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क्‍या हम मानसिक बीमारी से संक्रमित भीड़ में तब्‍दील होते जा रहे हैं?

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नवीन रांगियाल

छत्‍तीसगढ़ के दुर्ग में बच्‍चा चोरी के आरोप में साधुओं से बुरी तरह से मारपीट की गई। थाइलैंड में एक सिरफिरे की अंधाधुंध फायरिंग कर डाली, जिससे 34 लोगों की मौत हो गई, मरने वालों में 22 बच्‍चे शामिल हैं। पिछले दिनों होमवर्क नहीं करने से नाराज एक शिक्षक ने बच्‍चे की इतनी बुरी पिटाई की कि उसकी मौत हो गई।

इसी तरह राजस्‍थान में एक दलित बच्‍चे को इतना पीटा गया कि उसकी भी मौत हो गई, बच्‍चे ने मटके से पानी पी लिया था। साल 2020 में महाराष्‍ट्र के पालघर में दो साधुओं को बर्बरता से पीटकर मार डाला गया था। भीड़ ने उन पर बच्‍चा चोरी करने का आरोप लगाया था। सबसे दुखद यह था कि पुलिस की मौजुदगी में यह हत्‍याएं हुईं।
ये सारी घटनाएं पिछले कुछ महीनों के भीतर हुईं हैं। इन घटनाओं के दृश्‍य जेहन में अब भी ताजा है। ईशनिंदा के नाम पर जो दुनियाभर में हत्‍या या लेखकों पर हमले की घटनाएं हो रही है, वो चिंता में डालने वाला एक अलग मुद्दा है ही।

हाल ही में पूरी दुनिया कोरोना जैसे भयावह संक्रमण के दौर से गुजरी है। इस संक्रमण में समझ आया कि जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो वो इंसान हो या जानवर किसी को नहीं बख्‍शती है। इस दौर ने जहां कुछ लोगों को बेहद संवेदनशील बनाया तो कुछ ने आपदा को अवसर बनाकर उसका फायदा उठाया। हालांकि यह आत्‍मचिंतन का दौर था। जिसमें हमें एक बेहतर मनुष्‍य के तौर पर खुद को स्‍थापित करने का मौका दिया था। हमें मनुष्‍यता के अगले बेहतर आयाम या अगले उच्‍चतम स्‍तर को छूने की, उसे हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए थी। कुछ क्षणों के लिए ऐसा लगा भी कि शायद अब मनुष्‍य पर्यावरण के प्रति, बेजुबान जानवरों के प्रति और खुद मनुष्‍यता के प्रति ज्‍यादा संवेदनशील और जागरूक हो जाएगा। वो हर एक जीव में ईश्‍वर के तत्‍व को महसूस करेगा। लेकिन इसके उलट जो दृश्‍य इन दिनों नजर आ रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि हम इंसानों के प्रति और ज्‍यादा लापरवाह, ज्‍यादा बर्बर और ज्‍यादा हिंसक हो गए हैं। बल्‍कि हमने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं।

यह सारी घटनाए देखते हुए ऐसा लगता है कि कोरोना संक्रमण से ऊबरने के बाद हम किसी तरह के मानसिक रोग से संक्रमित हो गए हैं। आए दिन हो रही हिंसक घटनाएं, नन्‍हें बच्‍चों के साथ दुष्‍कर्म, बच्‍चों के साथ पिटाई, बूढे और असहाय मां- बाप के साथ बर्बरता इन दिनों आम हो गया है।

जैसे हम पिछले दिनों कोरोना वायरस से संक्रमित होते थे, ठीक इन दिनों हम किसी तरह के मानसिक रोग से संक्रमित होते नजर आ रहे हैं। किसी के पास धैर्य नहीं है, चाहे राजनीतिक बहस हो या सामाजिक हर कोई बहस में हिंसक हो रहा है, न्‍यूज चैनलों में नेता गाली-गलौच पर उतर आ रहे हैं। सोशल मीडिया की वर्चुअल बहस में लोग एक दूसरे के दुश्‍मन हो रहे हैं।

क्‍या यह पोस्‍ट कोरोना इफेक्‍ट है?
दरअसल, पोस्‍ट कोरोना लोगों में कई तरह के असर हुए हैं। जहां बीमारियों में इजाफा हुआ है, हार्ट फैल हो रहे हैं। डायबिटीज की बीमारी बढी है, वहीं कहीं न कहीं लोगों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी आघात पहुंचा है। कई लोगों की याददाश्‍त पर असर हुआ है तो कहीं डिप्रेशन जैसे रोग भी सामने आए हैं। कहने का मतलब है कि कोरोना ने कहीं न कहीं मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी नुकसान पहुंचाया है, जिसकी वजह से समाज में तमाम तरह की हिंसा, अराजकता सामने आ रही हैं। बेहतर होगा इस माहौल में अपने मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य का ख्‍याल रखें, योगा करें, एक्‍सरसाइज करें, अपने साथ अपनों का ख्‍याल रखें। इस समय में परोपकार करें, जहां तक हो सके लोगों की मदद करें और एक स्‍वस्‍थ्‍य और स्‍वच्‍छ समाज का निर्माण करें।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ?
आवेश अपने चरम पर है। इसके मानसिक और सामाजिक पहलुओं का  ध्‍यान रखते हुए वैश्‍विक चिंतन किया जाना चाहिए। पोस्‍ट कोविड इस पर विमर्श की बड़ी आवश्‍यकता है।
डॉ सत्‍यकांत त्रिवेदी
सीनियर साइकेट्रिस्‍ट और मेंबर सुसाइड प्रिवेंशन टास्‍क फोर्स


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