Drug addiction: नशे की चपेट में दम तोड़ती युवा पीढ़ी

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक युवा शक्ति होने का दंभ भरने वाले हम क्या वास्तव में युवा शक्ति का उपयोग कर पा रहे हैं? क्या हम अपने देश के युवाओं को नशे की गिरफ्त से बचाने में कामयाब हो पा रहे हैं? याकि नारों, वादे एवं दावों की शातिर चाल ही चलते जा रहे हैं?

आंकड़ों की हवा-हवाई बातें हम नहीं करेंगे, लेकिन जमीनी यथार्थ में आज यह युवा बेबस और लाचार होने के साथ ही पथ से निरंतर भटकता ही चला जा रहा है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि अधिकांशतः युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आकर पतनोन्मुख होती चली जा रही है। नशीली दवाओं एवं नशीले मादक पदार्थों की पहुंच बड़े-बड़े महानगरों से होते हुए छोटे शहरों, कस्बों के गलियारों से होते हुए गांवों तक पहुंच चुकी है।

शराब,गुटखा, तम्बाकू,बीड़ी-सिगरेट, कोरेक्स, ड्रग्स, नशीली टेबलेट्स, चरस,गांजा, अफीम, स्मैक सहित भांति-भांति के नशीले पदार्थों की खेप पर खेप बड़े स्तर से लेकर छोटे स्तर तक बड़ी सुगमता से पहुंच रही है।
हमारी संवैधानिक व्यवस्था भले ही बालश्रम निषेध की बात करती हो लेकिन हकीकत कुछ और है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता बल्कि सच्चाई को स्वीकार करने की आदत हमें डालनी होगी। संवैधानिक उपबन्धों एवं बालश्रम को रोकने की बात करने वाले एनजीओ एवं अन्य संस्थाओं की भरमार भले ही लेकिन स्थिति इतनी बदतर है कि बालश्रम पर अंकुश आज तक नहीं लगाया जा सकता है। यह उसी की परिणति है कि शहरों एवं कस्बों में कबाड़ बीनने वाले छोटे-छोटे नौनिहाल तक वाहनों के पंचर बनाने में प्रयुक्त होने वाले द्रव पदार्थ साल्यूशन को भी नशे के तौर पर सूंघते हैं।

बात के मुख्य केन्द्र पर आते हैं-नशे का प्रसार इतना व्यापक हो चुका है कि बच्चे किशोरावस्था से ही इसकी चपेट में आने लग जाते हैं। यह स्तर अनुमानतः नौवीं कक्षा से लगभग शुरु हो जाता है, बच्चे घर से ट्यूशन /कोचिंग के लिए जाते हैं तथा पान की गुमटियों से सिगरेट की फूंक मारनी प्रारंभ कर देते हैं। एक समय वह भी था जब हमारे समाज में नैतिकता उच्च शिखर पर होती थी, किन्तु समय के साथ इसमें लगातार गिरावट आती गई। लगभग दस वर्ष पीछे के समय में जाएं और आंकलन करें तो हम पाते हैं कि दुकानदार छोटे एवं स्कूली बच्चों को गुटखा, सिगरेट इत्यादि किसी भी कीमत पर नहीं देते थे, बल्कि उल्टे डांट-डपट कर हिदायत दे देते थे। लेकिन जब से आधुनिकता की भेड़ चाल चलने की लत लगी तो स्थितियां ठीक उलट हो गईं, आजकल तो चाय-पान ठेले वाले स्कूली बच्चों को ही अपना स्थायी ग्राहक बनाकर उनके लिए सरलता से नशा करने का अड्डा उपलब्ध करवाते हैं। हालात यह हैं कि नौंवी से लेकर बारहवीं कक्षा तक के बच्चे सामान्यतः सिगरेट एवं गुटखा का सेवन चोरी-छिपे शुरू कर देते हैं, जो आगे चलकर उम्र के पड़ाव के अनुसार अन्य नशों की चपेट में आने लग जाते हैं।

समाज में संयुक्त परिवार के सिमटते दायरे एवं एकल परिवार की अवधारणा के चलते बच्चों की परवरिश में दादा-दादी एवं अन्य सम्बंधों की भूमिका नगण्य हो गई जिसके चलते अब बच्चों की देखभाल एवं जिम्मेदारी केवल माता-पिता के कंधों पर आ गई। जीवन की व्यस्ताओं के चलते माता-पिता का भी बच्चों से नाता लगभग शून्य सा ही रह गया। बच्चों ने जो जैसा बतलाया माता-पिता ने उसे स्वीकार कर लिया, असल में बच्चों के लिए माता-पिता के पास इस बात के लिए समय ही नहीं रह गया कि वे अपने बच्चों की आदतों एवं उनकी दिनचर्या की निगरानी कर सकें। इसी के चलते जब बच्चों पर कोई अंकुश नहीं रह गया तो वे नशे जैसी बुरी आदतों के शिकार होने लग गए।

