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Motivational : बिस्मिल का युवाओं को संदेश- आप ही इस भारत के भविष्य हैं

Webdunia
अथर्व पंवार 
आज के समय में युवाओं में क्रांतिकारियों को पढ़ने का रुझान आया है। वे उनके बारे में जानने को इच्छुक रहते हैं। यह सकारात्मक बात है कि अब उनके आदर्श बदल रहे हैं। उनके कार्यों से वह प्रभावित होते हैं और देश के लिए कुछ करने की इच्छा से भर जाते हैं। आज के समय में युवा जागरूक तो हो रहा है, उसके मन में करने की इच्छा भी होती है पर धरातल पर नहीं बस सोशल मीडिया पर। वे बस अपने सुकून भरे आभामंडल को छोड़कर कठिनाइयों से परिचित नहीं होना चाहते। वह समस्या पर चर्चा करते हैं पर उसका implementation नहीं कर पाते। 
भारत की आत्मा गांवों में बसती है। 'एक ऐसा क्षेत्र जो पिछड़ा हो, जहां संसाधन कम हो, वह गांव होता है', इस stereotype को युवाओं के दिमाग से हटाना होगा। 'गांव एक आत्मीयता,स्वदेशी, संस्कृति, प्रेम और स्वयं भारत की परिकल्पना का विचार है', जो शहरीकरण की दौड़ में युवाओं के मन से ख़त्म होता जा रहा है। 
 
30 वर्ष की आयु में देश के लिए फांसी के फंदे को चूमने वाले राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में युवाओं की स्थिति बताई थी जो आज भी प्रत्यक्ष दिखाई देती है।
 
 बिस्मिल लिखते हैं-
"भारतवर्ष में सबसे अधिक कमी यहां है कि इस देश का युवकों में शहरी जीवन व्यतीत करने की बान पड़ गई है। युवक वृंद साफ-सुथरे कपड़े पहनने, पक्की सड़कों पर चलने ,मीठा खट्टा तथा चटपटा भोजन करने ,विदेशी सामग्री से सुसज्जित बाजारों में घूमने,मेज कुर्सी पर बैठने तथा विलासिता में फंसे रहने के आदी हो गए हैं।
 
ग्रामीण जीवन को वह नितांत नीरस तथा शुष्क समझते हैं। उनकी समझ में ग्रामों में अर्धसभ्य या जंगली लोग निवास करते हैं। यदि कभी किसी अंग्रेजी स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाला विद्यार्थी किसी कार्यवश अपने किसी संबंधी के यहां ग्राम में पहुंचता है। वह या तो कोई उपन्यास साथ ले जाता है जिसे अलग बैठे पढ़ा करता है या पड़े पड़े सोया करता है। 
 
किसी ग्रामवासी से बातचीत करने से उसका दिमाग थक जाता है या उससे बातचीत करना वह अपनी शान के खिलाफ समझता है। 
 
ग्रामवासी जमीदार या रईस जो अपने लड़कों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं उनकी भी यही इच्छा रहती है कि जिस प्रकार हो सके उनके लड़के कोई सरकारी नौकरी पा जाए। ग्रामीण बालक जिस समय शहर में पहुंचकर शहरी शान को देखते हैं, इतनी बुरी तरह से उन पर फैशन का भूत सवार हो जाता है कि उनके मुकाबले फैशन बनाने की चिंता किसी को भी नहीं। थोड़े दिन में उनके आचरण पर भी इसका प्रभाव पड़ जाता है और वह स्कूल के गंदे लड़कों के हाथ में पढ़कर बड़ी बुरी बुरी कुटेवों के घर बन जाते हैं। उनसे जीवन पर्यंत अपना ही सुधार नहीं हो पाता फिर वह ग्रामवासियों का सुधार क्या खाक कर पाएंगे?"
 
बिस्मिल आगे लिखते हैं, "असहयोग आंदोलन में कार्यकर्ताओं की इतनी अधिक संख्या होने पर भी सब के सब शहर के प्लेटफार्म ऊपर लेक्चर बाजी करना ही अपना कर्तव्य समझते थे। ऐसे बहुत थोड़े कार्यकर्ता थे जिन्होंने ग्राम में कुछ कार्य किया। उनमें भी अधिकतर ऐसे थे जो केवल हुल्लड़ कराने में ही देश उद्धार समझते थे। परिणाम यह हुआ कि आंदोलन में थोड़ी सी शिथिलता आते ही सब कार्य अस्तव्यस्त हो गया। "
 
ग्रामों का विकास होना चाहिए पर उसका विचार नहीं मरने देना चाहिए। जो क्रान्तिकारी अपने देश के लिए बलिदानी हो गए उन्हें हम आने वाली पीढ़ी से बहुत उम्मीदें थी, हम ही इस भारत के नवनिर्माण के उत्प्रेरक हैं। हम युवा ही इस भारत के भविष्य हैं। हमें ही भारतीयता के विचार को आगे बढ़ाना है। भारत की आत्मा ग्रामों में बसती है और ग्राम एक विचार है। सोचिए अगर यह विचार ही समाप्त हो गया तो भारत और भारतीयता का विचार बच पाएगा?

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