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न मातुः पर दैवतं : देवी के खूबसूरत 9 रूपों वाली मेरी सास

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

चित्र सौजन्य : छाया मिश्र
हर नवरात्रि में याद आती है वह (सासू) मां जो अब इस दुनिया में नहीं है 
 
न जानामि योगं, जपं नैव पूजा...न तो मुझे योग आता है न जप और न ही पूजा की पद्धति। फिर भी सप्तशती में कहा गया है कि देवी का शरीर सभी शब्दों का समन्वित स्वरूप है इसलिए हर शब्द उनकी स्तुति का ही एक तरीका है। ‘गिरिजा मतिः’ - बुद्धि भी मां है। शब्द भी मां है, इसलिए कर्म भी मां है। शब्द भाव और कर्म की इस त्रिविधा भावना से यत्किंचित प्रयत्न कर मैं त्रिगुणात्मिका शक्ति मेरी मां (सासू मां) का वर्णन करना चाहूंगी।
 
 जानती हूं ये मेरी धृष्टता है....आसमान को आज तक कोई बांध पाया है भला? मां हमारी भाषा का सबसे ज्यादा गहरे अर्थ वाला और सबसे छोटा एक अक्षर वाला महाकाव्य है। इस एकाक्षरी महाकाव्य से छोटा महाकाव्य न तो कभी लिखा गया और न इससे ज्यादा विराट अर्थ वाला महाकाव्य कभी लिखा जा सकेगा। इसीलिए सृष्टि की शुरुआत भी मां से ही होती है और सृष्टि की स्थिति और लय भी मां से ही होता है। श्लोक की शुरुआत भी त्वमेव माता से की जाती है। मां परे है नाम, गुण, कर्म, रूप, व्यवहार, विचार आदि सभी से। 
 
सागर सकल मसि करूं, कलम करूं वनराय
धरती सकल कागद करूं, महिमा लिखी न जाए
 
मां की महिमा लिखते समय सारे शब्द कम पड़ जाते हैं। फिर भी सूर्य का भक्त उसकी आरती तो दीपक से ही उतारता है। चाहे इसे सूरज को दिया दिखाना कहा जाए। इसलिए देश, काल, परिस्थिति व स्वयं की मर्यादाओं के उपरांत भी मैं अपनी सासू मां श्रीमती शांता यशवंत मिश्र का उल्लेख करना चाहूंगी।
 
 राय रत्न विद्यावारिधि की उपाधियों से विभूषित प्रकांड विद्वान् श्री विनायक कृष्ण शंकर शास्त्री ‘मिन्तर जी’ की पुत्रवधू, शिव स्वरूप यशवंत जी मिश्र की पत्नी के रूप में उन्होंने कुल की मर्यादाओं और परम्पराओं को हिमालयीन ऊंचाइयां प्रदान की। वे कभी कॉलेज नहीं गईं लेकिन उनके व्यावहारिक ज्ञान के आगे उच्चतम शिक्षित लोग भी नतमस्तक थे।
 
 उन्होंने फाइनेंस का कोई कोर्स नहीं किया था पर सीमित साधनों में असीमित काम कैसे करना इसकी मिसाल थीं।

वे एम.बी.ए. नहीं थीं पर उनके जैसा मैनेजर मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। 
 
वे समाजशास्त्री नहीं थीं लेकिन जाति, सामुदायिकता का पाठ उनसे बेहतर शायद ही कोई जनता हो।
 
 वे चिकित्सक नहीं थीं लेकिन दावा और दुआ को मिला कर अपने प्यार की घुट्टी में घोल कर कैसे पिलाना है इसकी वे परम ज्ञाता थीं।  
 
 वे अनुशासन के मामले में चट्टान से कठोर व प्रेम में फूलों को भी मात देने सी कोमलता से भरपूर थीं। 
 
6 बेटों और 3 पुत्रियों की माता होने के साथ साथ उन्होंने हम सभी बहुओं और जंवाइयों को भी जान से ज्यादा प्रेम से सींचा। वो किंग-क्वीन मेकर रहीं। हम सभी में खुद को देखा, खुद को पाया। अपनी बहुओं की शिक्षा से लेकर समाज की हर गतिविधि की भागीदारी की प्रणेता रहीं।

चाय की शौकीन और टाइम मैनेजमेंट का अनुपम उदाहरण। पानी की तरह हर रंग-रूप में ढल जाने वालीं। हम कितना ही फ़ॉलिंग-पल्लू साड़ी डालें या वेस्टर्न ड्रेस में शान बघारें पर उनकी वो जमीन से आधा बिल्लास ऊंची साड़ी की हम कभी बराबरी नहीं कर सके, कितने ही झेले-झुमके आजमा लें पर उनके कान की परमानेंट सोने के तार की वो बालियां और नाक के कांटे के साथ चमकते माथे पर वो बड़ी सी बिंदी, उनकी बड़ी बड़ी चैतन्य चमकदार आंखों के सौन्दर्य और आत्मविश्वास से लबालब दैहिक भाषा के आगे सब का सब फीका था....सच, एकदम फीका। 
 
मिनटों में तैयार हो कर, पार्लर के सौन्दर्य को फेल कर देने वाली उनके प्रेम, विश्वास से चमकती-दमकती काया के हम कायल रहे। 'लोग क्या कहेंगे' वाक्य को सिरे से धता बताती हमारी मां गृह स्वामिनी के साथ-साथ हमारी सच्ची सखी-सहेली थीं। कहते हैं सास तो मिटटी की भी बुरी होती है पर मम्मा हमारी तो ढाई आखर प्रेम का थीं चाहे शान्ता, मम्मा, प्रेम, प्यार किसी भी रूप को ले लो। पति प्रेम व समर्पण की जीती जागती मूरत।
 
