मन के हारे हार है,मन के जीते जीत

प्रज्ञा पाठक
क्या आपने कभी सोचा है कि मन के रूप में कितनी अद्भुत चीज़ हमारे पास है।कहते हैं ना, 'मन के हारे हार है,मन के जीते जीत।' मन यदि सधा हुआ हो,तो आप जग जीत सकते हैं और यदि मन नियंत्रण में न हो,तो जीती हुई बाज़ी भी हार सकते हैं।
 
वस्तुतः हम मन को लेकर सुलझे कम,उलझे अधिक रहते हैं। इच्छाओं,कामनाओं,वासनाओं को मन की वृत्तियाँ जानकर उनके मायाजाल में आबद्ध रहते हैं और मन की अखूट शक्ति अनजानी,अछूती,अप्रयुक्त ही रह जाती है।
 
मन ही सारे भावों का उद्गम स्थल है। राग,द्वैष,क्रोध,चिंता,हर्ष,अमर्ष आदि सभी भाव यहीं उपजते हैं,विस्तार पाते हैं और शमित भी होते हैं। संस्कार और सोच के अनुसार मन में इनका स्थान और कालावधि तय होते हैं।
 
जो भाव सकारात्मक हैं, वे प्रशंसित और जो नकारात्मक हैं, वे निन्दित होते हैं।जो सत् भावों को वरीयता दे,वो अच्छे मन वाला और जो दुर्भावों को पाले,वो कुटिल माना जाता है।
कुल मिलाकर कहें,तो मन से ही व्यक्तित्व की दिशा तय होती है। जो भीतर है,वही बाहर झलकता है। आचरण,मन का प्रतिबिम्ब है और मन अन्तर्जगत का।
 
हममें से अधिकांश मन द्वारा शासित हैं और यही हमारे दुःख का कारण है।हम जीवन की विविध अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के आलोड़न-विलोड़न में स्वनिर्मित मनोभावों से संचालित होते हैं।सुख में सुखी और दुःख में महादुखी। बस,यहीं से सारी समस्या आरम्भ हो जाती है। सुख में तो सभी प्रसन्न होते हैं, लेकिन दुःख में भी जो समान भाव से आनंदित रहे,वो मन का राजा।
 
सच तो यह है कि मन पर जिसने शासन करना जान लिया,वो सदा के लिए सुख को उपलब्ध हो गया। भारतीय आद्य परम्परा में ऋषि-मुनि और संत जन इसीलिए सदैव प्रसन्न रहते थे क्योंकि वे मन को निरपेक्ष कर लेते थे और उसकी दिव्य शक्तियों का उपयोग कर बड़े-बड़े लोकहितकारी कार्यों को अंजाम देते थे।
 
वस्तुतः मन एक व्यापक धरातल को अपने अस्तित्व में समेटे हुए है। इसकी शक्ति असीमित है।
 
दुनिया में जितने महान आविष्कार हुए,जितने सुन्दर निर्माण हुए,जितने उल्लेखनीय काम हुए,जितनी रचनात्मक कलाएं अस्तित्व में आईं, सब मन की दृढ़ संकल्प शक्ति का कमाल है।
 
ज़रूरत मन की अपार क्षमताओं को पहचानने की है। उसकी सकारात्मक ऊर्जा को जानने की है। स्मरण रखिये,श्रेष्ठ परिणाम मन के मजबूत इरादों से ही जन्मते हैं। इसलिए जब भी प्रतिकूलताएं हावी होने का प्रयास करें,आप मन को ढाल बना लीजिये।
 
विचार नकारात्मक राह पकड़ लें,तो मन की सकारात्मकता का चाबुक चला लीजिये। भाव संकुचित होने लगें,तो मन की विशाल और उदात्त भूमि पर उन्हें मुक्त छोड़ दीजिये।
 
मेरा विश्वास है कि निज मन को इस प्रकार जीत लेना ही अनेक युगीन समस्याओं का समाधान होगा।
 
शायर जमील मज़हरी कहते हैं-
"जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर
ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की।"

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Benefits of sugar free diet: 15 दिनों तक चीनी न खाने से शरीर पर पड़ता है यह असर, जानिए चौंकाने वाले फायदे

Vijayadashami essay 2025: विजयादशमी दशहरा पर पढ़ें रोचक और शानदार हिन्दी निबंध

जानिए नवरात्रि व्रत में खाया जाने वाला राजगिरा आटा क्यों है सबसे खास? जानिए इसके 7 प्रमुख लाभ

Navratri 2025: बेटी को दीजिए मां दुर्गा के ये सुंदर नाम, जीवन भर रहेगा माता का आशीर्वाद

Lactose Intolerance: दूध पीने के बाद क्या आपको भी होती है दिक्कत? लैक्टोज इनटॉलरेंस के हो सकते हैं लक्षण, जानिए कारण और उपचार

सभी देखें

नवीनतम

Bhagat Singh: इंकलाब जिंदाबाद के अमर संदेशवाहक: भगत सिंह पर सर्वश्रेष्ठ निबंध

28 सितंबर जयंती विशेष: शहीद-ए-आजम भगत सिंह: वो आवाज जो आज भी जिंदा है Bhagat Singh Jayanti

World Tourism Day 2025: आज विश्व पर्यटन दिवस, जानें इतिहास, महत्व और 2025 की थीम

Leh Ladakh Protest: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने और छठी अनुसूची में शामिल होने के बाद क्या होगा बदलाव

Leh Ladakh Protest: कैसे काम करता है सोनम वांगचुक का आइस स्तूप प्रोजेक्ट जिसने किया लद्दाख के जल संकट का समाधान

अगला लेख