जयललिता का जाना लोकप्रियता के एक युग का अंत!

ऋतुपर्ण दवे
*  जयललिता: एक करिश्माई युग का अंत!
*  जयललिता 21वीं सदी की महामहिला!


 

 
जयराम जयललिता, एक करिश्माई व्यक्तित्व, गजब का आकर्षण, लोगों का भरोसा और विश्वास कुछ यूं और इतना कि क्या बड़ा, क्या बूढ़ा, क्या पुरुष, क्या महिला सबने ‘अम्मा’ का दर्जा दिया और वो महिला नहीं महामहिला बन गईं।

अपनी इन्हीं विशेषताओं के चलते फिल्मी चकाचौंध से राजनीति में आने के बाद, खुद को जमीन से इस कदर जोड़ा कि देखते-देखते, देश-प्रदेश की सशक्त महिला नेता बनीं जिसे अपने राज्य में बेपनाह प्यार, अपनापन और जनसमर्थन मिला। तमिलनाडु की प्रगति को लेकर भले ही लंबी बहस हो लेकिन जयललिता की लोकप्रियता के उफानी बैरोमीटर का आंकड़ा कोई लांघ पाए, ये उन्होंने नामुमकिन कर दिखाया। 
 
कल्याणकारी योजनाओं के चलते गरीबों की मसीहा बनीं जयललिता ने भले ही कई बार अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को तवज्जो न दी हो लेकिन लोगों में अपने अम्मा ब्रांड को बेहद लोकप्रिय बना दिया। सस्ता, उम्दा और पौष्टिक भोजन, नमक, दवा, पानी यहां तक कि सीमेंट उपलब्ध कराकर अपने ‘अम्मा’ अवतार को इतना सशक्त और मजबूत बनाया कि वो देश की कद्दावर नेता बन बैठीं। यह उनका कमाल था कि आज लोकसभा में तीसरा सबसे बड़ा दल एआईडीएमके है। उनका जादू था कि लोग उनसे दिल से जुड़े, भावनात्मक तौर पर जुड़े और उनके प्रति समर्पण और चाहत का जो जुनून दिखा, यकीनन शब्दों की सीमाओं के परे है।

हालांकि दक्षिण भारत की राजनीति में ऐसे दृश्य नए नहीं हैं लेकिन जयललिता ने लोकप्रियता की जो लकीर खींची, उसको लांघ पाना लगभग असंभव है। एमजी रामचन्द्रन की लोकप्रियता भी कमोवेश ऐसी ही थी लेकिन तब और अब का दौर काफी बदला है। 4 जी और सोशल मीडिया की सशक्त भूमिका के बीच जयललिता की ऐसी लोकप्रियता, किसी चमत्कार से कम नहीं है वह भी तब, जब लोग, पल-पल अपनी भावनाएं और विचार बेबाकी से बेखौफ रखते हैं।  
 
जयललिता के चमत्कारी व्यक्तित्व की हकीकत के पीछे उनकी समाज के जरूरतमंद तबके के प्रति ईमानदार सोच और लोककल्याणकारी कार्यक्रमों का पुख्ता क्रियान्वयन रहा जिससे तमिलनाडु के लोग उनसे भावनात्मक रूप से जुड़े। राजनीति में लोकप्रियता की ऐसी मिशाल यदा-कदा दिखती है। यकीनन अभिनेत्री से जननेत्री बनीं जयललिता ने अपनी रहस्यमयी प्रकृति के बीच भले ही कानूनी पेचीदगियों, तमाम झंझावतों का सामना किया हो लेकिन राज्य के सर्वहारा वर्ग के कल्याण के लिए ऐसी योजनाएं लाईं जिसका लोग, बिना बिचौलिए शुद्ध और सीधा लाभ ले पाए।

तमिलनाडु के कुल खर्च का 37 प्रतिशत जनकल्याणकारी कार्यक्रमों की सब्सिडी पर खर्च होता है। यही सब्सिडी जहां महंगाई में चिंताहरण का काम करती रही और जयललिता को महानायक के रूप में भी स्थापित किया। तभी तो लाखों समर्थकों के लिए जयललिता 1971 की अपनी फिल्म ‘अधिपराशक्ति’ यानी सर्वशक्तिमान महिला शक्ति के असल किरदार के रूप में भी उभरीं।
 
 

 

