How To Celebrate Sankranti At Home
कोरोना कोविड 19 और ओमीक्रान वैरिएंट के चलते न तो गंगा या किसी अन्य नदी में स्नान कर सकते हैं और न ही बाहर संक्रांति मिलन के साथ ही संक्रांति मना सकते हैं क्योंकि इस वक्त कोराना की तीसरी लहर प्रारंभ हो गई है। ऐसे से सावधानी रखते हुए घर में ही संक्रांति मनाएंगे तो आपके और आपके परिवार के लिए अच्छा रहेगा। संक्रांति पर सूर्य पूजा, स्नान, दान और तिल गुड़ खाने का महत्व होता है। आओ जानते हैं कि किसी तरह घर में ही संक्रांति का पर्व मनाएं।
स्नान :
1. तिल जल से स्नान करना : इस दिन जल में काले तिल डालकर उन्हें कुछ समय के लिए जल में ही रखें और उसके बाद उस जल से स्नान कर लें।
2. तीर्थ जल स्नान : आपके घर में गंगाजल होगा या किसी तीर्थ का जल होगा तो उसे अपने स्नान करने के जल में थोड़ा सा मिलाकर स्नान कर लें। यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। जल में तिल जरूर मिलाएं।
3. गंगा स्मरण स्नान : मकर संक्रांति के दिन सुबह पुण्य काल में घर पर स्नान के लिए किसी साफ बाल्टी या टब में जल भर लें। इस जल में गंगा मैय्या का ध्यान करते हुए आह्वान करके स्नान करें।- स्नान करने का मंत्र : स्नान करते हुए यह मंत्र भी बोलें, गंगे, च यमुने, चैव गोदावरी, सरस्वति, नर्मदे, सिंधु, कावेरि, जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
दान : इस दिन तिल, गुड़, कंबल, वस्त्र, घी, खिचड़ी, सीधा, रेवड़ी, नमक, पांच तरह का अनाज, गाय, तेल, चारा, मिष्ठान, बर्तन, कपास, ऊनी वस्त्र, लाल वस्त्र, गेंहू, मसूर की दाल, स्वर्ण, लाल फल, लाल पुष्प, नारियल आदि दान करने की परंपरा है। पदम पुराण के अनुसार संक्रांति में दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आप अपने घर आ रहे किसी सफाईकर्मी या आया को दान कर सकते हैं। यदि पास में ही मंदिर हो तो वहां पर दान कर सकते हैं। अपनी यथाशक्ति दान करूर करें।
घर में ही बनाएं तिल-गुड़ के लड्डू : बाजार के लड्डू की अपेक्षा घर में ही तिल और गुड़ के लड्डू बनाएं। इस दिन लड्डू और खिचड़ी खाने और इसे बांटने का बहुत ही महत्व होता है।
सुहाग का सामान : इस दिन महिलाएं एक दूसरे को हल्दी कुंकू लगाकर सुहाग का सामन देती हैं। कोरोना संक्रमण के चलते इसके लिए महिलाएं एक जगह एकत्रित न होकर सुहाग का सामान एक-दूसरे के घर भिजवा दें और वर्जुअल तरीके से भी एकत्रित होकर एक-दूसरे को बधाई दे सकते हैं।
पूजा : संक्रांति पर श्रीहिर विष्णु, सूर्यदेव, श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है। स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने आराध्य देव की आराधना करें। श्रीहरि विष्णु, लक्ष्मी, श्रीकृष्ण या सूर्यदेव के चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें। मूर्ति है तो स्नान कराएं।
अब चित्र के समक्ष धूप, दीप लगाएं। फिर सूर्यदेव के मस्तक पर हल्दी कुंकू, चंदन और चावल आदि लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें। षोडष तरीके से पूजा करने के बाद आरती करें और पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है। सूर्यदेव को मकर संक्रांति पर खिचड़ी, गुड़ और तिल का भोग लगाएं। अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
सूर्यदेव का अर्घ्य दें : अपने घर की छत पर, गैलरी में या घर के पास यदि खुला मैदान हो तो वहां पर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्यदेव के समक्ष आसन पर खड़े होकर दोनों हाथों से लोटा पकड़कर ऊंचा हाथ करके इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें। सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।
अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें -
'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' (11 बार)
' ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय।
मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा: ।।' (3 बार)
तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें। अपने स्थान पर ही तीन बार घुम कर परिक्रमा करें। आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।