क्या महाभारत काल में जहाज, विमान और परमाणु अस्त्र थे?

अनिरुद्ध जोशी
महाभारत काल में समुद्री जहाज, विमान और परमाणु अस्त्र एवं दिव्यास्त्र होने की बात कही जाती है। क्या इन बातों में सचाई है? महाभारत काल पर विद्वानों ने कई पुस्तकें लिखी हैं और उनमें यह सिद्ध करने का प्रयास भी किया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच ही हमारी आज की टेक्नोलॉजी से कहीं ज्यादा उन्नत थी महाभारतकालीन टेक्नोलॉजी? आओ जानते हैं कि महाभारत काल में जहाज, विमान और परमाणु अस्त्र आदि होने के प्रमाणों के बारे में।
 
 
परमाणु बम : मोहन जोदड़ो में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे जिसमें रेडिएशन का असर होने की बात कही जा रही थी। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। यह परिणाम ऐसे ही हैं जैसा कि वर्तमान में परमाणु अस्त्र छोड़े जाने के बाद घटित होते हैं। हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3 नवंबर 5563-64 वर्ष पूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र परमाणु बम ही था?
 
 
महाभारत में इसका वर्णन मिलता है- ''तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।।'' ''सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम। चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।।'' 8 ।। 10 ।।14।।- महाभारत
 
अर्थात : ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगी। सहस्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे। भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया। आकाश में बड़ा शब्द हुआ। आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई।
 
 
आधुनिक काल में जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 का बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह कार्य किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया था।
 
 
शोधकार्य के बाद विदेशी वैज्ञानिक मानते हैं कि वास्तव में महाभारत में परमाणु बम का प्रयोग हुआ था। 42 वर्ष पहले पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था। डॉ. वर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी ‘स्वयंभू’। इसमें इसका उल्लेख मिलता है। 
 
 
प्राचीन भारत में कहीं-कहीं ब्रह्मास्त्र के प्रयोग किए जाने का वर्णन मिलता है। रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु लक्ष्मण ने जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि अभी इसका प्रयोग उचित नहीं, क्योंकि इससे पूरी लंका साफ हो जाएगी।
 
 
एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक 'चैरियट्स ऑफ गॉड्स' में लिखते हैं, 'लगभग 5,000 वर्ष पुरानी महाभारत के तत्कालीन कालखंड में कोई योद्धा किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानता था जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया।'
 
 
विमान : रामायण में पुष्पक विमान के होने का उल्लेख मिलता है। कुछ वर्ष पूर्व वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने एक विमान को अफ‍गानिस्तान की एक गुफा में पाया गया है। कहा जाता है कि यह विमान एक 'टाइम वेल' में फंसा हुआ है जिसके कारण यह अभी तक सुरक्षित बना हुआ है। यहां इस बात का उल्लेख करना समुचित होगा कि 'टाइम वेल' इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्‍स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता है। हालांकि इस खबर की पुष्टि नहीं की जा सकती।
 
 
ऐसा कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में कौरवों की मित्रता दैत्यों से थी। दैत्यों ने उन्हें कुछ विमान दिए थे। कौरव सेना इसके माध्यम से आसमान से वार करती थी। यह भी जनश्रुति है कि सूर्यदेव ने कर्ण को पुष्पक विमान दिया था।
 
 
महाभारत की एक कथा अनुसार अजुर्न और श्रीकृष्ण एक उड़ने वाले विमान के माध्यम से इंद्रलोक जाते हैं। यह विमान जमीन और आसमान दोनों जगह चलता था। एक अन्य कथा अनुसार जब इंद्रदेव छल के माध्यम से कर्ण से कवच और कुंडल मांग लेते हैं। कर्ण जब उन्हें वो दे देता है तो इंद्र अपने विमान से भागने लगते हैं। बीच रास्ते में एक आकाशवाणी होती है कि इंद्र तुने ये छल किया है अत: तेरा यान यहीं भूमी में धंसा रहेगा जब तक कि तू कवच और कुंडल के बदले कर्ण को कुछ दे नहीं देता। ऐसे में इंद्र वचन देते हैं कर्ण को अमोघ अस्त्र देने का तभी विमान आगे बढ़ता है। वे उसी विमान से लौटकर कर्ण को अमोघ अस्त्र दे देते हैं। 
 
