पुण्यपर्व संक्रांति : सूर्यदेव हुए उत्तरायण

- डॉ. आर.सी. ओझा

Webdunia
मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में मकर संक्रांति के बारे में विशिष्ट उल्लेख मिलता है। मत्स्य पुराण में व्रत विधि और स्कंद पुराण में संक्रांति पर किए जाने वाले दान को लेकर व्याख्या प्रस्तुत की गई है। यहा ं यह जानना जरूरी है कि इसे मकर संक्रांति क्यों कहा जाता है?

मकर संक्रांति का सूर्य के राशियों में भ्रमण से गहरा संबंध है। वैज्ञानिक स्तर पर यह पर्व एक महान खगोलीय घटना है और आध्यात्मिक स्तर पर मकर संक्रांति सूर्यदेव के उत्तरायण में प्रवेश की वजह से बहुत महत्वपूर्ण बदलाव का सूचक है। सूर्य 6 माह दक्षिणायन में रहता है और 6 माह उत्तरायण में रहता है।

परंपरागत आधार पर मकर संक्रांति प्रति वर्ष 14 जनवरी को पड़ती है। पंचांग के महीनों के अनुसार यह तिथि पौष या माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। 14 जनवरी को सूर्य प्रति वर्ष धनु राशि का भ्रमण पूर्ण कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि बारह राशियों में दसवीं राशि होती है। संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय। संक्रांति उस काल को या तिथि को कहते हैं, जिस दिन सूर्य एक राशि में भ्रमण पूर्ण कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसे पुण्यकाल माना जाता है और संक्रमण काल के रूप में भी स्वीकारकिया जाता है।


FILE

आध्यात्मिक उपलब्धियों एवं ईश्वर के पूजन-स्मरण के लिए इस संक्रांति काल को विशेष फलदायी माना गया है। इसलिए सूर्य जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसे उस राशि की संक्रांति माना जाता है।

उदाहरण के लिए यदि सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो मेष संक्रांति कहलाती है, धनु में प्रवेश करते हैं तो धनु संक्रांति कहलाती और 14 जनवरी को सूर्य मकर में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति के रूप में पहचाना जाता है।

मकर राशि में सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम तीन चरण, श्रवण नक्षत्र के चारों चरण और धनिष्ठा नक्षत्र के दो चरणों में भ्रमण करते हैं।

FILE

उत्तरायण में सूर्य के प्रवेश का अर्थ कितना गहन है और आध्यात्मिक व धार्मिक क्षेत्र के लिए कितना पुण्यशाली है, इसका अंदाज सिर्फ भीष्म पितामह के उदाहरण से लगाया जा सकता है।

महाभारत युग की प्रामाणिक आस्थाओं के अनुसार सर्वविदित है कि उस युग के महान नायक भीष्म पितामह शरीर से क्षत-विक्षत होने के बावजूद मृत्यु शैया पर लेटकर प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का इंतजार कर रहे थे।

भीष्म ने इच्छा-मृत्यु का वर प्राप्त कर लिया था। ऐसी भी मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण में होने का अर्थ मोक्ष के द्वार खुलना है। जुलियन कैलेंडर के अनुसार तो लगभग 23 दिसंबर से ही उत्तरायण सूर्य के योग बन जाते हैं, परंतु भारतीय पंचांगों के अनुसार यह तिथि 14 जनवरी को ही आती है।

FILE

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उत्तरायण के सूर्य के 6 माहों में देवताओं का एक दिन पूर्ण होता है और दक्षिणायन के सूर्य में उनकी एक रात पूरी होती है।

इसी के साथ यह भी विश्वास जुड़ा है कि जो लोग उत्तरायण के सूर्य में प्राण त्यागते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है और जो लोग दक्षिणायन के सूर्य में मृत्यु को प्राप्त होते हैं उन्हें पुनर्जन्म लेना पड़ता है। इसलिए सूर्य के उत्तरायण को संसार में जन्म-मृत्यु के आवागमन से मुक्ति का मार्ग भी मानते हैं।

मकर संक्रांति पर स्नान, व्रत, अनुष्ठान, पूजन, हवन, यज्ञ, वेद पाठ, अभिषेक, दान आदि का विशेष महत्व है। ऐसी भी मान्यता है कि इस तारीख से दिन रोज तिल भर बढ़ने लगते हैं, इसलिए इसे तिल संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। अंगरेजी महीनों के हिसाब से तो दिसंबर में ही बड़े दिन होने लगते हैं। परंतु भारतीय पंचांग में मकर संक्रांति या तिल संक्रांति से बड़े दिन माने जाते हैं।

