नया साल और उम्मीद के दीप-सा संकल्प

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- पुरुषोत्तम व्यास


हम मीठा बोलना ही भूल गए, हम हंसना भूल गए सच पूछे तो हम जीना ही भूल गए। खुशियां... उमंग...अपनापन या प्रेमभाव का जैसे जीवन में अभाव सा हो गया है। पाने को हमने बहुत कुछ पा लिया पर वह सिर्फ अपने तक ही सीमित रह गया है। वह कुसुम का खिलना, दिनकर का उगना या फिर पहाड़ियों पर झर-झर झरने का झरना मालूम नहीं कब हम प्रकृति-से भरा जीवन जी पाएंगे…?
 
देखने और सीखने के लिए जीवन में बहुत कुछ, पर एक झंझट रहित जीवन लगता अब मुश्किल ही लगता क्योंकि हमने अपनी आवश्कताओं को इतना बढ़ा दिया है कि हम उनसे दूर हो ही नहीं सकते।
 
हम चीजों को तौलने लगे और हर बार यह सोच रहे है कि यह करने से हमको क्या फायदा होगा। भावना में बहना आधुनिक समाज में सबसे बड़ा खतरा मोल लेने वाली बात हो गई है और हर कोई आपको यही उपदेश देते नजर आएगा कि आप भावनाओं में कम ही बहा करिए नहीं तो आप बहुत ही बड़ा नुकसान उठाएंगे। मेरे विचार से जहां भाव नहीं, वहां करुणा नहीं। जहां करुणा नहीं, वहां प्रेम नहीं, जहां प्रेम नहीं वहां ईश्वर का वास नहीं। कोई कितना भी कह ले भाव बहुत ही जरूरी है और इसी कारण हम एक-दूसरे जुड़़े है। भावविहीन समाज बोले तो निरसता। निरसता किसे पसंद होगी, दूसरों शब्दों कहे तो जीवन में रस बहुत महत्वपूर्ण।
 
रसमय
 
रस रस
हर क्षण में
रस रस हर बात में...
 
सुनता कोई
कुछ कहें
रस घोल जाता जीवन में...
 
रसमय सांझ सुहानी
रोम रोम पुलकित  
गीत कविता
रसमय हो जाती कल्पना...
 
मूंद नयन  
डूबा रहूं रसमय पल में...
 
सुमन सुमन महके महके 
बह रही समीर सुहानी
करता मन  
उड़ पड़ों दूर नभ में
 
रसमय सांझ सुहानी
रस रस हर क्षण क्षण में...।
 
हमने बहुत सोच-विचार करके के जीवन के कई दिवस जी लिए और सोचे कि हमने क्या पाया और क्या नहीं पाया? दूसरे शब्दों मे कहे तो आधुनिक काल में मनुष्य जाति को कुछ ज्यादा ही सोचने वाला प्राणी का प्रमाण पत्र दे दिया जाए तो गलत नहीं होगा और उसकी उपब्लधि बोले तो शून्य के बराबर और उसने अधिकतर जो भी अविष्कार किया है वह अपने हित के लिए किया है जिससे धरा को नुकसान ही हुआं है।
 
चलिए नया वर्ष शुरू हो गया है तो कुछ नई बाते होनी चाहिए परंतु प्रश्न यह उठता है कि नई बात कौन-सी होनी चाहिए, नई बातें किसके लिए अपने हित के लिए या समाज के लिए।   
 
हर कोई नयेपन को पसंद करता और नए में चमक-उल्लास और उमंग होती और पुराने में उदासी भरी होती, ऐसी हमारी सोच है परंतु सच्चाई यह है कि हमको नए को अपनाना है पुराने की सीख के साथ क्योंकि पुराने ने हमारी हर परिस्थिती में साथ दिया है और जिसने हमें साथ दिया उसे कदापि नहीं भूलना चाहिए। जीवन है, यहां कम-ज्यादा चलता ही रहता है और जीवन आपके अनुरूप कदापि नहीं हो पाएगा। इसलिए नये वर्ष में और कोई तो संकल्प मत कीजिए पर जीवन में उम्मीद का दीप जलता रहे बस इतना करिए और हो सके तो औरों के जीवन में उम्मीद को लौ जगाइए।
 
तारीख बदली
 
तारीख बदली
बदला नहीं मन
कामना शुभ हो
दिवस हर हो नया वर्ष....
 
पतझड़ हो या बहार हो
हो कैसे भी समय
गिरते को जो संभाले
है वह नया वर्ष...
 
जीने को जो जी ले
जैसे नदियां हो या बादल
तिनके का सहारा भी
बन जाता है नया वर्ष
 
तारों के लिए भी अंधकार शुभ
घृणा भरे माहौल प्रेम के गीत गाए
मनुष्य मनुष्यता संग जी ले
है वह नया वर्ष। 
 
(इस आलेख में व्‍यक्‍त‍ विचार लेखक की नि‍जी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)

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