कॉलेज आते -आते नशे का दायरा और भी बढ़ता चला गया तथा बुरी संगत के चलते गुटखे एवं सिगरेट का सेवन करने वाले बच्चे अब वयस्कता के साथ ही शराब, कोरेक्स, गांजा इत्यादि का प्रयोग भी करने लगते हैं। इनमें हम उन्हें भी शामिल कर लें जो स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ चुके हैं, तो भी हम पाते हैं कि उनमें भी नशे के प्रति आकर्षण उतना ही है। देश के किसी भी शहर/कस्बे/गांव को ले लीजिए आपको अधिकांशतः युवा नशे की लत के शिकार मिल जाएंगे। अनेकानेक ऐसे मामले नित-प्रति देखने को मिलतें हैं कि शराब, कोरेक्स, ड्रग्स, नशीली टेबलेट्स का सेवन करने के कारण युवाओं की किडनी, लीवर,फेफड़े खराब होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं कैंसर एवं अन्य गंभीर बीमारियों के कारण मौत के आंकड़ों में वृद्धि होती चली जा रही है, उसके मूल में सिर्फ एक ही कारण- ‘नशीले पदार्थों’ का सेवन है। नशे के कारण ही चोरी,लूट-पाट, हिंसा में युवाओं की सर्वाधिक संलिप्तता इस बात की द्योतक है कि नशे ने इस देश के भविष्य को पल्लवित होने से पहले ही उसके विनाश के द्वार खोल दिए हैं।

सवाल यह है कि क्या यह वही युवा पीढ़ी है जिसके कंधों में देश की बागडोर सौंपी जानी है तथा भविष्य के भारत की बुनियाद भी इसी के जिम्मे है? हम अभी तक बात नशे के चक्र की कर रहे थे,लेकिन सबसे अहम् एवं जरूरी बात यह है कि शासन द्वारा जब इन नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध है तो आखिर!नशीले पदार्थ युवाओं तक पहुंच कैसे रहे हैं? क्या सरकार एवं प्रशासन तंत्र चिरनिद्रा में सोया हुआ है? प्राय:यह देखा जाता है कि नशे के कारोबारियों के साथ प्रशासन तंत्र की जुगलबंदी एवं राजनैतिक संरक्षण के चलते नशे का कारोबार धड़ल्ले के साथ चलता रहता है। पूरी युवा पीढ़ी एवं समाज को मौत के मुंह में झोंकने वाले नरपिशाचों पर कभी भी कोई कार्रवाई नहीं होती है, बल्कि नोटों के वजन के आगे आंख मूदकर सबकुछ सही बतला दिया जाता है।

सोचिए! जब एक आम आदमी को पता रहता है कि नशे को फला व्यक्ति बांट रहा है तथा फला जगह नशीले पदार्थों के बिक्री का अड्डा है, तो क्या प्रशासन तंत्र को इसकी खबर नहीं होती है?

तरह- तरह के ड्रग्स की खेप धड़ल्ले से गांव-गांव, गली-मुहल्ले, गुमटियों, मेडिकल तक पहुंचती हैं, इसके पश्चात ये आसानी से युवाओं के लिए उपलब्ध हो जाती हैं। किन्तु सरकारी तंत्र को कानों-कान खबर नहीं लगती है? क्योंकि यह सब प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर 'सरकारी तंत्र-नशा कारोबारी-राजनैतिक संरक्षण’ इन्हीं की मिलीभगत से ही संचालित होता है। इतना ही नहीं नशे के कारोबारी भी राजनीतिक क्षेत्र के नामचीन चेहरे एवं जनप्रतिनिधि भी हो सकते हैं। अब ऐसे में कार्रवाई कौन और किस पर करे? फिर भी अपने यहां का तंत्र इतनी उच्च कोटि का है कि-जब कभी प्रशासनिक सक्रियता दिखलाने के लिए छुटपुट कार्रवाई कर अखबारों में फोटो छपवा कर शाबाशी के साथ सरकारी महकमा अपनी पीठ खुद ही थपथपा लेता है।

गंभीरता के साथ इस पर विचार करिए कि जब देश की युवा पीढ़ी नशे के चलते बर्बाद हो जाएगी, तब किसी भी तरक्की का स्वप्न सिर्फ और सिर्फ स्वप्न ही रह जाएगा। दावे-आंकड़े कुछ भी हों किन्तु वास्तविकता तो सबके सामने है कि नशे ने हमारी पूरी युवा पीढ़ी को अपनी चपेट में ले लिया है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो इस बात की संभावना शत-प्रतिशत है कि भारत का भविष्य नशे के आगे घुटने टेक कर दम तोड़ देगा।

सुप्त पड़े इस समाज को नशे के विरुद्ध मुखर होकर एक क्रांति करनी होगी, क्योंकि यदि इस पर समाज कायरतापूर्वक अपने भीरुपन को लिए हुए चुप्पी साधे बैठा रहा कि हमें इससे क्या फर्क पड़ता है? तो यह मानकर चलिए कि आप भी किसी न किसी दिन नशे एवं इसके दुस्प्रभावों से प्रभावित होंगे, तब आपको अपने अपराध का बोध होगा। दूसरी ओर देश के युवाओं एवं इस समाज को नशे के जहर से बचाने की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर है, चाहे वह हमारा शासन तंत्र हो याकि प्रशासन तंत्र यह उन पर निर्भर करेगा कि वे राष्ट्र के भविष्य को काल के मुंह में झोंकने चाहते हैं या उसे नशे के व्यूह से बचाकर राष्ट्र के उत्थान एवं प्रगति पथ पर लाकर मुख्यधारा में लाना चाहते हैं।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त‍ विचार लेखक की नि‍जी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)

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