ज्ञानवापी को सुनवाई के योग्य मानने का फैसला महत्वपूर्ण

अवधेश कुमार
Gyanvapi Masjid Case
 
वाराणसी जिला न्यायालय द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद मामले को सुनवाई के योग्य मानने को गलत बताने वाले न्यायालय को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। वास्तव में यह महत्वपूर्ण फैसला है। सामान्य तौर पर देखें तो कहा जा सकता है कि इतने सघन विवाद का मामला न्यायालय में है तो उसको सुनवाई के योग्य करार देना बिलकुल स्वाभाविक है। किंतु मुस्लिम पक्ष की ओर से मुकदमा लड़ रहे अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इसी बात पर पहली कानूनी लड़ाई लड़ी कि यह मामला सुनवाई के योग्य है ही नहीं। 
 
जिस तरह के तर्क न्यायालय में दिए गए उनसे एकबारगी लगने लगा था कि कहीं मामला उलझ न जाए। मुस्लिम पक्ष इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय जा रहा है, किंतु इससे जिला न्यायालय में मामले की सुनवाई नहीं रुक सकती। यहां मुख्य मामले की सुनवाई जारी रहेगी। इस फैसले के बाद वाराणसी के गंगा घाट पर जैसा उत्सव का दृश्य दिखा और पूरे देश में हिंदुओं ने जैसा उत्साह प्रदर्शित किया उससे समझा जा सकता है कि ज्ञानवापी मामले पर किस तरह की सामूहिक भावना देश में मौजूद है।
 
 
आइए पहले यह देखें कि न्यायालय में क्या-क्या तर्क दिए गए। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि पूजा स्थल कानून, 1991 के अनुसार धर्म स्थल का स्वरूप नहीं बदला जा सकता। जैसा हम जानते हैं यह कानून बताता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले जो धर्म स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा। हालांकि इसी कानून में उसके अपवाद भी दिए गए हैं। उनका यह भी कहना था कि ज्ञानवापी में सैकड़ों सालों से नमाज हो रही है इसलिए इस कानून की धारा 4 के तहत इस मामले में मुकदमे की सुनवाई को रोका जाना चाहिए। 
 
इनका एक तर्क यह भी था कि ज्ञानवापी वक्फ की संपत्ति है। वक्फ कानून की धारा 85 के अनुसार वक्फ संबंधी मामलों की सुनवाई सिविल न्यायालय में हो ही नहीं सकती। तीसरा तर्क यह दिया था कि 1983 के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कानून के प्रावधानों के तहत न्यायालय सुनवाई नहीं कर सकती उन्हें। इसके विरुद्ध हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि ज्ञानवापी की नींव में विश्वेश्वर का मंदिर है। ऊपर का जो ढांचा बिल्कुल अलग है। दो, जब तक किसी स्थान का धार्मिक स्वरूप तय नहीं हो जाता तब तक पूजा स्थल कानून प्रभावी नहीं माना जा सकता। यानी इस स्थान का धार्मिक स्वरूप क्या है? यह मंदिर है या मस्जिद है? जब तक यह तय नहीं होता तब तक कैसे आप उस कानून को प्रभावी मानेंगे। तीन, वक्फ के संबंध में हिंदू पक्ष ने दलील दिया कि औरंगजेब ने मस्जिद निर्माण के लिए वक्फ नहीं बनाया था। उसने ज्ञानवापी पर हमला कर उसे कब्जा किया था।
 
 
साफ है कि न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों को स्वीकार नहीं किया। न्यायालय का फैसला 26 पन्नों का है। न्यायालय ने पूजा स्थल कानून के संदर्भ में भी अपना मत स्पष्ट किया है। इसने लिखा है कि हिंदू पक्ष का कहना है कि वे 15 अगस्त, 1947 के पहले से साल 1993 तक ज्ञानवापी में प्रतिदिन श्रृंगार गौरी की पूजा कर रहे थे। ऐसे में इस कानून की धारा 4 के अनुसार मामले की सुनवाई नहीं रोकी जा सकती। 
 
 
हिंदू पक्ष को अपने दावों को साबित करने के लिए साक्ष्य पेश करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। वक्फ के बारे में न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि याची गैर मुस्लिम है और वह कानून से अनजान है। ऐसे में धारा 85 इस मामले में लागू नहीं हो सकती। याचिका में सिर्फ पूजा की इजाजत मांगी गई है, संपत्ति का स्वामित्व नहीं। काशी विश्वनाथ मंदिर कानून, 1983 के संदर्भ में भी न्यायालय की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। 
 
इसने स्पष्ट कहा है कि पूजा के अधिकार के दावे सुनने के लिए कानून में निषेध नहीं है। मुस्लिम पक्ष साबित करने में विफल रहा कि यह मामला विश्वनाथ मंदिर कानून के तहत आता है। जिला न्यायाधीश ने अपने फैसले के निष्कर्ष में लिखा है कि दलीलों और विश्लेषण को देखने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह मामला पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम ,1991, वक्फ अधिनियम, 1995 और उत्तरप्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 तथा बचाव पक्ष संख्या चार (अंजुमन इंतजामिया) द्वारा दाखिल याचिका 35 सी के तहत वर्जित नहीं है। लिहाजा इसे निरस्त किया जाता है। 
 