 
प्राचीन भारत के शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण और महाभारतकाल में विमान होते थे जिसके माध्यम से विशिष्टजन एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से यात्रा कर लेते थे। विष्णु, रावण, इंद्र, बालि आदि सहित कई देवी और देवताओं के अलावा मानवों के पास अपने खुद के विमान हुआ करते थे। विमान से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं। यहीं नहीं, कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे, जो अंतरिक्ष में किसी दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे।
 
 
जहाज : महाभारत से पूर्व हुई रामायण में नाव और जहाज होने का उल्लेख मिलता है। भगवान राम एक नाव में सफर करके ही गंगा पार करते हैं। पुष्पक विमान से वे श्रीलंका से अयोध्या लौटते हैं। दूसरी ओर संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे।
 
 
महाभारत और उससे जुड़े ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि यमुना में बड़ी बड़ी नावें चलती थी। इन नावों के माध्यम से ही श्रीकृष्ण और बलराम द्वारिका से मथुरा आते थे और मथुरा से द्वारिका जाते थे। बीच में उन्हें सरस्वती नदी में ही नावों से सफर करना होता था। प्राचीन काल में यमुना और सरस्वती नदी का स्वरूप अलग और विशालकाय था। 
 
 
भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। प्राचीन भारतीय लोगों ने समुद्र में यात्रा करने के लिए सर्वप्रथम नौका का निर्माण किया था। वैदिक युग के जन साधारण की छवि नाविकों की है जो सरस्वती घाटी सभ्यता के ऐतिहासिक अवशेषों के साथ मेल खाती है। भारत में नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6,000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। अंग्रेजी शब्द नेवीगेशन का उदग्म संस्कृत शब्द नवगति से हुआ है। नेवी शब्द नौ से निकला है। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्‍कृ‍त शब्‍द नवगति से उत्‍पन्‍न हुआ है। शब्‍द नौसेना भी संस्‍कृत शब्‍द नोउ से हुआ।
 
 
कुछ विद्वानों का मत है कि भारत और शत्तेल अरब की खाड़ी तथा फरात (Euphrates) नदी पर बसे प्राचीन खल्द (Chaldea) देश के बीच ईसा से 3,000 वर्ष पूर्व जहाजों से आवागमन होता था। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1. 25. 7, 1. 48. 3, 1. 56. 2, 7. 88. 3-4 इत्यादि)। याज्ञवल्क्य सहिता, मार्कंडेय तथा अन्य पुराणों में भी अनेक स्थलों पर जहाजों तथा समुद्रयात्रा संबंधित कथाएं और वार्ताएं हैं। मनुसंहिता में जहाज के यात्रियों से संबंधित नियमों का वर्णन है।
 
 
ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी में भारत अभियान से लौटते समय सिंकदर महान् के सेनापति निआर्कस (Nearchus) ने अपनी सेना को समुद्रमार्ग से स्वदेश भेजने के लिये भारतीय जहाजों का बेड़ा एकत्रित किया था। ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में निर्मित सांची स्तूप के पूर्व तथा पश्चिमी द्वारों पर अन्य मूर्तियों के मध्य जहाजों की प्रतिकृतियां भी हैं।
 
 
भारतवासी जहाजों पर चढ़कर जलयुद्ध करते थे, यह ज्ञात वैदिक साहित्य में तुग्र ऋषि के उपाख्यान से, रामायण में कैवर्तों की कथा से तथा लोकसाहित्य में रघु की दिग्विजय से स्पष्ट हो जाती है।भारत में सिंधु, गंगा, सरस्वती और ब्रह्मपुत्र ऐसी नदियां हैं जिस पर पौराणिक काल में नौका, जहाज आदि के चलने का उल्लेख मिलता है।
 

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