अगर इंसानियत के थोड़े भी कण दिल, दिमाग और देह में शेष हैं तो गुना में गर्भवती महिला मामला देख सुन कर आपकी आंखें शर्म से झुक जाएगी। आप बहुत देर तक कुछ सोचने और समझने की स्थिति में भी नहीं रह सकेंगे।
गुना मामले में गुनाह किसका है यह तो बाद में कई मिलीजुली बातें तय करेंगी. ... फिलवक्त गुनाह है एक स्त्री के स्त्री होने का, गुनाह है छोड़े जाने पर भी अपनी मर्जी से जीवन चुनने का, गुनाह है उस देह को धरने का जिसका दंड सदियों से स्त्री उठा रही है।
9 फरवरी 2021 को गुना जिले के सिरसी थाना क्षेत्र के ग्राम सांगई और बांसखेडी गांव में पांच महीने की गर्भवती महिला को उसका पति उसे छोड़ देता है। कहता है अब मैं तुम्हें नहीं रख सकता। बाद में ससुर और जेठ ने आकर उसे घर चलने को कहा और मना करने पर दरिंदगी की हदों को पार करते हुए उसके साथ मारपीट की। महिला के कंधे पर गांव के ही एक किशोर को बैठाकर तीन किलोमीटर तक ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर नंगे पैर घुमाया। रास्ते में महिला को लाठी-डंडे से पीटा और पत्थर से मारा।
महिला को उसके पति ने छोड़ दिया, तो वह एक दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही थीं, जिससे नाराज ससुराल वालों ने महिला से यह बर्बरता की।
सांगई से ससुराल बांसखेड़ी तक लगभग तीन किलोमीटर तक नंगे पैर ले जाई गई उस महिला की कल्पना कीजिए जिसके पेट में उसी 'खानदान' का चिराग सांसें ले रहा है जो उसके साथ हैवानियत की हदें पार कर रहे थे...
महिला के अनुसार : मेरे पेट में पांच महीने का गर्भ है। फिर भी ससुर और जेठ मुझे घसीटते रहे। डंडे, पत्थर, बल्ले से पैरों पर मारते रहे। इस दौरान पति ने फोन कर अपने परिवार वालों से मुझे छोड़ने के लिए भी कहा, लेकिन उसकी भी किसी ने नहीं सुनी।
गुना एसपी के अनुसार : एक किशोर का एक महिला के कंधे पर सवार होकर जुलूस निकालने का वीडियो वायरल होने के बाद गिरफ्तारियां हुई हैं।
सवाल यह है कि आखिर गुना के गुनाहगार कौन? निश्चित तौर पर हम, समाज और हमारी सोच.... हम, जिन्हें इस तरह की घटनाएं मात्र समाचार से अधिक कुछ नहीं लगती, हम जो संवेदना के स्तर पर शून्य हो चुके हैं, हम जो एक गर्भवती की पीड़ा पर भी नहीं पसीजते, हम जिनके लिए स्त्री मात्र एक तमाशा बन कर रह गई है।
आए दिन की घटनाएं, प्रताड़ना के नित नूतन तरीके और मीडिया में खबरों की सतही प्रस्तुति और फिर एक नया दिन, नई खबर, नई घटना, नई स्त्री , नई औरत, नई मजबूरी, नई कहानी.... अबाध अश्रुधारा से लिखी गई अव्यक्त अंतहीन दास्तां... कहीं कोई विराम नहीं.... तमाम बोझ से दबी उस स्त्री के कंधे पर सवार किशोर उस स्तर का नहीं है जिससे सवाल पूछे जाए, सवाल तो हमें अपने आप से ही करना है कि आखिर स्त्री के कंधों पर इतनी बेशर्मी से सवार पुरुष कब और किस दिन उतरेंगे?
हे स्त्री तुम इतनी सहनशील क्यों हुईं?