mothers day poem : तुम सर्वस्व हो, सृष्टि हो मेरी

शैली बक्षी खड़कोतकर
माँ, 
तुम्हारी स्मृति,
प्रसंगवश नहीं
अस्तित्व है मेरा।
धरा से आकाश तक
शून्य से विस्तार तक।
 
कर्मठता का अक्षय दीप
मंत्रोच्चार सा स्वर
अनवरत प्रार्थनारत मन
जीवन यज्ञ में 
स्वत: समिधा बन
पुण्य सब पर वार।
 
अवर्णनीय, अवर्चनीय
तुम सर्वस्व हो
सृष्टि हो मेरी !

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