महाभारत में राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा जानकर चौंक जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
यह प्रसिद्ध कथा महाभारत में मिलती है। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ। मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।
 
 
इस कथा को पढ़ने के पूर्व निम्नलिखित कथा जरूर पढ़ें : अप्सरा मेनका ने क्यों छोड़ दिया था विश्वामित्र को?
 
एक दिन राजा दुष्यंत ने वन में कण्व ऋषि के आश्रम में शकुंतला को देखा और वे उस पर मोहित हो गए। शकुंतला विश्वामित्र और मेनका की संतान थीं। दोनों ने गंधर्व विवाह किया और वन में ही रहने लगे। शकुंतला के साथ अच्छे दिन बताने के बाद राजा पुन: अपने राज्य जाने लगे और उन्होंने शकुंतला से वापस लौटकर उन्हें ले जाने का वादा किया। वे अपनी निशानी के रूप में अंगुठी देकर चले गए। एक दिन शकुंतला के आश्रम में ऋषि दुर्वासा आए। शकुंतला ने उनका उचित सत्कार नहीं किया तो उन्होंने शाप दे दिया कि जा तु जिसे भी याद कर रही है वह तुझे भूल जाएगा। गर्भवती शकुंतला ने ऋषि से अपने किए की माफी मांगी। ऋषि का दिल पिघल गया। उन्होंने कहा कि कोई निशानी तुम उसे बताओगी तो उसे याद आ जाएगा।
 
शकुंतला राजा से मिलने के लिए निकल गई। रास्ते में वह अंगुठी एक तालाब में गिर गई। जिसे मछली ने निकल लिया। शकुंतला राजभवन पहुंची लेकिन राजा दुष्यंत ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। राजा दुष्यंत द्वार शकुंतला के अपमान के कारण आकाश में बिजली चमकी और शकुंतला की मां मेनका उन्हें ले गयी।
 
उधर वो मछली एक मछुवारे के जाल में आ गयी जिसके पेट से वो अंगूठी निकली। मछुवारे ने वो उस अंगूठी को कीमती समझकर राजा दुष्यंत को भेंट दे दी। राजा दुष्यंत ने जब वह अंगुठी देखी तो उन्हें सबकुछ याद आ गया। महाराज दुष्यंत बहुत पछताए। कुछ समय बाद इंद्रदेव के निमन्त्रण पर देवो के साथ युद्ध करने के लिए राजा दुष्यंत इंद्र नगरी अमरावती गए। युद्ध के बाद वे आकाश मार्ग से वापस लौट रहे थे तभी उन्हें रास्ते में कश्यप ऋषि के आश्रम में एक सुंदर बालक को खेलते देखा। मेनका ने शकुंतला को कश्यप ऋषि के आश्रम में छोड़ा हुआ था। वो बालक शकुंतला का पुत्र ही था। 
 
जब उस बालक को राजा दुष्यंत ने देखा तो उसे देखकर उनके मन में प्रेम उमड़ आया वो जैसे ही उस बालक को गोद में उठाने के लिए खड़े हुए तो शकुंतला की सखियों ने चेताया कि राजन आप इस बालक को छुएंगे तो इसके भुजा में बंधा काला डोरा सांप बनकर आपको डंस लेगा। राजा ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और उस बालक को गोद में उठा लिया। लेकिन बालक को उठाते ही उसकी भुजा में बंधा काला डोरा टूट गया जो उसके पिता की निशानी थी। शकुंतला की सहेली ने सारी बात शकुंतला को बताई तो वो दौड़ती हुई राजा दुष्यंत के पास आयी। राजा दुष्यंत ने ने भी शकुंतला को पहचान लिया और अपने किए की क्षमा मांगी और उन दोनों को अपने राज्य ले गए। महाराज दुष्यंत और शकुंतला ने उस बालक का नाम भरत रखा जो आगर चलकर एक महान प्रतापी सम्राट बना।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Chanakya niti : यदि सफलता चाहिए तो दूसरों से छुपाकर रखें ये 6 बातें

Guru Gochar : बृहस्पति के वृषभ में होने से 3 राशियों को मिलेंगे अशुभ फल, रहें सतर्क

Adi shankaracharya jayanti : क्या आदि शंकराचार्य के कारण भारत में बौद्ध धर्म नहीं पनप पाया?

Lakshmi prapti ke upay: लक्ष्मी प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए, जानिए 5 अचूक उपाय, 5 सावधानियां

Swastik chinh: घर में हल्दी का स्वास्तिक बनाने से मिलते है 11 चमत्कारिक फायदे

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

16 मई 2024 : आपका जन्मदिन

16 मई 2024, गुरुवार के शुभ मुहूर्त

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

seeta navami 2024 : जानकी जयंती पर जानें माता सीता की पवित्र जन्म कथा

अगला लेख