भारत सबका सब भारत के!

अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)
Lok Sabha Elections 2024: दो हजार 24 के लोकसभा चुनाव परिणाम में जो जनादेश आया है वह भारत के आम मतदाताओं की अनोखी दार्शनिक अभिव्यक्ति है। भारत के राजनैतिक दलों और भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा निर्देश भी इस जनादेश में उजागर हुआ है। चुनाव परिणाम से देश में जो सरकार बनेगी उसके लिए भी और देश के सभी राजनैतिक दलों और विचारधाराओं के लिए भी एक स्पष्ट संदेश हैं। यह संदेश हम सबके लिए है चाहे वह सरकार बनाए या विपक्ष में रहे। यह संदेश भारतीय दर्शन, जीवन पद्धति और सामाजिक जीवन की सनातन मर्यादा का मूल बिंदु है कि 'भारत सबका है और सब भारत के है।' भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की कोख से निकले भारतीय संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग शब्दों का स्पष्ट संकेत है कि भारतीय जनता की जीवन शैली का सार सबको साथ लेकर आपसी मेलजोल से शांतिमय जीवन जीते रहना ही भारतीय लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना या सनातन विरासत हैं। ALSO READ: अगला लोकसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ेंगे शशि थरूर?
 
भारतीय राजनीति में जितनी भी राजनैतिक विचारधाराएं हैं सबको अपनी राजनैतिक सामाजिक धार्मिक, आध्यात्मिक और आर्थिक समझ को अपने अपने तरीके से भारतीय मतदाता या जनता के समक्ष खुलकर रखने का पूरा पूरा अवसर और अधिकार है। भारतीय राजनीति में खासकर आमचुनावों के नतीजे अपने आप में मौलिक दिशा निर्देश के रूप में भारतीय राजनीति को निरंतर मिलते रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र एक ऐसा लोकतंत्र है जिसमें प्रत्येक आम चुनाव में मतदाताओं ने राजनैतिक दलों को अपने जनादेश में भारतीय मतदाता की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता के स्पष्ट संकेत दिए हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि आमचुनावों में भारतीय मतदाता के जनादेश ने भारत लोकतंत्र में एकाधिकारवादी और मनमानी कार्यशैली को सबक सिखाया है। ALSO READ: चुनाव में 121 निरक्षर उम्मीदवारों ने आजमाया भाग्य, वोटर्स ने सभी को नकारा
 
भारतीय लोकतंत्र में लोकसमझ यह भी है कि आप एक निश्चित संविधान सम्मत कार्यकाल तक कार्य या दायित्वों को निर्वहन करने के लिए चुने गए हैं। चुने गए जनप्रतिनिधि और राजनैतिक दलों को मतों के समर्थन से यह भ्रम हो सकता है कि हम सर्वशक्तिमान और अपरिहार्य है। पर भारतीय मतदाता अपने जनादेश को लेकर आजादी के बाद से प्रत्येक आम चुनाव में एक दम स्पष्ट संकेत देने से पीछे नहीं रहता है। राजनैतिक दलों के समर्थक, कार्यकर्ता और कर्ताधर्ता अपनी विवेकशीलता को अक्सर त्याग दिया करते है पर भारतीय मतदाता एक समान सोच विचार और सामाजिक धार्मिक आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि का न होते हुए भी लोकतंत्र और संविधान की तेजस्विता को लेकर चैतन्य बना रहता है। साथ ही साथ अपनी निर्भीक और लोकतांत्रिक भूमिका को कभी नहीं भूलता है। ALSO READ: लोकसभा के लिए चुनी गईं 73 महिला सांसद, पिछले चुनाव के मुकाबले घटी संख्या
 
2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों से जो राजनैतिक घटनाचक्र भारतीय राजनीति में चला, उसके परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में जो असंतुलन उभरा उसका पटाक्षेप 2024 के जनादेश में स्पष्ट दिखाई देता है। 2024 के लोकसभा के आम चुनाव एक अजीब असमंजस, भयग्रस्त मानसिक तनाव और आशा निराशा का राजनैतिक वातावरण होने के बाद भी शांतिपूर्ण तरीके से आमचुनाव सम्पन्न हुए यह भारतीय लोकतंत्र की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता और परिपक्वता का जीवंत उदाहरण है। भारतीय राजनीति और राजनेता निरन्तर अकारण उत्तेजित होते रहते हैं उनमें शांतचित्तता का निरन्तर अभाव बना रहता है। पर इसके एक दम उलट भारतीय मतदाता धीरज के साथ मौन रहकर हमेशा चुनाव परिणाम में ही बोलता है।
 
भारतीय मतदाता भारतीय राजनीति के प्रत्येक राजनैतिक दल को चुनाव में जीताता भी और हराता भी है। भारतीय मतदाता के जनादेश की एक अनोखी विशेषता यह भी है कि उसने भारतीय राजनीति के प्रत्येक राजनैतिक दल या विचार को तबीयत से हराया और जिताया है। भारतीय राजनीति में मतदाताओं के जनादेश में यह भी हमेशा निहित रहता है की चुनावी हार जीत पहली और अंतिम नहीं है। लोकतंत्र तो तात्कालिक हार जीत की राजनीति का अंत नहीं अंतहीन लोक अभिव्यक्ति का निरन्तर और नूतन परिवर्तनधर्मी सिलसिला हैं।
         
राजनीति में राजनैतिक दल केवल अपनी पतंग को ही निरंतर ऊंची उड़ान भरते रहने के आदी हो चुके हैं। पर भारतीय मतदाता किसी को भी आजीवन पतंगबाजी का एकाधिकार नहीं देता। भारतीय आम चुनावों के परिणामों ने छोटे से छोटे राजनैतिक समूहों से लेकर अपने आप को अजेय या अपरिहार्य माननेवाले राजनैतिक समूहों को अपने जनादेश से एक संदेश ज़रूर दिया है कि लोकतंत्र केवल अपनी अकेली राजनैतिक जमात का एकाधिकार नहीं है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन और इंडिया गठबंधन के रूप में दो भारतीय राजनीति के गठबंधनों को भारतीय लोकतंत्र में अपनी लोक कल्याणकारी भूमिका को निभाते हुए भारतीय लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने की भूमिका में खड़ा कर दिया है।
 
पचहत्तर साल की भारतीय लोकतंत्रात्मक गणराज्य की राजनीति में भारतीय मतदाता ने सत्तारूढ़ और विपक्षी राजनीतिक दलों को भारत के एक अरब 50 करोड़ नागरिकों के सपनों में रंग भरने की राजनीति खड़ी करने का जनादेश दिया है। अपने निजी और अपनी राजनैतिक जमातों के सपनों में रंग भरने के लिए नहीं। सबको इज्जत सबको काम देना ही 2024 के आमचुनाव में भारतीय मतदाता का स्पष्ट जनादेश है। जनादेश के इस अर्थ को समझकर पक्ष-विपक्ष दोनों को अपनी अपनी राजनैतिक भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। यही लोकतंत्रात्मक राजनीति का मूल है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)
 

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