life in the times of corona : कोरोना के कहर के बीच एक पहल ऐसी भी

ज्योति जैन
life in the times of corona


कोरोना के कहर से चल रहे लॉकडाउन ने कई बातें सोचने पर मजबूर कर दिया है..।
 
जिनमें  से एक है मानवता की सेवा...समाज की सेवा...मुझे भी लगा कि मैं किसी ज़रूरतमंद के काम आ सकूं.. उसे भोजन करा सकूं.... किसी भी तरह की मदद कर सकूं... लेकिन स्वयं को असहाय पाती हूं...।..।लेकिन एक मिनट...! मैं असहाय नहीं हूं.... 
 
मैं अपने सेवक वर्ग की,जो हमेशा ही मेरे काम आते हैं, उनकी यथासंभव सहायता कर रही हूं.. और यकीन मानिए.., ये सुकून देने वाला है..।
 
अपने घरों में काम करने वाले सेवक भी मनुष्य हैं।। उनकी भी अपनी जरूरतें हैं, परिवार है, डर है, असुरक्षा है, चिकित्सा आवश्यकताएं हैं। क्या हम एक हाथ बढ़ाकर उनका साथ दे सकते हैं, जरूर दे सकते हैं। मन से जुड़कर देखिए, थोड़ा मुड़कर देखिए, रूककर सोचिए कि कैसे उनके और आपके हालातों में अंतर है... और किस तरह से आपकी एक छोटी सी मदद उनकी आंखों की चमक बढ़ा देती है। उनको तसल्ली और हौसला देकर पहल कीजिए। 
 
हम सब सक्षम लोग अपने-अपने सेवक वर्ग की सहायता करें तो ये भी एक बड़ी सहायता होगी...यहां मुझे श्रीराम के एक भजन की दो पंक्तियां याद आती है... *मनुजता को कर विभूषित...मनुज को धनवान करिए...ध्यान धरिए..बस..यही राष्ट्र आराधन है....

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