यह मौसम के परिवर्तन का सूचक भी है। सबसे पहले तो नियम-संयम से पवित्र नदी में स्नान करने को महत्व दिया गया है। यदि पवित्र गंगा का स्नान हो जाए तो सोने में सुहागा जैसी बात हो जाएगी। गंगा स्नान न हो पाए तो नर्मदा, क्षिप्रा, गोदावरी कोई भी नदी स्नान के लिए उपयुक्त है।


FILE


इस पर्व पर तिल का इतना महत्व है कि स्नान करते समय जल में तिल डालकर स्नान करने का विधान है। तिल हमेशा से ही यज्ञ-हवन सामग्री में प्रमुख वस्तु माना गया है। मकर संक्रांति में तिल खाने से तिल दान तक की अनुशंसा शास्त्रों ने की है।

संक्रांति पर देवों और पितरों को कम से कम तिलदान अवश्य करना चाहिए। सूर्य को साक्षी रखकर यह दान किया जाता है, जो अनेक जन्मों तक सूर्यदेव देने वाले को लौटाते रहते हैं। कहीं-कहीं तीन पात्रों में भोजन रखकर- 'यम, रुद्र एवं धर्म' के निमित्त दान दिया जाता है। अपनी सामर्थ्य के अनुरूप दान करना चाहिए।

भूखों, असहाय लोगों और जरूरतमंदों को खिलाना ज्यादा पुण्यदायी है। संक्रांति व्रत की विधि भी विस्तार से बताई गई है। इसकेअनुसार स्नान से निवृत्ति के पश्चात अक्षत का अष्टदल कमल बनाकर सूर्य की स्थापना कर पूजन करना चाहिए। बंङ ऋषि के अनुसार यह व्रत निराहार, साहार, नक्त या एकमुक्त तरीके से यथाशक्ति किया जा सकता है, जिससे पापों का क्षय हो जाता है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।

मकर संक्रांति का पर्व न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, बल्कि भारी संख्या में अप्रवासी भारतीयों के दुनिया के कोने-कोने में फैले होने के कारण विश्व में अनेक स्थानों पर यह पर्व मनाया जाता है। उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी संक्रांति के देशज तरीके से जाना जाता है और मनाया जाता है। महाराष्ट्र अंचल में तिल-गुड़ के साथ मकर संक्रांति पर्व मनाने का रिवाज है।


FILE


गुजरात में इस दिन दान-धर्म के कार्यक्रम होते हैं। खिचड़ी का दान किया जाता है और फिर स्वयं के लिए उपयोग किया जाता है। पूर्वी राज्यों में भी मकर संक्रांति पर्व से जनता अच्छी तरह वाकिफ है। इस पर्व पर गुजरात में तो व्यापक स्तर पर पतंगबाजी के मुकाबले आयोजित किए जाते हैं।

पतंगबाजी की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात में इस पर्व के अवसर पर लगभग दो करोड़ रुपए का पतंग का व्यवसाय होता है। इसी मकर संक्रांति के पर्व को तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में पोंगल पर्व के रूप में मनाते हैं।

मकर संक्रांति का राष्ट्रव्यापी पर्व मूलतः सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश की पूजा है। यह सूर्य पर्व है, जिसकी आराधना का मूल उद्देश्य आत्मजागृति है ।

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Vrishabha Sankranti 2024: सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश से क्या होगा 12 राशियों पर इसका प्रभाव

Khatu Syam Baba : श्याम बाबा को क्यों कहते हैं- 'हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा'

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Guru Gochar 2025 : 3 गुना अतिचारी हुए बृहस्पति, 3 राशियों पर छा जाएंगे संकट के बादल

सभी देखें

धर्म संसार

20 मई 2024 : आपका जन्मदिन

20 मई 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Forecast 2024 : साप्ताहिक भविष्‍यफल में जानें 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा नया सप्ताह

Weekly Calendar 2024 : नए सप्ताह के सर्वश्रेष्‍ठ शुभ मुहूर्त, जानें साप्ताहिक पंचांग मई 2024 में

Aaj Ka Rashifal: आज किसे मिलेंगे शुभ समाचार और होगा धनलाभ, जानें 19 मई का राशिफल