 दोनों की जोड़ी साक्षात् शिव पार्वती की थी। आदर्श जोड़ी। दुनिया की सबसे खूबसूरत जोड़ी।  वो हमारी भारत माता है जिसके आंचल तले विविध संस्कृतियों व परिवारों से आए हुए दामादों व बहुओं ने भी उनके प्यार के सागर में गोते लगाए। सभी को उन्होंने दिल से अपनाया। 
 
वो बच्चों सी मासूम भी थीं। अपने पैरों की छ: ऊंगलियों से अजीब सा डर था उन्हें। घर में जब भी कोई नया शिशु मेहमान आता वो उसके हाथ-पैरों की ऊंगलियां चेक करतीं। ऐसा दुर्लभ ही मौका होता जब वे पैरों में चप्पल डालतीं हों। हमारा मन रखने यदि पहनतीं भीं तो बड़ी असुविधा होती उन्हें। हमें हर उपलब्धि पर ईनाम देना उनकी आदत थी। गलतियों को नजरंदाज करना, समय के साथ विचारों को बदलना, देना और केवल देने की इच्छा किसी औरत में हो तो ये केवल किसी विशेष शक्ति के लिए ही संभव है। बेटों के ससुराल से मुझे तो याद नहीं कि कभी किसी बात की उम्मीद की हों चाहे शादियों का ही समय क्यों न हो ... स्वाभिमान उनकी संपत्ति रही। मरते दम तक। परम्पराओं और आधुनिकता का अनोखा संगम थीं मेरी सास, मेरी मां, मेरी मम्मा... 
 
उनमें मुझे हमेशा देवी के नौ रूपों के दर्शन होते रहे। 
 
 ‘शैल पुत्री’ के रूप में शक्तिशाली और साहसी. परिवार के सभी संकटों, उतार चढ़ाव को मजबूती से सकारात्मकता से स्वीकार कर बिना घबराए सामना करने की अद्भुत शक्ति।  
 
 ‘ब्रह्मचारिणी’ की तरह शांत व्यवहार, सौम्य मुद्रा, हमेशा खुश मिजाजी, दिल जीत लेने वाली। 
 
 ‘चन्द्र घंटा’  की तरह कल्याणकारी, दुखों को हरने वाली, सबके सुख दुःख में साथ खड़ी होने वाली। 
 
कुष्मांडा’ के रूप में पूरे घर की रौनक, सभी की खुशहाली की चिंता करती। 
 
 ‘स्कन्द माता’ के रूप में सभी की फरमाइश को पूरा करने को हमेशा तत्पर, सभी को तृप्त करती, 
 
‘कात्यायनी’ की तरह रिश्तों को दिल से निभाने वाली, उनको अपने प्रेम की मजबूती से बांध कर रखने वाली, सभी की जिम्मेदारी को ख़ुशी-ख़ुशी दिल से निभाने वाली। 
 
 ‘काल रात्रि’ की तरह भी अपने घर-परिवार के सदस्यों पर या मान-सम्मान पर यदि आंच आए तो कालरात्रि का रूप धारण करने में भी जरा संकोच नहीं करती। 
 
 ‘महागौरी’ की तरह कल्याण कारी, सुंदर, विशाल नैनों वाली, कोमल, शांत, शुद्धता की मूरत। 
 
 ‘सिद्धि दात्री’ के रूप में हमारी मनोकामनाओं को उन्होंने सिद्ध किया। 
 
उन्होंने हमें वो सब दिया जो हम चाहते रहे। अपने जीवन के अंत तक...आज भी.. उनके साहस, स्नेह, निडरता, बुद्धिमत्ता, दयालुता और प्रेम भाव के आगे कोई नहीं टिक सकता।
 
 त्यागी, धैर्यवान, निडर, तपस्वी, परोपकारी, जीवनदायी मां उनके जाने के बाद भी आज भी उनके आदर्श और शिक्षाएं हर परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शन करती हैं। 
 
उनके अद्भुत प्रेम की पराकाष्ठा ही है कि आज एक बहू उनके लिए इस लेखन की पूजा थाली को अक्षरों की आरती से सजा कर, अपनी भक्ति के प्रेम पुष्पों से, आभार का कंकू, स्मृतियों का महकता हुआ चन्दन, और दिल में जाने-अनजाने में हुई गलतियों की माफ़ी का अक्षत सजा कर, दिशाबोध की धूप और अपने जीवनकाल के सम्पूर्ण पुण्यों का मां के श्रीचरणों में प्रणाम के साथ नैवेद्य सजाए, जीवन यात्रा की उनकी दी हुई शिक्षाओं के मंत्रों के साथ इस पावन पुण्य नवरात्रि की अष्टमी पर अष्टादश भुज मां (सासू मां) का पूजन कर रही है। 
 
आज अष्टमी के पूजन में आप भी देखिए न अपने घर में या अपने आसपास अपनी मां, पालक या घर के किसी बड़ी या छोटी सदस्या में किसी न किसी रूप में ये सभी रूप जरुर नजर आएंगें। इन रूपों की वंदना करें। कहीं ऐसा न हो कि केवल मूर्ति पूजा में ही आपकी सारी श्रद्धा व्यर्थ चली जाए और माता रानी आपके ही किसी प्रियजन में निवास कर रही हो। 
 
 मां की उपस्थिति की अभिव्यक्ति मनसा-वाचा-कर्मणा हमारे द्वारा होती रहे। आपके प्रेम सागर से उपजी हम सरिताएं भी आपकी ही तरह आपकी छवि और आपका अंश अपने हृदय में बसाये जीवन व्यतीत कर सकें। आप जैसी ब्रह्मांड की समस्त पावन माताओं के श्री चरणों में हमारा वंदन...नमन...

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