24 फरवरी 1948 को मैसूर (कर्नाटक) में मांडया जिले के मेलुरकोट गांव के प्रतिष्ठित अय्यर ब्राह्मण परिवार में जन्मीं जयललिता के पिता की मृत्यु दो वर्ष की उम्र में हो गई थी। यहीं से उनके संघर्ष का दौर शुरू हुआ। मां वेदवल्ली ने बदले नाम संध्या से फिल्मों में काम शुरू किया। पढ़ाई में अव्वल जयललिता ने दसवीं में प्रदेश में दूसरा स्थान हासिल किया। 

वो वकील बनना चाहती थीं लेकिन तभी उन्हें फिल्म प्रोड्यूसर वीआर पुथुल का ऑफर मिला और मां कहने पर उन्होंने स्वीकार लिया। दूसरा मौका तब के जाने-माने तमिल अभिनेता एमजी रामचंद्रन ने दिया। फिर क्या था, दोनों की जोड़ी ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की और जयललिता, सफलता और लोकप्रियता के शिखर पर जा पहुंची। जीवन ने फिर करवट बदली। 140 तमिल, कन्नड़ और हिन्दी फिल्मों के शानदार सफर के बीच, अनचाहे ही वो एमजीआर के कहने पर 1982 में राजनीति में आईं। 1983 में विधायक और अन्ना द्रमुक पार्टी की प्रमुख प्रचारक बनीं। 1988 में एमजीआर की मृत्यु के बाद उनके अंतिम दर्शनों की खातिर जबरदस्त अपमान का घूंट पीने के बाद भी खुद को संयत रखा। पार्टी दो धड़े में बंटी। एक एमजीआर की पत्नी जानकी का तो दूसरा उनका। जयललिता ने स्वयं को एमजीआर का उत्तराधिकारी माना। बेहद संघर्ष और अपमानजनक दौर देखने पर भी विचलित नहीं हुई। 
 
1989 में विधानसभा की 27 सीटें जीत कर वो विपक्ष की नेता बनीं ही थी कि 25 मार्च 1989 को विधानसभा में उनके साथ सत्तासीन डीएमके सदस्यों ने हाथापाई और जबरदस्ती की। जब फटी साड़ी में ही वो सदन के बाहर निकलीं तो लोगों को नागवार गुजरा। यहीं उन्होंने कहा कि वो अब सदन, मुख्यमंत्री बनकर ही लौटेंगी जो कर दिखाया। 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस से समझौता कर 234 में 225 सीटें जीतीं। बहुमत में आईं और मुख्यमंत्री बनकर ही सदन में कदम रखा। यहीं से राजनीतिक कद में जबरदस्त बढ़ोत्तरी की और तमिलनाडु की ‘अम्मा’ बन गईं। 
 
इतना ही नहीं तमिलनाडु की राजनीति में 32 वर्षों का मिथक तोड़ते हुए बीते विधानसभा चुनावों में उनके दल ने न केवल लगातार दोबारा बहुमत हासिल किया बल्कि 6वीं बार मुख्यमंत्री बनीं। इससे पहले 2014 के आम चुनाव में जबरदस्त मोदी लहर के बीच एआईडीएमके ने 39 में से 37 सीटों पर विजय हासिल कर सनसनी फैला दी थी। यकीनन वो विरली थीं, रहस्मयी थीं, जबरदस्त संघर्षशील थीं। 
 
ऊंचे मुकाम पर पहुंच कर भी जनता के साथ जज्बाती रूप में इस तरह जुड़ीं जो उनके निधन के बाद लोगों का क्रन्दन, विलाप और भावनात्मक जुड़ाव ऐसा दिखा मानो जयललिता हर परिवार की बड़ी, बूढ़ी ही नहीं बल्कि मुखिया हों। तमिलनाडु की राजनीति में निश्चित रूप से एक निर्वात बन गया है। राजनीति में नब्ज को बखूबी पहचानने वाली जयललिता ने कभी किसी के साथ हाथ मिलाने या साथ छोड़ने में कोई गुरेज नहीं किया। लेकिन पकड़ भी ढ़ीली नहीं होने दी। 
 
अब इतिहास के पन्नों में जयललिता वो शख्सियत होंगी जिसके बचपन से लेकर अल्हड़ता, विद्यार्थी से लेकर अदाकारा और राजनेता से लेकर लोकमाता बनने की प्रेरक कहानी होगी। निश्चित ही भारतीय राजनीति का जयललिता रूपी ऐसा दैदीप्यमान नक्षत्र असम अनंत में विलीन हो गया है जो शायद ही राजनीति के क्षितिज में ऐसा उदय हो पाए!

 
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