बच्चों को अच्छी दें परवरिश

करे माँ-बाप का नाम रोशन

गायत्री शर्मा
WDWD
बच्चा जो कुछ भी सीखता है वो अपने आसपास के माहौल से सीखता है। बच्चे की परवरिश यदि अच्छे माहौल में की जाए तो बच्चा संस्कारवान व एक अच्छा नागरिक बनता है। जो देश, परिवार और समाज की उन्नति में सहायक होता है।

बच्चे उस कच्ची माटी के समान होते हैं जिसे जिस आकार में ढालो वह वैसा ढ़ल जाते हैं। बच्चों में जो भी संस्कार आते हैं वो सबसे पहले उसे उसके माँ-बाप से व उसके परिवार से मिलते हैं। कई बार माँ-बाप की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना प्रवृत्ति बच्चों को संस्कारहीन, उग्र, क्रोधी व मनमौजी बना देती है।

* अधिक लाड़, प्यार व दुलार :-
  बच्चों में जो भी संस्कार आते हैं वो सबसे पहले उसे उसके माँ-बाप से व उसके परिवार से मिलते हैं। कई बार माँ-बाप की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना प्रवृत्ति बच्चों को संस्कारहीन, उग्र, क्रोधी व मनमौजी बना देती है।       
बच्चों को आपके प्यार व स्नेह की आवश्यकता है लेकिन आवश्यकता से अधिक प्यार व दुलार बच्चों को बिगाड़ देता है। यह माँ-बाप को तब पता चलता है जब बच्चे किसी और के सामने अपने माँ-बाप को अपमानित करते हैं।

अक्सर ऐसा देखने में आता है कि बच्चा किसी भी चीज की जिद पर ऐसा अड़ जाता है कि 'ना' कहने पर वह अपने माँ-बाप को ही मारना शुरू कर देता है या फिर घर का सामान उथल-पुथल करने लगता है। ऐसे में माँ-बाप शर्मिन्दा होकर अपनी गलतियों पर पश्चाताप करते हैं।

* खाने की आदत सुधारें :-
यह बहुत अधिक ध्यान देने योग्य चीज है कि आपका बच्चा कब, क्या और कैसे खाता है? माँ-बाप बच्चों को लाड़-प्यार में इतना कुछ खिलाते रहते हैं कि दिनभर बच्चों के मुँह में कुछ न कुछ चलता ही रहता है। इसी के साथ ही माँ-बाप बच्चों को खाने का सलीका भी नहीं सिखाते।

जिसके कारण बच्चे खाने की प्लेट को देखते ही उस पर भूखों की तरह टूट पड़ते हैं। इन सभी से खराब होता है। उनके खाने का ढंग, जिसे देखकर हर कोई अपनी आँखे मूँद लेता है। ऐसे में माँ-बाप को बच्चे के खाने का टाइम-टेबल निश्चित करें तथा उसी के अनुसार बच्चे को खाना खिलाएँ।

  परिवार की नैय्या माँ-बाप के हाथ में है। अनुशासन व संस्कारों की पतवार से वे इस नैया को मझधार से पार कर सकते हैं। माँ-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों को ऐसी परवरिश दे कि वह एक शिक्षित, संस्कारवान व सभ्य नागरिक बने तथा अपने परिवार व देश का नाम रोशन करे।      
* कही ं भ ी कुछ भी उठा लेना :-
बच्चों की यह आदत होती है कि उन्हें कहीं भी जो भी चीज अच्छी लगती है। वे उसे बगैर पूछे उठा लेते हैं। कई बार तो बच्चे अपने सहपाठियों के रबर, पेंसिल तक अपने बैग में रखकर ले आते हैं। उन्हें क्या पता कि चोरी क्या होती है? माँ-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छी आदतें सिखाए।

* प्रेमपूर्वक रहें :-
घर का माहौल बच्चों के दिलो-दिमाग व कार्यशैली पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हर रोज घर-परिवार के झगड़े सुनकर व देखकर बच्चा भी वैसा ही सीखता है। जिससे वह भी झगड़ालू, चिड़चिड़ा व क्रोधी हो जाता है। घर के बड़ों को चाहिए वे आपसी कलह से बचें। जिससे घर का माहौल भी अच्छा बना रहता है और बच्चों में भी अच्छे गुण आते हैं।

परिवार की नैय्या माँ-बाप के हाथ में है। अनुशासन व संस्कारों की पतवार से वे इस नैया को मझधार से पार कर सकते हैं। माँ-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों को ऐसी परवरिश दे कि वह एक शिक्षित, संस्कारवान व सभ्य नागरिक बने तथा अपने परिवार व देश का नाम रोशन करे।

* इन बातों का रखें ख्याल :-
* बच्चे कहाँ जाते हैं और क्या करते हैं? इस बात का विशेष ख्याल रखें।
* बच्चों के गलती करने पर उन्हें मारने की बजाय प्यार से समझाएँ।
* बच्चों को बड़ों का आदर करना ‍सिखाएँ।
* अपनी लड़ाई में बच्चों को शामिल ना करें।
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