युद्ध का अंत हो चुका था और पांडु पुत्र भीम ने धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन का वध कर दिया था। इसको लेकर धृतराष्ट्र के मन में क्रोध और बदले की भावना प्रबल हो उठी थी। अत: मौका पाकर धृतराष्ट्र भीम को मार डालना चाहते थे।
एक बार की बात है जब महाभारत का युद्ध जितने के बाद पांचों पांडव श्रीकृष्ण के साथ हस्तिनापुर महाराज धृतराष्ट्र से मिलने पहुंचे तो भीम के अलावा सबने धृतराष्ट्र को प्रणाम किया तथा उनके गले मिले।
बाद में भीम की बारी आई तो भगवान श्री कृष्ण धृतराष्ट्र की मंशा जान चुके थे। अतः जब भीम धृतराष्ट्र को प्रणाम करके उनके गले मिलने के लिए आगे बढ़ने लगे तो श्रीकृष्ण ने भीम को इशरों से रोक दिया और उनके स्थान पर भीम की लोहे की मूर्ति आगे बढ़ा दी।
धृतराष्ट्र बहुत शक्तिशाली थे उन्होंने लोहे की मूर्ति को भीम समझकर पूरी ताकत से दबोच लिया और उस मूर्ति तोड़ डाला। उनमें क्रोध इतना था कि वे समय नहीं पाए कि यह तो लोहे की मूर्ति है। भीम की मूर्ति तोड़ने से उनके मुंह से भी खून निकलने लगा था।
इसके बाद जब धृतराष्ट्र का क्रोध शांत हुआ तो वे भीम को मृत समझकर रोने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण बोले की भीम तो जीवित है आपने भीम समझ भीम की मूर्ति को तोड़ा है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र से भीम की जान बचाई थी।