Geeta: महाभारत काल में श्री कृष्ण ने क्या सिर्फ अर्जुन को ही गीता का ज्ञान दिया था?

WD Feature Desk
गुरुवार, 14 नवंबर 2024 (17:28 IST)
Geeta: सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण ने महाभारत काल में कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। वर्तमान में गीता हिंदुओं का प्रमुख धर्मग्रंथ है जिसे वेद और उपनिषद का सार तत्व माना जाता है। यह संपूर्ण हिंदू धर्म के तत्व ज्ञान का सार है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन के अलावा भी इस शाश्वत ज्ञान को अन्य लोगों को भी दिया था? आओ जानते हैं कि श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान और किन लोगों को दिया था।
 
1. अनुगीता : कहते हैं कि अनु गीता नाम से एक गीता है। इस गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने तब दिया था जब पांडव युद्ध जीत गए थे। यह गीता भी श्रीकृष्ण द्वार अर्जुन को दिया गया वह ज्ञान है तो युद्ध के बाद दिया गया था। यह ज्ञान उस वक्त दिया गया था जब पांडव हस्तिनापुर में राज कर रहे थे। अनुगीता एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है जो महाभारत का ही एक हिस्सा है। अनुगीता का शाब्दिक अर्थ है गीता का अनु अर्थात गीता के परिशिष्ट के रूप में गीता। यह भगवद्गीता के नैतिक आधार पर आधारित है। कई ऐसे प्रश्न, संदेश और बातें हैं जो गीता में छूट गए थे उसका समावेश अनुगीता में मिलेगा।
 
यह गीता वैशम्पायनजी जनमेजय को बताते हैं। जिन्होंने युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन और श्रीकृष्ण को सुनकर याद किया था। वे महाभारत के कई संवादों और विवादों का उल्लेख करते हैं। इस गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा, बुद्धि, इंद्रियरूप, ध्यान, पंचभूत, ऋषियों के संवाद, इतिहास की बातें आदि बताना। अनुगीता सिर्फ अर्जुन और श्रीकृष्‍ण का संवाद ही नहीं है। इसमें श्रीकृष्‍ण वसुदेव को महाभारत का प्रसंग और घटनाक्रम को बताते हैं। इसके अलावा इस गीता में युद्ध के बाद के कई घटनाक्राम जुड़े हैं जिस दौरान श्रीकृष्‍ण उपदेश देते हैं। इस गीता को पढ़ना भी रोचक है क्योंकि इसमें सिर्फ उपदेश नहीं है और भी बहुत कुछ है।- संदर्भ : महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 51
 
2. उद्धव गीता : उद्धव गीता भागवत पुराण का हिस्सा है। यह ज्ञान श्रीकृष्‍ण अपने सौतेले भाई उद्धव को देते हैं। इसे हंस गीता भी कहा जाता है। इसमें लगभग 1000 से अधिक छंद है। उनके गुरु बृहस्पति ने उन्हें बताया था कि कृष्ण रूप में तुम्हारे छोटे भाई भगवान विष्णु का अवतार हैं। इसलिए यह जानते हुए भी कि श्रीकृष्ण भगवान के पूर्णवातर है फिर भी उन्हें श्रीकृष्‍ण के शारीरिक रूप से उन्हें कोई मोह नहीं था। उनके अंतर में भी कहीं न कहीं ज्ञान का अहंकार छिपा हुआ था और वे निराकर परब्रह्म की उपासना को ही सच्चा मार्ग मानते थे। उनकी दृष्‍टि में ज्ञान ही महत्वपूर्ण था। श्रीकृष्‍ण यह बात जानते थे द्वारका में यादवों के कुल नाश के बाद जब श्रीकृष्ण ने अपने धाम जा रहे थे तो उद्धव ने भी उनके साथ जाने का आग्रह किया। उस समय श्रीकृष्ण ने बताया कि वह वसु नामक देव के अवतार हैं और यह उनका अंतिम जन्म है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने उद्धव को योग मार्ग का उपदेश दिया। यह उपदेश उद्धव गीता या अवधूत गीतार्ध के नाम से प्रसिद्ध है। कृष्ण के इच्छा से उद्धव बदरिकाश्रम चले गए और वहीं तपस्या करते हुए उन्होंने अपनी देह त्याग दी थी।
 
महाभारत में श्रीमद्भागवत गीता के अलावा अनु गीता, हंस गीता, पराशर गीता, बोध्य गीता, विचरव्नु गीता, हारीत गीता, काम गीता, पिंगला गीता, वृत्र गीता, शंपाक गीता, उद्धव गीता, मंकि गीता, व्याध गीता जैसी अनेक गीताएं हैं। इसके अलावा गुरु गीता, अष्ट्रवक गीता, गणेश गीता, अवधूत गीता, गर्भ गीता, परमहंस गीता, कर्म गीता, कपिल गीता, भिक्षु गीता, शंकर गीता, यम गीता, ऐल गीता, गोपीगीता, शिव गीता और प्रणव गीता आदि गीताएं हैं। 

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