परीक्षा के भूत से कैसे निपटें विद्यार्थी?

सुशील कुमार शर्मा
मार्च की पहली तारीख से ही बोर्ड की परीक्षाएं शुरुआती रूप लेंगी। कई परीक्षार्थियों को परीक्षा के  बारे में सोचकर ही बेचैनी महसूस होने लगती है। जब परीक्षाएं सिर पर हों तो दबाव बनना  स्वाभाविक हैं, परंतु नियमित अध्ययन के दौरान विद्यार्थी इस दबाव को कम कर सकता है।


 
अब सवाल यह उठता है कि यदि विद्यार्थी इस भागदौड़भरी जिंदगी में किसी कारणवश वर्षभर  पढ़ाई नहीं कर पाया है तो उस पर यह दबाव और हावी हो जाता है, परंतु इसका मतलब यह  नहीं कि वह हिम्मत हार जाए। विद्यार्थियों के मन में परीक्षा की चिंता हमेशा रहती है, पर  जनवरी माह शुरू होते ही वे और गंभीर हो जाते हैं।
 
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी दिक्कत का सामना कक्षा 10वीं और 12वीं के विद्यार्थी करते  दिखाई पड़ते हैं। कारण यह है कि एक तो उम्र की चंचलता और दूसरा भविष्य के प्रति सचेतता  की कमी उन्हें वक्त का एहसास नहीं करा पाती है। दिमाग में उथल-पुथल मच जाती है कि  क्या मैं सभी प्रश्नों के उत्तर दे पाऊंगा? क्या सभी उत्तर सही होंगे? जो सिलेबस छोड़ दिया  कहीं उसी में से प्रश्न आ गए तो? थोड़ा और पढ़ लेता तो ठीक रहता। परीक्षा के लिए थोड़ा और  समय मिल गया होता तो अच्छा रहता। 
 
इस तरह के न जाने कितने प्रश्न लगभग सभी विद्यार्थियों को परेशान करते हैं। थोड़ा-बहुत  मानसिक दबाव बेहतर प्रदर्शन के लिए अच्छा रहता है, मगर ज्यादा दबाव नुकसानदायक हो  सकता है। निम्न बातों पर ध्यान देकर आप परीक्षा के डर को दूर कर सकते हैं।
 
1. समय का सदुपयोग : समय के सदुपयोग का स्मार्ट तरीका है कि आप अपनी कक्षा के  समय का पूरा उपयोग करें। जब शिक्षक कक्षा में पढ़ाते हैं तो कई छात्र आपस में बातें करने या  इधर-उधर समय नष्ट करने में क्या पढ़ाया जा रहा है, उस पर ध्यान नहीं देते। यह भी समय  का दुरुपयोग है। जब शिक्षक कक्षा में पढ़ा रहे हैं तो उसे ध्यान से समझिए और जो समझ में  न आए, उसे तुरंत पूछिए। कई छात्र कुछ समझ में न आने पर संकोचवश उसे शिक्षकों से  पूछते नहीं हैं। 
 
2. पाठ्यक्रम में अंकों के अनुसार पढ़ाई : आजकल बोर्ड परीक्षा से पूर्व प्रत्येक बोर्ड विद्यार्थियों  की सुविधा के लिए ब्लूप्रिंट जारी करता आ रहा है। इस पर भी सावधानी जरूरी जान पड़ती है  कि बाजार में उपलब्ध प्रश्न बैंकों पर दिए गए ब्लूप्रिंट को एक बार बोर्ड की वेबसाइट खोलकर  मिलान अवश्य कर लें और अंतिम रूप से बोर्ड की वेबसाइट के ब्लूप्रिंट को ही स्वीकार करें।  ऐसा करने से अध्याय की महत्ता और उस पर लगाया जाने वाला अध्ययन का समय उचित  रूप से बांटा जा सकता है। 
 
जिस अध्याय से महज 2 अंकों का प्रश्न पूछा जाना हो उस अध्याय के बड़े प्रश्न को याद  करने का अनुपयोगी समय भी सकारात्मक परिणाम की ओर अग्रसर कर सकेगा। साथ ही इस  बात की जानकारी भी सहज रूप में उपलब्ध हो पाएगी कि किस इकाई से वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे  जाने हैं और कौन-सी इकाई बड़े प्रश्नों के लिए आरक्षित रखी गई है। इस प्रकार से विद्यार्थी  अपनी योजना को प्रथम पायदान के रूप में उचित दिशा प्रदान कर सकेंगे। 
 
