बुरा मान लो सब होनी है।

अमित शर्मा
थानवी जी मेरे अच्छे मित्र हैं। वे मेरी सारी अच्छाइयों का डोप टेस्ट कर मेरे मित्र बने हैं। पहली मुलाकात में ही उन्होंने मेरे अच्छेपन को सूंघ लिया था, लेकिन क्वालिटी कंट्रोल के प्रति अपने कमिटमेंट के चलते सारे टेस्ट करने के बाद ही उन्होंने मेरे मित्र अनुरोध को एप्रूव किया था। 
 
थानवी जी तमाम खूबियों पर वैध मालिकाना हक रखते हैं। कभी भी उन पर चरित्र से ज्यादा खूबियां रखने इत्यादि का भ्रष्ट आरोप नहीं लगा। तमाम खूबियों के बावजूद थानवी जी गांधीवादी भी है। "बुरा ना देखो, बुरा ना बोलो, बुरा ना सुनो", गांधी जी के तीन बंदर की ये तीन सीखें उन्होंने तोते की तरह रट रखी हैं। 
 
गांधी जी के तीन बंदरों से पुश्तैनी मित्रता होते हुए भी एक बुराई ने उन्हें अपनी गिरफ्त में दबोच रखा है, और वो है बात-बात पर बुरा मान जाना। उनके लड़के का नाम बॉबी है और बुरा मानना उनकी हॉबी है। उनकी इसी आदत के चलते मैं उनके सामने शांत और भयाक्रांत रहता हूं, पता नहीं कब मेरी कौन-सी बात उनके बुरा मानने की रडार पर आ जाए। बुरा मानने के अलावा थानवी जी का मानना है कि उनका बुरा मानना होनी की तरह अटल है जिसे कोई नहीं टाल सकता।
 
थानवी जी जब कभी किसी की बात का बुरा मानते हैं, तो अपराधी को वो इससे अप्रत्यक्ष रूप से अवगत जरूर कराते हैं और फिर उसकी बहुत बुरी गत बनाते हैं। उनका हर कार्य अप्रत्यक्ष रूप से ही होता है, प्रत्यक्ष रूप से वो केवल बुरा मानते हैं। थानवी जी के बुरा मानने की अवधी और गहनता अपराधी के द्वारा फिर से उनके ईगो को सहलाने की तीव्रता पर निर्भर करती है। बुरा मानते ही थानवी जी अपराधी को अपने दिल से निकाल कर अपनी फेसबुक ब्लॉक लिस्ट में "स्लीपर" बर्थ दे देते हैं।
 
थानवी जी को होली पर भी लोग कहने से डरते हैं, "बुरा ना मानो होली है।" बुरा मानने को लेकर थानवी जी पूरी तरह से अर्पित और समर्पित है। जिस दिन वो किसी वस्तु-व्यक्ति का बुरा नहीं मान पाते, उस दिन वो खुद का ही बुरा मान लेते हैं। बुरा मानने के लिए वो किसी कारण के गुलाम नहीं है, "मेक इन इंडिया" आने के पहले से ही वो कुशलतापूर्वक "बात का बतंगड़" बना रहे हैं।
 
थानवी जी के बुरा मानने के भी कुछ असूल हैं, जिनके साथ वो कभी समझौता एक्सप्रेस नहीं चलाते। थानवी जी दोहराव के विरोधी हैं, वो एक ही बात का दोबारा बुरा नहीं मानते है। ऐसा करके वो अपने प्रियकर्म "बुरा मानने" को नीरस होने से बचाते हैं। वे कभी भी अपने निजी स्वार्थ के लिए बुरा नहीं मानते बल्कि बुरा मानकर वो समाज में अच्छाई स्थापित करना चाहते हैं।
 
बुरा मानने को लेकर वो काफी वर्सेटाइल हैं, घर-परिवार और मित्रों के अतिरिक्त वो अलग-अलग क्षेत्रों की घटनाओं और व्यक्तियों की बातों का बुरा मानते हैं। उनका मानना है कि बुरा मानने की इंटरनेशनल प्रवृत्ति से ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों के खिलाफ लड़ने का माद्दा मिलता है।
 
बुरा मानने का थानवी जी का रिकॉर्ड काफी ऐतिहासिक और शानदार रहा है। अपने बचपन के दिनों में ही बड़ी छलांग मारते हुए इन्होंने देश में आपातकाल लगने जैसे बड़े मुद्दे का बुरा मान लिया था, जिसे तत्कालीन सरकार ने बिलकुल नहीं माना था। अब वे परिपक्व उम्र में नोटबंदी और GST जैसे मुद्दों पर पूरी परिपक्वता के साथ बुरा मान रहे हैं। उम्र पकने से वो इस पेशे में पूरी तरह से निपुण हो चुके है और अब पकी उम्र में बुरा मानकर लोगों को पका रहे हैं। 
 
थानवी जी की बढ़ती लगन को देखते हुए लगता है कि अब भारत सरकार शीघ्र ही किसी राजनयिक या कूटनीतिक मुद्दे पर किसी देश से अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए या बुरा मानने के लिए इनको मेवा दे सकती है, अर्थात सेवा का मौका दे सकती है। अब शायद मुझे भी लेख यही समाप्त कर देना चाहिए, नहीं तो थानवी जी कहीं बुरा ना मान जाए।
Show comments

चेहरे को हफ्ते में कितनी बार स्क्रब करना होता है सेफ? जानें स्क्रब करने का सही तरीका

डेट पर जमाना है अपना इम्प्रेशन तो ये 5 Casual Trouser करें ट्राई

महेंद्र सिंह धोनी का ये 1 घंटे वाला फिटनेस मंत्र दे सकता है आपको Workout Motivation

जज्बे को सलाम! बीमारी के बाद काटने पड़े हाथ-पांव, फिर भी संसद पहुंचे, लड़ना चाहते हैं चुनाव

पुरुष गर्मी में चेहरे को तरोताज़ा रखने के लिए ट्राई करें ये 4 आसान फेस पैक

आखिर क्या है मीठा खाने का सही समय? जानें क्या सावधानियां रखना है ज़रूरी

रोज करें गोमुखासन का अभ्यास, शरीर को मिलेंगे ये 10 गजब के फायदे

जमीन पर बैठने का ये है सही तरीका, न करें ये 3 गलतियां वरना फायदे की जगह होगा नुकसान

अपने हाथ पर बनवाना चाहते हैं Infinity Tattoo तो ट्राई करें ये 4 बेहतरीन डिजाइन

वेक-अप स्ट्रोक क्या है? जानें किन लोगों में रहता है इसका खतरा और बचाव के उपाय

अगला लेख