ओशो रजनीश ने सैंकड़ों प्रेरक कहानियां अपने प्रवचनों में सुनाई है। उनकी कहानियां बड़ी ही सरल और अद्भुत होती हैं। उनकी कहानियां, उद्धरण या प्रवचन सुनकर कई लोगों के जीवन बदल गए हैं। उनके प्रेरक उद्धरणों में से एक यहां पढ़ें।
चील बहुत बड़े और ऊंचे वृक्षों पर घोंसला बनाकर अंडे देती है। फिर एक दिन अंडों से बच्चे निकल आते हैं। बच्चे अपने घोंसले के किनारे बैठकर नीचे की ओर देखते हैं, और डरते हैं, और कंपते हैं। पंख उनके पास हैं। उन्हें कुछ पता नहीं कि वे उड़ सकते हैं, फिर भी डरते हैं। इतनी नीचाई है कि अगर गिरे, तो प्राणों का अंत हुआ।
सभी बच्चे उनकी मां और उनके पिता को आकाश में सहज ही ऊंची उड़ान भरते हुए देखते हैं, परंतु उन्हें फिर भी विश्वास नहीं होता है कि हम भी उड़ सकते हैं, जबकि उड़ना तो उनके खून में शामिल होता है। बच्चे उड़ने से डरते हैं तो चील एक उपाय करती है। बड़ा ही अद्भुत उपाय है।
चील सोचती है कि इन बच्चों को आकाश में उड़ाने के लिए कैसे राजी किया जाए। नहीं वह ऐसा नहीं सोचती है। वह जानती है कि कितना ही समझाओ, बुझाओ, प्रवचन दो, पकड़कर बाहर लाओ, वे भीतर घोंसले में चले जाते हैं। कितना ही उनके सामने उड़ो, उनको दिखाओ कि उड़ने का आनंद है, परंतु फिर भी बच्चे साहस नहीं कर पाते हैं। वे सभी मरने से डरते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा घोंसले के किनारे पर आ जाते हैं और घोंसले को अपने पंजों से पकड़कर बैठ जाते हैं।
ऐसे में चील क्या करती है? आप जानकर हैरान होंगे कि चील को अपना घोंसला तोड़ना पड़ता है। एक-एक तिनका जो उसने घोंसले में लगाया था, एक-एक कूड़ा-कर्कट जो बीन-बीनकर लाई थी, उसको वह एक-एक करने गिराना प्रारंभ कर देती है। जैसे-जैसे घोंसला टूटता जाता है बच्चे सरकते जाते हैं भीतर की ओर।
फिर आखिरी टुकड़ा रह जाता है घोंसले का जिसपर सभी बच्चे अपने पंजे जमाकर बैठे रहते हैं। चील एक सुबह उसको भी छीन लेती है। बच्चे एकदम से नीचे गिरने लगते हैं वे खुले आकाश में हो जाते हैं। मौत का डर जहां उन्हें घोंसला नहीं छोड़ने दे रहा था वहीं अब मौत का डर ऐसा रहता है कि एक क्षण भी नहीं लगता है और बच्चों के पंख फैल जाते हैं और आकाश में वे चक्कर मारने लग जाते हैं। दिन, दो दिन में वे निष्णात हो जाते हैं। दिन, दो दिन में वे जान जाते हैं कि खुला आकाश हमारा है, पंख हमारे पास हैं और हम तो नाहक ही डर रहे थे।
हमारी हालत भी करीब-करीब ऐसी ही है। कोई चाहिए, जो आपके घोंसले को गिराए। कोई चाहिए, जो आपको धक्का दे दे। गुरु का वही अर्थ है…जो मरना सीख गया समझो जीना सीख गया। मौत का डर आपको जीने नहीं देता है।
सीख : यदि आप दूसरों के सहारे जीवित रहते हैं तो कभी भी जीवन में ऊंची उड़ान नहीं भर पाएंगे। आपको जीवन में जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। या तो आपको कोई धक्का देने वाला होना चाहिए या आप खुद ही कूद जाएं।