-एमएल मोदी (नाना)
समय का चक्र निरंतर चलता रहता है और हर पल, हर दिन, महीना और फिर वर्ष बीतता चला जाता है। इसी तरह अब वर्ष 2017 भी विदा होने को है और नया साल 2018 नई उम्मीदों, नई आशाओं और नए सपनों के साथ दस्तक दे रहा है।
नए साल के स्वागत के लिए युवाओं में खासा उत्साह होता है। पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों की देखा-देखी और पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण हमारे युवा नए साल के स्वागत के लिए साल के अंतिम दिन 'थर्टीफर्स्ट' के रूप में मौज-मस्ती करते हैं एवं कबाब और शराब की चुस्कियों के साथ नैतिकता की सारी सीमाएं 'लांघकर' अश्लील एवं फूहड़ हरकतें करते हैं।
आज विदेशीकरण के प्रभाव से हमारे छोटे-छोटे गांव भी अछूते नहीं रहे हैं। आज महानगरों की तरह हमारे छोटे-छोटे शहरों व गांवों में भी नववर्ष के स्वागत के लिए सभी अपने-अपने तरीकों से जुट जाते हैं। जहां धनाढ्य वर्ग सितारा होटलों में मौज-मस्ती करते हैं, वहीं मध्यमवर्गीय लोग घर पर या किसी पिकनिक स्थल पर नववर्ष के बहाने मौज-मस्ती करते हैं।
यह हमारे लिए बड़े शर्म की बात है कि हमारा युवा वर्ग हमारे वास्तविक नववर्ष यानी 'गुड़ी पड़वा' को तो भूल जाता है, जबकि सही मायनों में हमारे लिए नया वर्ष 'गुडी पड़वा' से ही प्रारंभ होता है।
लेकिन आज हम पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं और अंग्रेजी नए साल के स्वागत के लिए 'थर्टीफर्स्ट' के रूप में विदेशी संस्कृति को अपनाकर हम अपनी सभ्यता और संस्कृति की सारी सीमाएं लांघकर मौज-मस्ती के बहाने सारी हदें पार करते जा रहे हैं। यह कृत्य हमारी युवा पीढ़ी को पतन के गर्त में ले जा रहा है।