रामायण और महाभारत काल में थे महर्षि दुर्वासा ऋषि

अनिरुद्ध जोशी
ब्रह्मा के पुत्र अत्रि ने कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। अनुसूया की माता का नाम देवहूति था। अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा, महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए। इनके ब्रह्मावादिनी नाम की कन्या भी थी। महर्षि अत्रि सतयुग के ब्रह्मा के 10 पुत्रों में से थे तथा उनका आखिरी अस्तित्व चित्रकूट में सीता-अनुसूया संवाद के समय तक अस्तित्व में था। उन्हें सप्तऋषियों में से एक माना जाता है और ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी। 
 
1. महर्षि दुर्वासा के बारे में सभी जानते हैं कि वे कितने क्रोधित ऋषि हैं। रामायण अनुसार महर्षि दुर्वासा राजा दशरथ के भविष्यवक्ता थे। इन्होंने रघुवंश के लिए बहुत भविष्यवाणियां भी की थी। 
 
2. एक कथा के अनुसार इन्द्र ने अंहकारवश वैजयंतीमाला का अपमान किया था, परिणामस्वरूप महालक्ष्मी उनसे रुष्ट हो गईं और उन्हें दर-दर भटकना पड़ा था। देवराज इन्द्र अपने हाथी ऐरावत पर भ्रमण कर रहे थे। मार्ग में उनकी भेंट महर्षि दुर्वासा से हुई। उन्होंने इन्द्र को अपने गले से पुष्पमाला उतारकर भेंटस्वरूप दे दी। इन्द्र ने अभिमानवश उस पुष्पमाला को ऐरावत के गले में डाल दिया और ऐरावत ने उसे गले से उतारकर अपने पैरों तले रौंद डाला। अपने द्वारा दी हुई भेंट का अपमान देखकर महर्षि दुर्वासा को बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन्द्र को लक्ष्मीहीन होने का श्राप दे दिया।
 
3. कुंती का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था। बाल्यावस्था में कुंती ने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। इसी के फलस्वरूप दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र दिया जिससे वह किसी भी देवता का आह्वान कर उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थी। विवाह से पूर्व इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ।
 
4. दूसरी ओर महाभारत में महर्षि दुर्वासा द्रौपदी की परीक्षा लेने के लिए अपने दस हजार शिष्यों के साथ उनकी कुटिया पहुंचे थे। दुर्योधन ने ही उन्हें वहां भेजा था और वह भी ऐसे समय जबकि द्रौपदी समेत सभी पांडव भोजन करने के बाद विश्राम कर रहे थे। युधिष्ठिर के पास उस वक्त सूर्यदेव से प्राप्त एक ऐसा चमत्कारिक अक्षय पात्र था जिसमें से जितना चाहो भोजन प्राप्त कर सकते थे। उस वक्त दुर्वासा ऋषि अपने 10 हजार शिष्यों के साथ भोजन करके बहुत प्रसन्न हुए थे।
 
5. दूसरी घटना में स्नान करते समय महर्षि दुर्वासा का वस्त्र नदी के प्रवाह में प्रवाहित हो गया। कुछ दूरी पर द्रौपदी भी स्नान कर रहीं थीं। उनकी यह स्थिति देखकर द्रौपदी ने तत्काल अपने अंचल का एक टुकड़ा फाड़ कर ऋषि को प्रदान किया। इससे प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने उन्हें वर दिया कि यह वस्त्रखण्ड वृद्धि को प्राप्त कर तुम्हारी लज्जा का निवारण करेगा। 
 
6. श्रीकृष्ण और जामवंती के पुत्र साम्ब ने दुर्वासा मुनि का अपमान किया था जिसके चलते उन्होंने यदुवंश के नाश का श्राप दे दिया था। 
 
7. दुर्वासा मुनि सतयुग, त्रेता एवं द्वापर तीनों युगों में मौजूद थे। पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास और जामवन्त आदि कई ऋषि, मुनि और देवता हुए हैं जिनका जिक्र सभी युगों में पाया जाता है। कहते हैं कि ये आज सशरीर जीवित हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Chaitra Navratri 2024 : चैत्र नवरात्रि इन 3 राशियों के लिए रहेगी बहुत ही खास, मिलेगा मां का आशीर्वाद

Cheti chand festival : चेटी चंड 2024 की तारीख व शुभ मुहूर्त

Hindu nav varsh 2024 : 30 साल बाद दुर्लभ संयोग और राजयोग में होगी हिंदू नववर्ष की शुरुआत

Chaitra Navratri 2024 : चैत्र नवरात्रि में किस पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा, जानें भविष्यफल

Surya grahan 2024: 8 अप्रैल का खग्रास सूर्य ग्रहण किन देशों में नहीं दिखाई देगा?

Surya Grahan Time Live Update: आज कितने बजे लगेगा सूर्य ग्रहण, भूलकर भी न करें ये काम

Hindu nav varsh 2024 : उगादी त्योहार कहां मनाया जाता है?

Aaj Ka Rashifal: 08 अप्रैल को साल का पहला सूर्य ग्रहण, जानें 12 राशियों पर क्या होगा असर

Solar Eclipse 2024: 08 अप्रैल को साल का पहला सूर्य ग्रहण, पढ़ें विशेष सामग्री (एक क्लिक पर)

08 अप्रैल 2024 : आपका जन्मदिन

अगला लेख