बहुत पुराने समय की बात है। छुक्वो राज्य में एक सभ्य परिवार रहता था। एक दिन घर में पूर्वजों के लिए आयोजित रीति के पश्चात घर के मुखिया ने अतिथियों से पूजा में सहयोग के लिए धन्यवाद देने के लिए उन्हें एक केतली में शराब दी। सभी अतिथि आपस में बातें करने लगे कि सभी के लिए मात्र एक केतली शराब ही।
ऐसे में किसी ने सलाह दी की बेहतर होगा कि हम इसके लिए भूमि पर सांप का चित्र खींचने की प्रतियोगिता आयोजित करें। जो भी सबसे पहले सांप का चित्र बना लेगा यह केतली उसकी हो जाएगी।
प्रतियोगिता प्रारंभ होने के कुछ मिनट पश्चात ही अतिथियों में से एक ने सांप का चित्र तुरंत बना दिया। फिर उसने घमंड से केतली लेकर जब शराब पीना चाहा तो घमंड के नशे में कहा कि देखो मैं इतनी जल्दी चित्र खींच सकता हूं कि मेरे पास सांप के शरीर पर कुछ पांव लगाने का भी पर्याप्त समय बचा रह गया है। फिर वह घमंड से एक हाथ में केतली और दूसरे हाथ से सांप के पांव चित्रित करने लगा।
उसी वक्त एक दूसरे व्यक्ति ने भी सांप का चित्र पूरा खींचा, उसने पहले व्यक्ति के हाथ से केतली छीन कर कहा कि सांप केपांव नहीं होते हैं। तुम ने इस पर पांव लगाया, तो वह सांप नहीं रहा। कुछ और हो गया है। यह कहते हुए उस दूसरे व्यक्ति ने केतली का शराब पी डाला। इस तरह पहले व्यक्ति से शराब पीने का मौका वंचित हो गया। हालांकि असल में यह हक उसी व्यक्ति का था जिसने पहले चित्र बना लिया था। लेकिन उसमें घमंड आ गया और वह अपने लक्ष्य को भूल गया।
इस नीति कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी काम करने के लिए ठोस लक्ष्य होना चाहिए। काम करने के दौरान या बाद में घमंड से बचना चाहिए। वरना पका पकाया फल भी कोई और ले उड़ता है।