Festival Posters

कोरोना काल की कहानियां : लिंक के बहाने सकारात्मक लिंक की बात करें

डॉ. छाया मंगल मिश्र
आधुनिक युग में मशीनों की संगत में लिंक का जबरदस्त महत्त्व है। पसंद की चीज ढूंढनी हो तो फलानी लिंक, किसी से जुड़ना हो तो ढीकानी लिंक। वैसे ही इस कोरोना नैराश्य को भगाना हो तो सकारात्मकता की लिंक। हताशा से जीतना हो तो परिवार के जीवन प्रेम व आत्मीयता की लिंक। इस बीमारी के बाद जो बचे उनके सबक की लिंक, और खुद को बचाए रखने के लिए हिम्मत की लिंक।
 
पुष्पा दीदी का बहुत बड़ा परिवार है। कुछ उन्हीं के शहर में तो कुछ शहर, प्रदेश और देश के बाहर रहते हैं। सभी में अटूट प्रेम है।आज की तारीख में उनके प्रत्येक परिवार में कोई न कोई परिवार या सदस्य कोरोना ग्रसित है।तनाव होना तो स्वाभाविक है।सभी की खैर-खबर की चिंता सताया करती है।पर फिर भी सभी ने समझदारी से निर्णय लिया कि इस दर्द, दुःख के महासागर से खुशियों के कमल चुनने में ही भलाई है। जब अपने हाथों में कुछ है ही नहीं तो झींकने कोसने के बजाय एक दूसरे को खुश रखें।बातें करें।मिलें-जुलें। पर कैसे? तब उन्होंने टेक्नालोजी का भरपूर इस्तेमाल किया और मुलाकात का समय सभी की सुविधानुसार तय कर लिया।यह एक सकारात्मक पहल बन गई।परिजनों का प्यार, मुलाकात, हंसना-हंसाना और जो इस कहर से बचे, कोरोना को परस्त किया उनके अनुभव सभी को एक ऊर्जा से भर देते।बीमारी की और से सभी का ध्यान भटक जाता।भय से मुक्त हो वे जीने की वजह पाते।मुलाकातों का इंतजार करते। उनके जीने की ललक उनकी ताकत में इजाफे करती।और सभी जल्दी जल्दी ठीक होते।
 
इसका मतलब ये कतई नहीं है कोरोना से बचने का कोई रामबाण उपाय है।हां, पर एक असरकारी तरीका जरुर है। ये भी जानतें है कि गंभीर मरीज को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर इससे भी इंकार नहीं कि गंभीरता को किसी हद तक रोका भी जा सकता है। जानते हैं कि सभी इतने साधन संपन्न हों कि टेक्नॉलोजी का इस्तेमाल कर सकें, पर जो कर सकते हैं और कुछ जानें बचनें की उम्मीदें बंधतीं हो कि ये मुलाकातें कुछ काम करेगी, तो हर्ज क्या है?
 
 मुझे परिवार को इस त्रासदी दौर में एक सूत्र में बंधे रखने और प्रेम अभिव्यक्ति का ये तरीका पसंद आया। महामारी के इस नारकीय दौर से हम सभी गुजर रहे हैं। डूबते को तिनके का सहारा। सभी कुछ तो हाथों से निकलता का रहा है। तो जो है हमारे पास, जो कुछ भी है उसके माध्यम से बचने बचाने के आलावा अब हमारे पास कोई मार्ग नहीं। क्योंकि अपनों की बेरुखी, घबराहट, लाचारी, बेबसी, चिंता मरीज को और तोड़ देती है। उनके मनोबल को बनाये रखने के लिए उन्हें जताएं कि परिवार को उनकी जरुरत है, सब उन्हें बहुत प्यार करते हैं, वो सभी जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। शायद दवा से ज्यादा हमारा प्यार, प्रार्थना काम कर जाये।बाकि तो फिर ‘होइहें वही जो राम रची राखा’ का आसरा तो है ही।
 
पुष्पा दीदी ने बताया कि पिछले साल से ही वे अपने परिवार के साथ इसी तरह से जुडी हुईं हैं। सारे त्योहार ऐसे ही जोर-शोर से साथ में मनाये जाते हैं।दूरियां नजदीकियों में बदल जातीं हैं। जो परिजन किसी कारणवश उपस्थित नहीं हो पाते, उनके लिए वे रिकार्डिंग की सुविधा इस्तेमाल करते हैं। कब कौन किससे बिछड़ जाए क्या मालूम? तो जब तक साथ हैं एक दूसरे को खूब प्यार, दुलार, आशीर्वादों से सराबोर रखें। जीने का सहारा बनें। ऐसा कह कर वे ये कह कर जल्दी-जल्दी घर जाने लगीं कि गणगौर की पूजा का समय हो चला है।सभी को मुलाकात की “लिंक” भेजना है। ताकि सभी उससे जुड़ सकें और आज का दिन भरपूर मस्ती के साथ जी सकें।सच ही है...जीवन के इस अनिश्चितता के दौर में सकारात्मकता, प्यार,अपनत्व और मजबूत मनोबल की “लिंक” से जुड़े रहना कितना जरुरी है।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Toilet Vastu Remedies: शौचालय में यदि है वास्तु दोष तो करें ये 9 उपाय

डायबिटीज के मरीजों में अक्सर पाई जाती है इन 5 विटामिन्स की कमी, जानिए क्यों है खतरनाक

एक दिन में कितने बादाम खाना चाहिए?

Vastu for Toilet: वास्तु के अनुसार यदि नहीं है शौचालय तो राहु होगा सक्रिय

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

सभी देखें

नवीनतम

Ambedkar philosophy: दार्शनिक और प्रसिद्ध समाज सुधारक डॉ. बी.आर. अंबेडकर के 10 प्रेरक विचार

Dr. Ambedkar Punyatithi: डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि, जानें उनके जीवन के 10 उल्लेखनीय कार्य

अयोध्या में राम मंदिर, संपूर्ण देश के लिए स्थायी प्रेरणा का स्रोत

Shri Aurobindo Ghosh: राष्ट्रवादी, दार्शनिक और महर्षि श्री अरबिंदो घोष की पुण्यतिथि

एक दिन में कितने बादाम खाना चाहिए?

अगला लेख