न्यायालय की टिप्पणियों और फैसले से साफ है कि मुस्लिम पक्ष ने मामले को लटकाने के लिए सारे तर्क दिए थे। सच यही है कि अभी तक ज्ञानवापी से संबंधित मामलों में मुस्लिम पक्ष की ओर से ऐसा कोई प्रमाण नहीं दिया गया जिनसे यह साबित होता हो कि हिंदुओं द्वारा मूल काशी विश्वनाथ मंदिर का दावा ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार गलत है। 
 
जैसा हम जानते हैं जिला न्यायालय के समक्ष यह मामला मां श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार से संबंधित है। पिछले वर्ष पांच महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने याचिका दायर कर प्रतिदिन पूजा करने का अधिकार मांगा था। हालांकि अब हिंदू पक्ष की ओर से मुकदमा लड़ने वालों के बीच व्यापक मतभेद हो गए हैं। इसकी मुख्य लड़ाई सनातन संस्था लड़ रही थी, जिसने पांचों महिलाओं द्वारा याचिका डलवाया था। 
 
हरिशंकर जैन, विष्णु जैन तथा इनके साथ खड़े कुछ लोगों से मतभेद के कारण इस संस्था ने इन दोनों को मुकदमे से अलग कर दिया था। बाद में कुछ लोगों ने इनमें से चार महिलाओं को तोड़कर अपने साथ लिया तथा उनके वकालतनामा पर दोनों पिता-पुत्र मुकदमा लड़ रहे हैं। लेकिन इससे न्यायालय को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसके सामने पांचों महिलाओं का केस है। 
 
जब न्यायालय ने मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी सर्वे का आदेश दिया था, तब भी मुस्लिम पक्ष ने इसे रोकने के लिए पूरा जोर लगाया था। उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने उनकी दलीलों को खारिज करके वीडियोग्राफी पर रोक लगाने से इनकार किया। बस केवल मामला सामान्य सिविल न्यायालय से जिला न्यायालय को भेज दिया। उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि कोई वरिष्ठ न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई करे। उसी में यह कहा गया था कि वही तय करेंगे कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व को लेकर चल रहा है जिसकी सुनवाई 28 सितंबर को होगी। उसके फैसले से तय होगा कि मस्जिद का धार्मिक स्वरूप क्या है।
 
 
तो यहां से श्रृंगार गौरी के पूजन के अधिकार का मामला फिर आरंभ हुआ है। हालांकि पूजन के अधिकार पर बहस में यह भी तय होगा कि वह वाकई मस्जिद है या मंदिर। सच कहा जाए तो न्यायालय द्वारा वीडियोग्राफी कराने का उद्देश्य यही था कि देख लिया जाए वहां अंदर क्या है? जितने दृश्य सामने आए हैं उनसे बहुत साफ दिखता है कि अंदर के निर्माण को मस्जिद मानना कठिन है। हिंदुओं के शिवलिंग के दावे के विपरीत उसे फव्वारा बताने पर बहस अभी खत्म नहीं हुआ है। 20 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए आ सकता है। 
 
उच्चतम न्यायालय ने जिला न्यायालय को मामले की सुनवाई का आदेश देते हुए यही तिथि तय की थी। हालांकि जिला न्यायालय ने जो टिप्पणियां की है उनको देखने के बाद यह मानना मुश्किल है कि उच्चतम न्यायालय सुनवाई के विरुद्ध फैसला दे सकता है। जैसा हिंदू पक्ष के वकील ने कहा कि अब हम मस्जिद के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सर्वे की मांग करेंगे। इसके साथ जो सामग्री मिली है खासकर शिवलिंग उसके कार्बन डेटिंग की मांग भी की जाएगी ताकि उसकी आयु सीमा का निर्धारण किया जा सके।
 
 
कहने का तात्पर्य कि मामला मां श्रृंगार गौरी की पूजा का जरूर है, लेकिन इसी में स्वयमेव निहित था कि वह मस्जिद है या मंदिर। जब यह स्पष्ट हो जाएगा तभी तय होगा कि मां श्रृंगार गौरी की पूजा स्थाई रूप से प्रतिदिन होनी चाहिए या नहीं। उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त को 9 सितंबर, 2021 के अंतरिम आदेश को 30 सितंबर, 2022 तक के लिए बढ़ा दिया था, जिसमें ज्ञानवापी परिसर के एक समग्र भौतिक सर्वेक्षण कराने के वाराणसी के न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी गई थी।
 
 
तो यह देखना होगा कि उच्च न्यायालय 28 सितंबर को इस संदर्भ में क्या आदेश देता है। जिला न्यायालय में सुनवाई 22 सितंबर से शुरू हो गई। हिंदू पक्ष ने समग्र सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग की मांग की है। इस पर न्यायालय को फैसला देना है। कुल मिलाकर ज्ञानवापी का मामला अब महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। 
 
यह मामला जितना संवेदनशील है, उसको ध्यान में रखते हुए दोनों पक्षों को संयम बरतने की आवश्यकता है। जब फैसला न्यायालय की हो को ही देना है, तो अनावश्यक बयानबाजी या सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन से बिल्कुल बचना चाहिए। न्यायालय जो भी फैसला दे उसे दोनों पक्ष स्वीकार करें, इसी में सबका हित है।

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