सिंधु ताई के जीवन की कहानी बेहद दर्दनाक है, मगर उससे उबरकर उन्होंने दूसरों की जिंदगी को रोशन करने का जो जज्बा दिखाया, वो हैरान कर देने वाला है।
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कुछ महीनों बाद तबेले में एक बेटी को जन्म दिया और अगले तीन वर्ष ट्रेनों में भीख मांगकर गुजारा करते हुए बीते।
बच्चे के जन्म के समय गर्भनाल स्वयं महिला को पत्थर से तोड़ना पड़े...इससे बड़ा दुःख किसी महिला की जिंदगी में क्या होगा? सिंधु ताई सपकाळ ने यह दुःख भोगा है और यही नहीं इसके जैसे कई दुःख और भी हैं।
सिंधुताई दुःखों का पहाड़ है पर इस पहाड़ से निर्मलता और ममता का झरना बहता है और सहज रुप से समाज सेवा करने का जज्बा आपमें पैदा होता है। अपने संघर्ष के दिनों में उन्हें बेटी को एक अनाथाश्रम में रखने की नौबत आ पड़ी। बेटी को छोड़ने के बाद रेलवे स्टेशन पर जब एक निराश्रित बच्चा पड़ा मिला तो उनके मस्तिष्क में विचार कौंधा ऐसे हजारों बच्चे और भी हैं। उनका क्या होगा?
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राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समेत करीब 172 अवॉर्ड पा चुकीं ताई आज भी अपने बच्चों को पालने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से नहीं चूकतीं। वे कहती हैं कि मांगकर यदि इतने बच्चों का लालन-पालन हो सकता है तो इसमें कोई हर्ज नहीं। सभी बच्चों को वे अपना बेटा या बेटी मानती हैं और उनके लिए किसी में कोई भेद नहीं। रेलवे स्टेशन पर मिला वो पहला बच्चा आज उनका सबसे बड़ा बेटा है और पांचों आश्रमों का प्रबंधन उसके कंधों पर हैं। अपनी 272 बेटियों का वे धूमधाम से विवाह कर चुकी हैं और परिवार में 36 बहुएं भी आ चुकी हैं ।
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सिंधुताई के लिए समाजसेवा यह शब्द अनजान है क्योंकि वे यह मानती ही नहीं कि वे ऐसा कुछ कर रही हैं उनके अनुसार समाजसेवा बोल कर नहीं की जाती। इसके लिए विशेष प्रयत्न भी करने की जरुरत नहीं। अनजाने में आपके द्वारा की गई सेवा ही समाजसेवा है। यह करते हुए मन में यह भाव नहीं आना चाहिए की आप समाजसेवा कर रहे हैं।
मन में ठहराकर समाजसेवा नहीं होती। समाजसेवा जैसे शब्द को लेकर ही वे इतने सारे वाक्य एक के बाद एक बोल जाती हैं कि आपको लगता है कि यह महिला सही मायने में अन्नपूर्णा है या सरस्वती। इतने में वे एक बेहतरीन शेर भी सुना देती हैं और आप केवल दाद भर देने का काम करते हैं और समाज सेवा जैसे भारी शब्द भी सिंधुताई के आगे पानी भरते नजर आने लगते हैं।
विशेष : महज चौथी कक्षा तक पढ़ीं ताई जब बोलना शुरू करती हैं तो धाराप्रवाह बोलती चली जाती हैं। वैसे वे हिन्दी भी जानती हैं लेकिन बोलना मराठी में ही पसंद करती हैं। अपनी मातृभाषा को वे अपने लहजे में कलेजे (दिल से निकलकर दिल तक पहुंचे) की भाषा कहती हैं। ताई कहती हैं कि इस देश में भाषण से राशन मिलता है।