देखा है मैंने उन्हें क्षण-क्षण, कण-कण और रुपए-रुपए को संरक्षित करते हुए। पुनरोपयोग करते हुए। वे गीता ज्ञान का साक्षात स्त्री रूप हैं। वे जब सामान्य बातचीत भी करती हैं तो लगता है उनके मुख से सुभाषित झर रहे हैं। जब हमारे किसी कार्य पर वे सकारात्मक टिप्पणी करतीं है तब हम चारों बच्चे धन्य हो उठते हैं।
कहते हैं ममता अंधी होती हैं। उनकी ममता अंधी नहीं बल्कि हजार आँखों वाली है। हर आँख हितकारी है। मददगार है। उद्धारक है। वे मूलत: विशुद्ध आलोचक है। उनकी आलोचना से रूष्ट होना स्वयं के भाग्योदय से मुँह मोड़ना है। उनकी आलोचना से तुष्ट होकर स्वयं में सुधार करना अपनी सफलता के नए चाँद गढ़ना है। वे तनिक भी अंधविश्वासी नहीं है। वे अपनी पीढ़ी से कहीं आगे की सोच रखती आई है। किसी भी प्रकार के डर से उनका दूर-दूर तक कोई संबंध ही नहीं।
वे धार्मिक हैं पर धर्मांध नहीं। ह्रदय से आस्तिक है पर कर्म कांडी नहीं। यूँ कर्म ही उनकी पूजा है। सतत कार्य करते रहना उनकी जीवन शैली है। वे कहती हैं कार्यांतरण ही विश्राम है। अलग से थमकर आराम फरमाना उनकी आदत नहीं। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे लगातार क्रियाशील रहती है।