रुक्मणि के अलावा श्रीकृष्ण ने उज्जैन की राजकुमारी का भी किया था हरण

अनिरुद्ध जोशी
प्रतीकात्मक चित्र
मित्रविन्दा और श्रीकृष्ण के विवाह के संबंध में दो कथाएं मिलती है। पहली कथा के अनुसार मित्रविन्दा भी रुक्मणि की तरह मन ही मन श्रीकृष्ण से प्रेम करने लगी थी। उसके भाई विन्द और अनुविन्द उसका विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने रीति रिवाज के अनुसार स्वयंवर का आयोजन किया और बहन को समझाया कि वरमाला दुर्योधन के गले में ही डाले।
 
 
कहते हैं कि श्रीकृष्ण और मित्रविन्दा में पहले से ही प्रेम था। अत: कृष्ण भी मित्रविन्दा के स्वयंवर में पहुंचे और जब कृष्ण को इस बात का पता चला की बलपूर्वक दुर्योधन के गले में वरमाला डलवाई जाएगी तो उन्होंने भरी सभा में मित्रवन्दा का हरण किया और विन्द एवं अनुविन्द को पराजित कर मित्रविन्दा को द्वारिका ले गए। वहां उन्होंने विधिवत रूप से मित्रविन्दा से विवाह किया।
 
 
दूसरी कथा के अनुसार विन्द और अनुविन्द ने स्वयंवर आयोजित किया तो इस बात की खबर बलराम को भी चली। स्वयंवर में रिश्तेदार होने के बावजूद भी भगवान कृष्ण और बलराम को न्योता नहीं था। बलराम को इस बात पर क्रोध आया। बलराम ने कृष्ण को बताया कि स्वयंवर तो एक ढोंग है। मित्रविन्दा के दोनों भाई उसका विवाह दुर्योधन के साथ करना चाहते हैं। दुर्योधन भी ऐसा करके अपनी शक्ति बढ़ाना चाहता है। युद्ध में अवंतिका के राजा दुर्योधन को ही समर्थन देंगे। बलराम ने कृष्ण को यह भी बताया कि मित्रविन्दा तो आपसे प्रेम करती है फिर आप क्यों नहीं कुछ करते हो?
 
 
यह सुनकर भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के साथ अवंतिका पहुंचे। उनके साथ बलराम भी थे। उन्होंने सुभद्रा को मित्रविन्दा के पास भेजा यह पुष्टि करने के लिए कि मित्रविन्दा उन्हें चाहती है या नहीं। मित्रविन्दा ने सुभद्रा को अपने मन की बात बता दी। मित्रविन्दा के प्रेम की पुष्टि होने के बाद कृष्ण और बलराम ने स्वयंवर स्थल पर धावा बोल दिया और मित्रविन्दा का हरण करके ले गए। इस दौरान उनको दुर्योधन, विन्द और अनुविन्द से युद्ध करना पड़ा। सभी को पराजित करने के बाद वे मित्रविन्दा को द्वारिका ले गए और वहां जाकर उन्होंने विधिवत विवाह किया।
 
 
मित्रविन्दा और कृष्ण के 10 पुत्र और 1 पुत्री थी। दस पुत्रों के नाम- वृक, हर्ष, अनिल, गृध, वर्धन, आनन्द, महाश, पावन, वहि और क्षुधि। पुत्री का नाम शुचि था। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के देहत्याग के बाद मित्रविन्दा सती हो गई थी। बाद में उसके पुत्र अर्जुन के साथ हस्तिनापुर जाते वक्त रास्ते में लुटेरों द्वारा मारे गई थे।
 
 
कहते हैं कि मित्रविन्दा कृष्ण की बुआ राज्याधिदेवी की कन्या थी। राज्याधिदेवी की बहिन कुंति थी। इसका मतलब यह कि मित्रविन्दा श्रीकृष्ण की चचेरी बहिन थी। मित्रविन्दा अवंतिका (उज्जैन) के राजा जयसेन की पुत्री और विन्द एवं अनुविन्द की सगी बहन थी।
 
 
संदर्भ : श्रीमद्भावगवत पुराण, विष्णु पुराण
 

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