3. परीक्षाओं के दौरान टाइम मैनेजमेंट : जिंदगी में हर चीज और काम के लिए एक निर्धारित  समय होता है। पढ़ाई-लिखाई के लिए भी एक समय होता है। जब हम स्कूल या कॉलेज में  पढ़ते हैं वो समय कुछ अलग ही होता है। स्टूडेंट लाइफ के समय का एक अलग ही महत्व और  आकर्षण होता है। ये वह समय होता है, जब इंसान के सामने सिर्फ एक ही चीज महत्वपूर्ण  होती है और वो है अपनी पढ़ाई-लिखाई। एक बार ये लाइफ बीत जाए तो दोबारा वैसे का वैसा  समय दोबारा नहीं आता। इसीलिए कहते हैं कि 'विद्यार्थी जीवन जिंदगी का स्वर्णिम समय होता  है। इसे व्यर्थ के कार्यों में नहीं गंवाना चाहिए।'
 
 



 

4. सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रश्नों पर जोर : प्राय: विद्यार्थी प्रायोगिक खंड से भागते हुए बड़े  अंकों का नुकसान कर बैठते हैं। मिसाल के तौर पर वाणिज्य संकाय के विद्यार्थी एकाउंटेंसी  विषय पर घबराते हुए उसके सैद्धांतिक प्रश्नों पर आधारित होकर परीक्षा कक्ष में पहुंचते हैं और प्रायोगिक प्रश्नों को छोड़कर अपनी श्रेणी बिगाड़ बैठते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी विज्ञान संकाय  के विद्यार्थियों के साथ भी देखी जा रही है। 
 
5. रसायन शास्त्र और भौतिक शास्त्र के संख्यात्मक खंड को छोड़ देने की प्रवृत्ति उन्हें सफलता  के दायरे से दूर रख रही है। वाणिज्य संकाय के विद्यार्थियों को एकाउंटेंसी की पंजी प्रविष्टियों  के नियम ध्यान में रखते हुए प्रश्न हल करने चाहिए। सावधानी के तौर पर पिछले वर्षों के  प्रश्नपत्रों को हल करते हुए समय प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए। सैद्धांतिक प्रश्नों की तैयारी  रटंत प्रक्रिया से दूर समझने की रीति द्वारा की जानी चाहिए।
 
6. बढ़ाएं दिमाग की ताकत : बच्चे सकारात्मक ऊर्जा, विस्मित भाव और उत्सुकता से सोचते  हैं। अपने आपको दिवास्वप्न देखने दीजिए। इससे मस्तिष्क तीक्ष्ण होगा और दिमाग की ताकत  भी बढ़ेगी। अपने आपको केवल एक ही व्यक्ति न बनने दें। एक ही व्यक्ति में बहुत सारे व्यक्तित्व पैदा कीजिए। आप जितने अधिक से अधिक हो सकते हैं, उतने तरीकों से सोचिए।  कोई गलती न कर बैठें, इस विचार पर लगाम दीजिए।

इस दुनिया में कोई परफेक्ट नहीं होता, कभी हो भी नहीं सकेगा इसलिए अपनी गलतियों से सीखिए। नई चीजों को आजमाने से न डरें,  क्योंकि नई चीजों के प्रयोग से आपके दिमाग में कई नए विचार भी आ सकते हैं। आप अपने  दिमाग को आश्चर्यचकित होने दीजिए।
 
7. सकारात्मक सोच : किसी बात के प्रति आपका क्या रवैया है, इससे उस बात को याद रखने  का सीधा संबंध है। यदि आप किसी बात को याद रखते समय उसके प्रति सकारात्मक रवैया  रखेंगे तो वह बात या पाठ आपको पहली बार में ही याद हो जाएगा। किसी भी नई बात को  समझना आपके पहले से अर्जित ज्ञान पर निर्भर है, क्योंकि तब आप नई बात को उसकी  कसौटी पर रखकर जोड़ते हुए याद रख लेंगे। आप जितना मूलभूत ज्ञान बढ़ाते जाएंगे, उतना  नए ज्ञान को समझना आसान होता जाएगा। यही बात याद रखने पर भी लागू होती है।

