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mother's day poem : मां, मैं खुश होती हूं

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डॉ. किसलय पंचोली

मां ...मैं खुश होती हूं
जब बनाती हूं
बची हुई रोटियों से रोटी पिज़्ज़ा!
 
या जब काट लेती हूं
पुरानी कढ़ाई वाली चुन्नी से
छोटे-छोटे खूबसूरत स्कार्फ!
 
या जब नया कुछ ना खरीद कर
सज्जा बदल पुनरउपयोगी कर लेती हूं
पुरानी साड़ियां और गहने!
 
या जब जिंदगी की परेशानियों में
बिना डरे दूर रहती हूं
अंधविश्वासी टोनों-टोटकों से!
 
या जब फक्र से भर उठती हूं 
और करती हूं हस्ताक्षर
देवनागरी लिपि में!
 
या जब नहीं करती अलग से आराम
और मानती हूं वास्तव में
कार्यांतरण ही है विश्राम!
 
या जब सुनती हूं सबको
और स्वीकारती हूं ऐसा ही नहीं होता है
वैसा भी हो सकता है!
 
मां मैं मानती हूं कि मै कुछ कुछ आप जैसी हूं
पर मैं नहीं कहूंगी कि मैं हूं आपकी परछाई 
मैं जानती हूं कि आप आप हैं व मैं मैं हूं !
 
मां मैं यकीनन खुश होती हूं कि
 आपसे वंशानुगत व सीखी अच्छाइयों से 
मैं और अच्छा इंसान होना चाहती हूं!

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