चुनाव के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था की एक लघु समीक्षा

शरद सिंगी
जैसा कि हमने पिछले लेख में लिखा था, किसी भी सरकार की सफलता अथवा असफलता के आकलन के लिए जो 2 सबसे महत्वपूर्ण विभाग हैं, वे हैं- रक्षा/विदेश और दूसरा वित्त। रक्षा/विदेश विभाग की समीक्षा हम पिछले लेख में कर चुके हैं, अब इस लेख में प्रस्तुत है वित्तीय या आर्थिक समीक्षा।
 
आर्थिक समीक्षा सदैव तथ्यों के आधार पर की जाती है, अनुभव या खबरों के आधार पर नहीं। इसलिए सबसे पहले हम वर्ल्ड बैंक की साइट पर जाते हैं, जहां प्रकाशित एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत के सामने इस समय जनता की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप विकास के अभूतपूर्व अवसर हैं, यद्यपि चुनौतियां भी साथ हैं।
 
खरीद क्षमता की दृष्टि से देखें तो हिन्दुस्तान विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। सचमुच भारत अपने सभी नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने और 2030 तक उच्च-मध्यम आय वाला देश बनने की आकांक्षा रखता है।
 
इसमें किसी को संदेह नहीं कि भारत की जनता विकास चाहती है, हर नागरिक की महत्वाकांक्षाएं बढ़ चुकी हैं और उन्हें चुनौतियां भी स्वीकार हैं। बस, नेतृत्व खरा और प्रेरक चाहिए। इस मापदंड पर मोदी सरकार कितनी खरी उतरी, इसका आकलन चुनावों में अपना मत देने से पहले आवश्यक है।
 
आर्थिक आकलन में सबसे पहला मापदंड जीडीपी होता है। पिछले 5 वर्षों में जीडीपी की विकास दर शानदार तरीके से 7 से 8 प्रतिशत के बीच झूलती रही है। सन् 2015 में तो 8 से भी ऊपर निकल गई थी, जो बहुत चौंका देने वाली संख्या थी। 2014 से पहले 2 वर्षों में तो यह 6 प्रतिशत के नीचे थी।
 
भारत की यह विकास दर चीन सहित बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में न केवल सबसे आगे बनी रही, वरन दुनिया के सामने एक मॉडल बनकर भी उभरी। 5 वर्षों तक निरंतर यह रफ्तार बनाए रखना आश्चर्यजनक तो है ही, किंतु संयोग नहीं। जाहिर है, शीर्ष पर बने रहने के लिए प्रयासों में कोई ढील नहीं रही होगी।
 
वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था की ठोस नींव डल चुकी है और अगले कुछ वर्षों तक विकास की दर 7 प्रतिशत से ऊपर बनी रहेगी। किंतु यहां यह जानना भी जरूरी है कि इस दर को बनाए रखने के लिए आर्थिक सुधार निरंतर जारी रहना चाहिए। आर्थिक सुधारों को लागू करने की मोदी सरकार की इच्छाशक्ति और साहसी निर्णयों पर दुनियाभर ने लोहा माना। उनके कार्यकाल में जो मुख्य सुधार हुए, यहां उन पर नजर डालते हैं।
 
सबसे पहले निकम्मे और निठल्ले भारतीय योजना आयोग को बंद किया गया। डीजल और पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यों से सब्सिडी हटाई गई और उन्हें अंतरराष्ट्रीय भावों के साथ जोड़ दिया गया। रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर एक सीमा 26% से बढ़ाकर 49% कर दी गई। बीमा क्षेत्र और रेलवे में भी विदेशी निवेश की अनुमति-सीमा को बढ़ा दिया गया। अधिकांश सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण होने से उद्योगों को कार्य करना सुगम हुआ।
 
एक टैक्स प्रणाली और नोटबंदी जैसे निर्णयों को अमली जामा पहनाया गया। शीघ्र ही विश्व बैंक की व्यापार करने की सुगमता की रैंकिंग में भारत ने छलांग लगा दी, जो तालिका के अंतिम देशों के बीच पड़ा हुआ था। जहां घर में मोदी सरकार के कुछ कठोर निर्णयों को विपक्षी दलों की आलोचना मिली, वहीं वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से सराहना भी मिली। परिणाम, विदेशी निवेश आकर्षित हुआ, जो चीन की तुलना में अधिक था।
 
महंगाई वृद्धि की दर दूसरा महत्वपूर्ण मापदंड है अर्थव्यवस्था के आकलन का। मोदी सरकार के 5 वर्षों के कार्यकाल में महंगाई ने भी सिर नहीं उठाया और कई बार तो यह इतनी नीचे चली गई कि रिजर्व बैंक को ब्याज दरों को महंगाई की दर के साथ अनुकूलित करने में भी परेशानी हो गई।
 
सच तो यह है कि किसी भी चढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है कि महंगाई की दर तर्कसंगत बनी रहे, न अधिक और न कम ताकि निवेशकों का मूड सकारात्मक रहे। कल्पना कीजिए कि यदि महंगाई की दर बढ़ना रुक गई और सोने या जमीन-जायदाद के भाव बढ़ना रुक गए तो नए निवेशक नहीं मिलेंगे खरीदने के लिए।
 
सन् 2012 में महंगाई दर 10 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जो कम होते पहले पहले 5 प्रतिशत के नीचे और अब पिछले 2 वर्षों से तो 4 के प्रतिशत भी नीचे बनी हुई है। यह स्तर भारत के लिए श्रेष्ठ है और इसका श्रेय भी मोदी सरकार को जाता है। दर को नीचे बनाए रखना एक चुनौती होती है जिसमें यह सरकार पूरी तरह सफल रही है।
 
अब सोचिए कि यदि इन आर्थिक सुधारों को जारी नहीं रखा जाए और भारत के खजाने का उपयोग सही तरीके से न हो तो क्या होगा? यदि चुनावों में लाभ के लिए धन बांटने की प्रथा को गति मिले अथवा टैक्स प्रणाली को पुन: पीछे की ओर धकेल दिया जाए तो दौड़ती अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरने में देर नहीं लगती। 'व्यवसाय करने की सुगमता' वाली सूची में हम पुन: निचले ही पायदान पर लटके मिलेंगे। इसलिए आवश्यक है कि हम ओछे मुद्दों की राजनीति पर ध्यान न देकर राष्ट्र के व्यापक हित में वोट करें।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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