी- कुंती ने भी पांडवों के साथ जंगल में 12 साल गुजारे- जब जुए के खेल में पांडव हार गए तो उन्हें 12 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास हुआ। इस दौरान पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली। वे भी उस स्वयंवर प्रतियोगिता में शामिल हुए और उन्होंने द्रौपदी को जीत लिया। द्रौपदी को जीत कर वे जब घर लाए तो कुंती ने बगैर देखे ही कह दिया कि जो भी लाए हो आपस में बांट लो। यह सुनकर पांडवों को बड़ा आश्चर्य लगा। हालांकि इसके पीछे और दूसरी कहानी भी जुड़ी हुई है।
6. कुंती ने लिया जब कर्ण से वचन- श्रीकृष्ण ने युद्ध के एनवक्त पर कर्ण को यह राज बता दिया था कि कुंती तुम्हारी असली मां है। एक बार कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्वासघात नहीं कर सकता।
तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, 'माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।' कुंती के द्वारा यह वचन ले लेने के कारण ही युधिष्ठिर कई बार कर्ण से बच गई। ऐसे भी कई मौके आए जब कि कर्ण युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को मार देता लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया।