देवी पूजकों के देश में व्यवस्था का बेटियों के साथ जारी है अन्याय

अनिरुद्ध जोशी
सोमवार, 30 सितम्बर 2019 (12:50 IST)
धर्म और समाज उन शक्तिशाली व्यक्तियों का समूह है जो वक्त के अनुसार अपने हित में नियम बनाते और तोड़ देते हैं, लेकिन उनके नियमों में कभी भी महिलाओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती रही है और जब हम कानूनी व्यवस्था की बात करते हैं तो उसके अंतर्गत न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायका और मीडिया की भूमिका को देखते हैं। क्या इनकी भूमिका पर आप संतोष व्यक्त कर सकते हैं?
 
 
उपरोक्त सभी एक दूसरे का हित साधने में लगे रहते हैं लेकिन इन्हें न्याय करते वक्त इसका कभी शायद ही अहसास होता हो कि इसके पीछे कितना बड़ा अन्याय छुपा हुआ है। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां इनके कार्यों के कारण अन्याय होता रहा है लेकिन हम बात करेंगे सिर्फ बेटियों के संबंध में।
 
 
1.बलात्कार और हत्या : हमें नहीं पता की कितने लोगों को फांसी की सजा हुई और कितने सबूतों के अभाव में छुट गए हैं और कितने ही मामले सालों से लंबित हैं। हाल ही में एक पीड़ित पर हमला करके उसे मार दिया गया और उसके परिवार के कुछ सदस्यों को भी मार दिया गया। इस देश में बहुत सस्ती है मामूस बच्चियों की जान। कथित तौर पर संत कहे जाने से लेकर एक अदना-सा आम व्यक्ति भी इस कृत्य को करने में अभी भी निडर है। क्योंकि धर्म, समाज और व्यवस्था इसके लिए गंभीर नहीं हैं। निर्भया के बाद अभी भी कुछ भी नहीं बदला है। बलात्कारी खुलेआम हर शहर में हर सकड़ पर घुम रहे हैं। उनके मां-बाप ने उन्हें संस्कार नहीं दिए क्योंकि उन्हें भी उनके मां-बाप ने संसार नहीं दिए थे।
 
 
2.मां-बाप के जिंदा रहते अनाथ हो गई बेटियां : इस देश में बहुत आसानी से विवाह भी हो जाता है इसीलिए हमारी न्याय व्यवस्था तलाक देने में माहिर है। तलाक देते वक्त न्यायालय उन बच्चों के बारे में क्या सोचता है जो कि अभी बहुत अबोध है, अक्षम हैं और जिन्हें यह भी नहीं पता की तलाक क्या होता है?
 
हाल ही में कुछ ऐसे मामले देखे गए हैं कि मां ने अलग आशियाना बसा लिया और पिता ने भी अलग अपनी जिंदगी बसा ली है। ऐसे में बे‍टी माता-पिता के रहते हुए भी अनाथ हो जाती है। आपके पास आकड़ें नहीं होंगे कि ऐसी कितनी बेटियां हैं जो अपने नाना-नानी के यहां रह रही है और ऐसी कितनी बेटियां हैं जो सड़कों पर भीख मांग रही है या उन्हें किसी दूसरे देशों में बेच दिया गया है? इस देश में ऐसी भी हजारों बेटियां हैं जो मां के बगैर पिता के साथ या पिता के बगैर मां के साथ रह रही है। देश के जिम्मेदारों को उनके साथ हुआ अन्याय नजर नहीं आता है, क्योंकि न्यायालय का काम है तलाक देना।

यदि आप किसी बेटी को उसके पिता या माता से भरण-पोषण दिला भी देते हैं तो यह उसके साथ न्याय नहीं हुआ। आप सोचिए फिर से क्या यह न्याय है? क्या इसके लिए एक अलग कानून नहीं होना चाहिए? क्या विवाह करते वक्त एक कड़े अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर नहीं कराना चाहिए? क्या विवाह को कठिन नहीं बनाना चाहिए? दूसरी बात, ऐसी कितनी महिलाएं हैं जिन्हें तलाक देने के बाद वे जिंदा रहीं और अच्छे से जीवन गुजर बसर कर रही हैं?

 
3.दहेज प्रथा : कहने को तो दहेज प्रथा कानूनी रूप से बंद हो चली है लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? हम तो अखबारों में आए दिन पड़ते रहते हैं कि दहेज के लिए पत्नी को छोड़ दिया या मार दिया। एनआरआई पति को मोटी रकम नहीं मिली तो वह छोड़कर चला गया।  दहेज उत्पीड़न कानून के तहत कई फर्जी मामले में दर्ज हुए जिसके चलते जो महिला सचमुच ही दहेज की शिकार थी उसके साथ कभी न्याय हुआ या नहीं हुआ यह देखने वाली बात है। सुप्रीम कोई ने 2018 में दहेज उत्पीड़न क़ानून में बदलाव कर दिया। इसमें 498-ए के तहत महिला की शिकायत आने पर पति और ससुराल वालों की तुंरत गिरफ्‍तारी पर रोक लगाई गई थी। लेकिन यहां समाज को जिम्मेदार नहीं माना जाता बल्की व्यक्ति को। दहेज मामले में हत्या कर या तलाक लेकर वे लोग फिर से उसी समाज में विवाह कर लेते हैं। ऐसा कौन-सा समाज है जिसने एक प्रस्ताव लाकर दहेज प्रथा को गैर-सामाजिक घोषित कर ऐसे लोगों को समाज से बाहर कर दिया है? 

 
4.देह व्यापार : आधुनिक युग में देह व्यापार का तरीका और भी बदल गया है। पुराने वक्त के कोठों से निकलकर देह व्यापार का धंधा अब वेबसाइटों तक पहुंच गया है। नेपाल और बांग्लादेश की महिलाएं तो अक्सर आसानी से तस्करों के हाथ लग जाती हैं, लेकिन अब भारत के कई गरीब क्षेत्रों की महिलाओं को भी इस धंधे में तेजी से और बड़ी संख्या में धकेला जा रहा है। देह के बढ़ते व्यापार के चलते अब मासूम लड़कियों को अगवा कर दूसरे देशों में बेच दिया जाता है। कई लड़के प्रेम के जाल में फंसाकर लड़कियों को देह व्यापार में धकेल देते हैं। इसके बदले उनको मोटी रकम मिल जाती है। सामाजिक संस्‍था दासरा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 60 लाख महिलाएं देह व्यापार का शिकार हैं। भारत में महिलाओं की तस्करी तेजी से बढ़ी है। इस पर कब लगाम लगेगी?
 

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