याद  रखने की सबसे पहली सीढ़ी है अर्थ जानना, अत: किसी भी बात को याद रखने से उसका अर्थ जरूर समझिए। यदि अर्थ ही समझ में नहीं आया है तो रटने का कोई मतलब नहीं है इसलिए  पहले जिस बात या पाठ को याद रखना है, पहले उसका अर्थ समझिए, फिर उसका महत्व और  मूल्य समझिए। इसके बाद आपके जीवन में उस बात का क्या औचित्य है, यह जानिए।
 
8. परीक्षा का डर मन से निकालिए : परीक्षा का नाम सुनते ही आपकी हालत खराब हो जाती  है और आप टेंशन में आ जाते हैं, आते हुए उत्तर भी भूल जाते हैं या फिर उन उत्तरों को  लिखने के लिए समय ही नहीं बचता। इससे आपकी सारी मेहनत बर्बाद हो जाती है। इसका  कारण विषय की पर्याप्त तैयारी का न होना है। इसका उपाय लगातार आगे बढ़ते रहना ही है।  और यदि यह डर आपको सता ही रहा है तो इसका उपाय है कि आप इस डर से लड़िए और  इसे जीत लीजिए। 
 
डर के विषय में आचार्य चाणक्य ने कहा है- 'भय को पास न आने दो और जैसे ही वो पास  आए, उस पर आक्रमण कर उसे समाप्त कर दो।' 
 
परीक्षा अपनी क्षमता पहचानने का एक तरीका है, लिहाजा छात्रों को अपनी ताकत पहचाननी  चाहिए।
 
* परीक्षा के लिए लक्ष्य तय करना जरूरी है। अपनी क्षमता देखकर ही अपना लक्ष्य तय करें,  वरना बाद में निराशा होगी। अगर आप पिछली परीक्षाओं में 60% अंक लेकर पास होते रहे हैं  तो अपने लक्ष्य को इससे ज्यादा 5% तक बढ़ाकर रखिए। अगर आप ज्यादा बड़ा लक्ष्य रखेंगे  तो आप दबाब में आ सकते हैं।
 
* अगर माता-पिता ने आपके सामने बहुत कठिन लक्ष्य रख दिया है और आपको लगता है कि  आप उसे हासिल नहीं कर पाएंगे तो उनसे स्पष्ट शब्दों में कहें कि आप कोशिश करेंगे लेकिन  आपकी क्षमता से यह लक्ष्य बड़ा है। अगर वे फिर भी उसे बार-बार आप पर थोपते हैं तो इसे  नाक का प्रश्न न बनाएं। धैर्यपूर्वक उतना करें, जितना आप कर सकते हैं। अनावश्यक तनाव न  पालें। 
 
* ध्यान रहे, लगातार कई घंटों तक पढ़कर कोई बच्चा अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर सकता।  किताबी कीड़ा बनने की जरूरत नहीं। पढ़ाई के साथ थोड़ा समय बाकी कामों के लिए भी  निकालें। 
 
* सुबह की सैर के साथ-साथ थोड़ा-बहुत व्यायाम व खेलकूद भी जरूरी है। इससे शरीर को नई  चुस्ती-फुर्ती मिलती है, जो कि शारीरिक व मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी है। 
 
* मनोरंजन हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा है। परीक्षा के दिनों में मनोरंजन का समय घटा दें,  लेकिन खुद को मनोरंजन की दुनिया से पूरी तरह अलग न करें। थोड़ा समय निकालकर  हल्का-फुल्का संगीत, हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म या धारावाहिक अवश्य देखें। 
 
* अगर आप तनाव में हैं या फिर आपको किसी तरह की घबराहट या बेचैनी हो रही है तो  जल्दी ही घर के किसी सदस्य या फिर करीबी मित्र को बताएं। एक दिन में इमारत तैयार नहीं  हो जाती, एक दिन में पौधा बढ़कर पेड़ नहीं बन जाता, एक दिन में किसी नई पुस्तक की  रचना नहीं हो सकती, ठीक इसी तरह एक दिन में आप विद्वान नहीं बन सकते और न ही एक  दिन में आप परीक्षा में टॉप कर सकते हैं। 
 
कहने का मतलब यह है कि कुछ काम ऐसे होते हैं जिनमें समय लगता है और उन्हें फटाफट  नहीं किया जा सकता। यदि आप पढ़ाई में भी अव्वल रहना चाहते हैं तो नियमित रूप से इस  पर ध्यान दें। 
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