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मातृ दिवस पर 6 कविताएं : मां के चरणों में स्वर्ग
Webdunia
मां के चरणों में
तुमने मुझे गोद में
ले अमृत पिला दिया
कहां फूल है, कहां कांटे
बता समझा दिया
अपनी विशालता,
सहनशीलता से मुझे भर दिया
मां के चरणों में मेरा
स्वर्ग ये अब मैंने जान लिया।
-पुष्पा दसौंधी ‘सौमित्र’
मां का दर्द
मां बोली बेटे से - हाय, तूने ये क्या किया?
न सोचा, न समझा और
घर से निकाल दिया।
मैंने दुःखों के सागर में
रहकर सुख के दीप जलाएं
स्वयं ज़हर पीकर,
तुझको अमृत के घूंट पिलाए।
तेरे दुःख से दुःखी होकर
अब और न जी पाऊंगी, तुझे दुआएं देकर,
इस दुनिया से दूर चली जाऊंगी।
-मालिनी शर्मा
मां का आंचल
गर्भ में तन को ढंका तो
पाया मां का आंचल
पहले स्पर्श के सुख में
था मां का आंचल
सर्द और गर्म ज़िंदगी के थपेड़ों से ढंकता था
मां का आंचल
प्यार की थपकी, धूल से सने हाथों को
पोंछता था मां का आंचल
संस्कार, कर्तव्यों का पाठ पढ़ाता
प्यार का सागर है मां का आंचल।
-आशा मुंशी
खिलखिलाती हूं अब
खुल सकी हूं मैं
मेरे बच्चों से
वरना तो ज़ब्त हुआ करती थी
खिलखिलाती हूं अब उनके साथ
बचपन में तो सख़्त हुआ करती थी
उनके कहकहे, उनकी बातें
उनकी कहन, बन गई है
फूलों से लदी डालियाँ
वरना तो सूखे पत्तों का
दरख़्त हुआ करती थी....
-डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज
मां, ईश्वर का स्वर
मां
इस धरती पर मां तू ईश्वर का स्वर है
मिलावट के इस युग में भी तेरे हाथ की
दूध-मलाई में वही पुराना असर है।
खुद भोली होकर अपने बच्चों को
भोला समझने का इक तुझमें ही हुनर है
निश्चल निष्कपट प्रेम तेरे दम पे कायम
तेरी वजह से ही ये
कायनात आज भी सुंदर है।
-सिमरन बालानी
मेघ फुहार सी मां
तपती दोपहर में
शीतल छांव होती है मां
बंजर धरा पर मेघ-फुहार सी
होती है मां
कभी डूबे मन तो
आशा की पतवार बन जाती है
मन को पावन करे
ऐसी गंगा-सागर सी होती है मां
-डॉ. मीनाक्षी रावल
साभार- मेरे पास मां है
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