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जिन्न बनाम एआई! कौन है असली बॉस

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गिरीश पांडेय

बोतल का जिन्न! कल रात में सपने में आया। सूखकर बिलकुल कांटा हो गया था। इस कदर कि शीशी या सिरिंज में भी आराम से समा जाए। मैंने उससे उसकी इस बदहाली के बाबत पूछा?
 
जिन्न की आंख भर आई और गला रूंध गया। किसी तरह खुद को संभालकर बोला...आज कल हर कोई आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) की चर्चा कर रहा है। उसकी संभावनाएं और सीमाएं सुर्ख़ियों में हैं। क्या क्या तो नाम रखा है। आए दिन कुछ और नाम जुड़ रहे हैं। सबकी खूबियों की भी खूब चर्चा हो रही है।
 
जिन्न की बात सुनकर मैं हैरत में था! मैंने पूछा? इससे तुमको क्या तकलीफ...ये तो अच्छी बात है। बदलाव प्रकृति का नियम है। इसे स्वीकार करना चाहिए। अगर बदलाव बेहतरी की ओर है तो आगे बढ़कर इसे एडॉप्ट भी करना चाहिए।
 
जिन्न के चेहरे का हावभाव देख मुझे लगा कि मेरा जवाब उसे ठीक नहीं लगा। फिर उसने कहा..फिर इन सबका जन्मदाता कौन है? इस पर चर्चा क्यों नहीं होती। क्यों नहीं देश का कोई प्रभावशाली इंसान ये कहता है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का आविष्कार हमने किया था। वो भी बहुत पहले। बोतल के जिन्न और अलादीन के जादुई चिराग के रूप में। बाकी अन्य चीजों के बारे में ऐसे लोग मय उदाहरण चर्चा करते रहते हैं।

मसलन पहले टेस्ट ट्यूब बेबी, पहले हवाई जहाज का आविष्कार हम त्रेता युग में ही कर चुके थे। हमारे पास जमाने से ऐसी आधुनिक मिसाइलें थीं जो लक्ष्य का पीछा कर उसे खत्म करने के बाद फिर हमारे शस्त्रागार में आ जाती थीं। यही नहीं सिर और धड़ को जोड़ने वाली असंभव सर्जरी तकनीक के युग में जो अब तक संभव नहीं हो पाया, वह भी हम कर चुके हैं। वह भी बिना किसी ऊर्जा के खपत के। पूरा इकोफ्रेंडली तरीके से।
 
जब ये सारे दावे किए जा सकते हैं तो यह कहने में क्या संकोच की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की खोज भी बहुत पहले हमने की थी। प्रमाण के रूप में मेरा और अलादीन के चिराग का नाम ले लेते। हम भी अपने आका का हुकुम बजाते थे और अलग अलग नामों के AI भी तो यही करते हैं। थोड़ा ठहरने का बाद जिन्न बोला...लगता है लोगों को हमारे नाम से ही दिक्कत है। पर हम अपनी वाल्दियत तो बदल नहीं सकते। जिन्न का यह जवाब उसके तमाम सवालों की तुलना में नहले पे दहला सरीखा था। मैं चौंक कर नींद से जाग उठा। और सोचा कि इस सपने की बात आप सबसे साझा कर दूं।

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