‘फालो द महात्मा’ एक शीतल हवा

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भूपेंद्र गुप्ता’अगम’
 
महात्मा गांधी जिन्हें लोगों ने प्राणों से बापू पुकारा आज पूरी दुनिया के बापू बन गए हैं। नीदरलैंड में उनके जन्मदिन पर एक मार्च निकला जा रहा है  'फालो द महात्मा' इस मार्च में 1500 लोग भाग ले रहे हैं वे इसे अहिंसा दिवस के रूप में मना रहे हैं और नीदरलैंड एक पूरा सप्ताह उनकी स्मृति को समर्पित कर रहा है यह जानकर गौरव होता है कि नीदरलैंड में 30 से अधिक सड़कें गांधी के नाम पर हैं।

बरबस हमें याद आ जाता है आइन्स्टीन का वह वक्तव्य कि 'दुनिया एक दिन यह विश्वास ही नहीं कर पायेगी कि हाड़-मांस का एक आदमी ऐसा चमत्कार कर सकता है' किन्तु दुनिया उसे अविस्मरणीय  बनाने में जुटी है जैसे-जैसे दुनिया हिंसक लोहू पिपासा की शिकार हो रही है गाँधी और उनकी अहिंसा और-और प्रासंगिक होती जा रही है तथा दानवी प्रबृत्तियां अहिंसा के दैविक प्रयास के सामने बौने होती जा रहीं हैं। 
 
आज जब देश फलाहारी,रामरहीम, आसाराम, नित्यानंद,राधे मां और व्यापारी बाबाओं के कारनामों  से भरपूर है और राजसत्ताएं इन्हें महिमामंडित कर इनके तात्कालिक समर्थन को लूटने के कुटिल प्रयास कर रहीं हैं तब बापू जैसे सत्य को जीवन में उतारने वाले विस्मृत नहीं हो सकते यह अस्तित्व का नियम है वृत्तियों का संतुलन ही प्रकृति का स्वभाव है। 
 
गांधी की प्रकृति ही ऐसी है कि उनके प्रवाह में विरोध अवरोध,असहमति,अन्याय और हिंसक आचरण की जड़ताएं बह जातीं हैं उन्होंने विरोध को,असहमति को कभी कुचला नहीं उससे सहयोग किया और अपने विचार प्रवाह से स्नान कराया और रूपांतरित कर दिया यही चमत्कार उन्हें महात्मा बना देता है। 
 
गांधी जी जब 1933 में मध्यप्रदेश की यात्रा पर आये तो मंडला प्रवास के दौरान वे एक मंदिर में गए और हरिजन प्रवेश का आग्रह किया तो उन्हें रामलाल जमादार की पत्नी सावित्री देवी ने उन्हें 500 रूपये की थैली भेंट की उसके बाद उनकी सभा होनी थी जहां उन्हें मानपत्र दिया जाना था लोग उन्हें बता रहे थे कि यह वही स्थान है जहाँ शंकराचार्य और मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ हुआ था यह महिष्मति है तभी लालनाथ नामक एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा कि आपके भाषण से पहले मेरा भाषण करवाइए। लोग जानते थे कि यह कार्यक्रम बिगाड़ने की कुटिल चाल है तो सभी इसका विरोध करने लगे किन्तु गांधी जी ने उदारता पूर्वक इसकी अनुमति दे दी सभा में मानपत्र पढ़ने के बाद लालनाथ का भाषण हुआ उसने कहा कि लोग गांधीजी को राजनैतिक नेता मानकर उनका सम्मान करते हैं धार्मिक नेता मानकर नहीं। अस्पृश्यता तो पूर्वजन्म के पाप-पुण्य पर निर्भर है तथा असमानता ईश्वर द्वारा बनायी गयी है तथा शास्त्र समर्थित है। 
 
बापू ने उनकी बातों को धैर्यपूर्वक सुनने के बाद कहा कि 'मैंने बार बार कहा है कि जो मेरे पास राजनीतिक नेतृत्व के कारण आते है वे मुझे और अपने आपको धोखा देते हैं मैं तो उन्हीं को बुलाना चाहता हूं जो मेरे धार्मिक कामों में विश्वास करते हैं विरोध करने वाले भी यहां आ सकते हैं मैं आपसे केवल यह चाहता हूं कि आप अपने प्रति सच्चे रहें अगर मुझसे सहमत न हों तो मेरा विरोध करें उन्होंने कहा की शास्त्रों के दो प्रकार के अर्थ किये जाते हैं जहां  दोनों में मतभेद हो वहां हमें बुद्धि से काम लेना चाहिए। ह्रदय का प्रकाश दया और सहानुभूति है यदि हरिजन पूर्वजन्म के पापी हैं तो उन्हें मंदिर जाने का पहला अधिकार है क्योंकि भगवान् तो पतित पावन है न !!
 
उन्होंने कहा कि शास्त्रों में अस्पृश्यता अवश्य है किन्तु क्रोध और काम ही असली अस्पृश्य हैं। भेदभावों को जारी रखने के लिए शास्त्रों की दुहाई देना उनका दुरुपयोग है संसार में विभिन्नता अवश्य है किन्तु वह विषमता अथवा अस्पृश्यता नहीं है प्रत्येक जीव में एक आत्मा है और सब धर्मों का उद्देश्य इस आतंरिक एकता को पहचानना है। 
 
गांधी जी की विरोध को स्वीकार करने की इस अद्भुत उदारता ने  मंडला में स्वराज की भावना और सामाजिक विषमता से लड़ने के जन संकल्प को और सशक्त कर दिया। 
 
आज बहुत से लोग गांधी के चरखे के साथ तस्वीरें खिंचवा लेते हैं किन्तु असली गांधीगिरी तो असहमति और विरोध को स्वीकारने और उसे रूपांतरित करने में हैं तस्वीरें तो समय के साथ फीकी पड़ जातीं हैं। 
 

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