Dharma Sangrah

ऐसे हासिल होती है सफलता

प्रज्ञा पाठक
लोग अक्सर ज्ञान और सफलता को साथ जोड़ लेते हैं।जो ज्ञानवान है, वह सफल होगा ही-ऐसी धारणा जनमानस में प्रचलित है।
 
लेकिन यह शत प्रतिशत सत्य नहीं है।निश्चित तौर पर ज्ञानवान व्यक्ति की चीजों को समझने या ग्रहण करने की क्षमता अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती है, लेकिन सफल होने के लिए ज्ञान को सही दिशा देना भी जरुरी होता है।
 
बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर अपनी शैक्षिक योग्यता को काफी बढ़ा लेने वाले भी बौद्धिक या ज्ञानी मान लिए जाते हैं, किन्तु सही अर्थों में ज्ञानी वह है, जिसके भीतर किसी भी बात अथवा परिस्थिति को ग्रहण करने की त्वरित व उच्च गुणवत्तापूर्ण क्षमता होती है।
 
सरल शब्दों में कहें,तो यह कि जो व्यक्ति अपने ज्ञान का परिस्थिति के अनुकूल शीघ्रता से उपयोग कर समाधान पर खड़ा हो जाये,वही सच्चे अर्थों में ज्ञानवान है।
 
वस्तुतः ज्ञान अथवा बुद्धि का डिग्री या उपाधि से सम्बन्ध नहीं होता।ज्ञान आनुवंशिक भी हो सकता है और स्वार्जित भी।
 
आनुवंशिक रूप से ज्ञानवान व्यक्ति को अपने पूर्वजों से ज्ञान की परम्परा विरासत में मिलती है, किन्तु उस ज्ञान का ठीक-ठीक विकास करने के लिए योग्य शिक्षा व शिक्षकों की आवश्यकता होती है।
 
यदि ऐसा नहीं होता है,तो वह व्यक्ति जीवन में सफलता हासिल नहीं कर पाता।
 
इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लीजिये,गुलाब के अत्यंत उत्तम बीज हमने जमीन में बोये,किन्तु उचित समय पर पानी,खाद आदि नहीं देने पर वह गुलाब का पौधा या तो फूल नहीं देगा अथवा कम देगा जबकि पर्याप्त और सही देखभाल से वही पौधा फूलों से लहलहा उठेगा।
 
इसी प्रकार आप जन्मजात या आनुवंशिक रूप से ज्ञानसम्पन्न ना भी हों,तब भी अपने गहन परिश्रम व निष्ठावान प्रयासों से ज्ञानार्जन कर सकते हैं और फिर उस ज्ञान के बल पर सफलता हासिल कर सकते हैं।
 
बुद्धि ही वह तत्व है, जो हमें पशुओं से पृथक करता है। यह ज्ञान का औसत रूप है।पशु बुद्धिहीन होते हैं, लेकिन हमें ईश्वर ने बुद्धि तो दी ही है।अब उसका सही उपयोग करते हुए उसके उच्च स्तर-ज्ञान-पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए।
 
ज्ञान यदि वंश-परम्परा से प्राप्त हुआ है, तो उसे योग्य गुरु के मार्गदर्शन में बढ़ाना चाहिए ताकि जीवन में महत्वपूर्ण लक्ष्यों को उपलब्ध किया जा सके।
औसत बुद्धि होने की दशा में निरंतर ज्ञानी जनों की संगति में रहकर उसे 'ज्ञान' के स्तर तक पहुँचाने के प्रयत्न करना चाहिये।
 
जिस प्रकार बच्चे सतत् प्रश्न पूछकर अपना ज्ञानवर्धन करते हैं, उसी प्रकार अधिकाधिक ज्ञान-पिपासु होकर आत्मपरिष्कार करते रहने वाले व्यक्ति एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त करते हैं।
 
सार यह है कि ज्ञान के बल पर सफलता तभी मिलती है,जब उसमें सही दिशा में निरंतर वृद्धि हो,परिष्कार हो और वह सम्यक् दृष्टिसम्पन्न हो।

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