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जनमेजय ने जब किया नागों के नाश का यज्ञ तो बचकर निकल गए थे ये दो सर्प

अनिरुद्ध जोशी
जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे। राजा परीक्षित अभिमन्यु के पुत्र थे। जन्मेजय को जब यह पता चला कि मेरे पिता की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के दंश से हुई तो उन्होंने विश्‍व के सभी सर्पों को मारने के लिए नागदाह यज्ञ करवाया। उन यज्ञों की अग्नि में नागों को पटक दिया जाता था। एक विशिष्ट मंत्र द्वारा नाग स्वयं यज्ञ के पास पहुंच जाते थे। देशभर में नागदाह नामक स्थान मिल जाएंगे। संभवत: नागों के दाह से जुड़ा होने के कारण ही यह नाम होंगे। हालांकि उन्होंने यह यज्ञ कहां किया था यह शोध का विषय है।
 
 
ये सर्प बचकर निकल गए थे? 
कर्कोटक : ऐसी मान्यता है कि सर्पदाह के एक घनघोर यज्ञ की अग्नि से एक कर्कोटक नामक सर्प ने अपनी जान बचाने के लिए उज्जैन में महाकाल राजा की शरण ले ली थी जिसके चलते वह बच गया था। कर्कोटक शिव भक्त भी था। शिवजी की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। हालांकि वर्तमान में कर्कोटेश्वर मंदिर माता हरसिद्धि के प्रांगण में है।
 
 
तक्षक : जब लाखों सर्प यज्ञ की अग्नि में गिरने प्रारंभ हो गए, तब भयभीत तक्षक ने इन्द्र की शरण ली। वह इन्द्रपुरी में रहने लगा। वासुकि की प्रेरणा से एक ब्राह्मण आस्तीक परीक्षित के यज्ञस्थल पर पहुंचा और यजमान तथा ऋत्विजों की स्तुति करने लगा। उधर जब ऋत्विजों ने तक्षक का नाम लेकर आहुति डालनी प्रारंभ की तब मजबूरी में इन्द्र ने तक्षक को अपने उत्तरीय में छिपाकर वहां लाना पड़ा। वहां वे तक्षक को अकेला छोड़कर अपने महल में लौट गए। विद्वान् ब्राह्मण बालक आस्तीक से प्रसन्न होकर जनमेजय ने उसे एक वरदान देने की इच्छा प्रकट की तो उसने वरदान में यज्ञ की तुरंत समाप्ति का वर मांगा। बस इसी कारण तक्षक भी बच गया क्योंकि उसके नाम के आह्‍वान के समय वह बस अग्नि में करने ही जा रहा था और यज्ञ समाप्ति की घोषणा कर दी गई।
 
 
कर्कोटक कौन था?
कर्कोटक शिव भक्त भी था। ऋषि कश्यप की पत्नीं कद्रू के हजारों पुत्रों में सबसे बड़े और सबसे पराक्रमी शेष नाग ही थे। कर्कोटक शेषनाग के छोटे भाई थे। कर्कोटक और ऐरावत नाग कुल का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आसपास का माना जाता है। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे। नारद के शाप से वे एक अग्नि में पड़े थे, लेकिन नल ने उन्हें बचाया और कर्कोटक ने नल को ही डस लिया, जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया। लेकिन यह भी एक शाप के चलते ही हुआ तब राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।
 
 
कौन था तक्षक?
आठ प्रमुख नागों में से एक कद्रू के पुत्र तक्षक भी पाताल में निवास करते हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों के अनुसार तक्षक नाम की एक जाति थी जिसका जातीय चिन्ह सर्प था। उनका राजा परीक्षित के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। जिसमें परीक्षित मारे गए थे। तब उनके पुत्र जनमेजय ने तक्षकों के साथ युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया था। हालांकि इतिहासकार मानते हैं कि पुराणकारों ने नागों के इतिहास को मिथक बनाकर उन्हें नाग ही घोषित कर दिया। तक्षक ने शमीक मुनि के शाप के आधार पर राजा परीक्षित को डंसा लिया था। उसके बाद राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था। वेबदुनिया के शोधानुसार तक्षक का राज तक्षशिला में था। समुद्र के भीतर तक्षक नाम का एक नाग पाया जाता है जिसकी लंबाई लगभग 22 फुट की होती है और वह इतनी तेज गति से चलता है कि उसे कैमरे में कैद कर पाना मुश्‍किल है। यह सबसे भयानक सर्प होता है।
 
राजा परीक्षित को शाप : एक बार राजा परीक्षित आखेट हेतु वन में गए। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गए तथा जलाशय की खोज में इधर-उधर घूमते-घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। वहां पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किए हुए ब्रह्म ध्यान में लीन बैठे थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा किंतु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया।
 
 
सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुए कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर मेरा अपमान कर रहा है। उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुए एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोंक से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस आ गए।
 
 
शमीक ऋषि जब ध्यान साधना से जाग्रत हुए तो उन्होंने अपने गले में पड़े मृत सर्प को देखा। उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया था कि उनके साथ राजा ने क्या किया है। उस दौरान शमीक ऋषि के पुत्र ऋंगी ऋषि आ पहुंचे और जब उन्होंने जाना कि उनके पिता का राजा ने अपमान किया है तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ऋषियों का अपमान करता रहेगा। इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने तुरंत ही कमंडल से अपनी अंजुली में जल लेकर तथा उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह शाप दे दिया कि जा तुझे आज से 7वें दिन तक्षक सर्प डसेगा।
 
शमीक ऋषि कुछ समझ पाते इससे पहले तो ऋंगी ऋषि ने शाप दे डाला। शमीक ऋषि ने अपने पुत्र से कहा कि तूने यह अच्छा नहीं किया। वह राजा तो प्रजा का रक्षक है। उसने इतना बड़ा अपराध भी नहीं किया था कि उसे इतना बड़ा शाप दिया जाए। शमीक को बहुत पश्चाताप हुआ।
 
उल्लेखनीय है कि द्रोण पुत्र अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र प्रहार से उत्तरा ने मृत शिशु को जन्म दिया था किंतु भगवान श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु-उत्तरा पुत्र को ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के बाद भी फिर से जीवित कर दिया था यही बालक आगे चलकर राजा परीक्षित नाम से प्रसिद्ध हुआ। परीक्षित के प्रतापी पुत्र हुए जन्मेजय।
 

जन्मेजय को जब यह पता चला कि मेरे पिता की मृत्यु सर्पदंश से हुई तो उन्होंने विश्‍व के सभी सर्पों को मारने के लिए नागदाह यज्ञ करवाए थे। उन यज्ञों में नागों को पटक दिया जाता था। एक विशिष्ट मंत्र द्वारा नाग स्वयं यज्ञ के पास पहुंच जाते थे। देशभर में नागदाह नामक स्थान मिल जाएंगे। सर्पदाह के एक घनघोर यज्ञ की अग्नि से एक कर्कोटक नामक सर्प ने अपनी जान बचाने के लिए उज्जैन में महाकाल राजा की शरण ले ली थी जिसके चलते वह बच गया था।
 

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