Hanuman Chalisa

मकर संक्रांति विशेष : इस बार कुछ और अच्छा करते हैं...

डॉ. छाया मंगल मिश्र
देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले ने कहा है- 'और अधिक मानवीय बनो, और अधिक समावेशी बनो, और अधिक दयालु बनो, हम अपने बच्चों को सिखाएं और खुद भी सीखेंगे। जागो, उठो शिक्षित बनो, परंपराएं तोड़ दो, मुक्त बनो, हम साथ आएंगे और सीखेंगे।'
 
ये सब कर गुजरने का समय फिर आया है। पक्षियों की मौत और महामारी से मरने वालों की संख्या हमें चेता रही है। 1 करोड़ लोग कोरोना से जंग में जीते हैं और 1.50 लाख जान खो चुके हैं। इलाज ढूंढा जा रहा है। इस बार मकर संक्रांति पर नए रिवाज बनाकर हम भी इसमें अपने स्तर पर सहयोग कर सकते हैं। बातें पुरानी लगेंगी पर कहानी बन जाएगी।
 
मकर संक्रांति को मुख्यत: दान-पुण्य का दिन माना जाता है। मकर संक्रांति का उद्गम बहुत प्राचीन नहीं है। ईसा के कम से कम एक सहस्र वर्ष पूर्व ब्राह्मण एवं औपनिषदिक ग्रंथों में उत्तरायण के 6 मासों का उल्लेख है जिसमें 'अयन' शब्द आया है जिसका अर्थ है 'मार्ग' या 'स्थल। गृह्य सूत्रों में 'उदगयन' उत्तरायण का ही द्योतक है, जहां स्पष्ट रूप से उत्तरायण आदि कालों में संस्कारों के करने की विधि वर्णित है। किंतु प्राचीन श्रौत, गृह्य एवं धर्मसूत्रों में राशियों का उल्लेख नहीं है और उनमें केवल नक्षत्रों के संबंध में कालों का उल्लेख है।
 
याज्ञवल्क्य स्मृति में भी राशियों का उल्लेख नहीं है, जैसा कि विश्व रूप की टीका से प्रकट है। 'उद्गयन' बहुत शताब्दियों पूर्व से शुभ काल माना जाता रहा है, अत: मकर संक्रांति जिससे सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है, राशियों के चलन के उपरांत पवित्र दिन मानी जाने लगी। मकर संक्रांति पर तिल को इतनी महत्ता क्यों प्राप्त हुई, कहना कठिन है। संभवत: मकर संक्रांति के समय जाड़ा होने के कारण तिल जैसे पदार्थों का प्रयोग संभव है। ईस्वीं सन् के आरंभ काल से अधिक प्राचीन मकर संक्रांति नहीं है। पर हम इस बार कुछ नए दान की शुरुआत करें, जो राष्ट्रहित में हों, जनहित में हों, वसुंधरा हित में हो।
 
अपने आस-पास, शहर और देश की प्रकृति के नाम अपने दान का सदुपयोग करें। इस बार पौधे फूलों के साथ फल के भी बांटें, आस-पास के बगीचों को हरियाएं। हमारे शहर में ही पिछले 10 सालों में 152 करोड़ रुपए खर्च हुए, पर हरियाली नदारद-सी है। निगम में 749 कॉलोनियों में बगीचों का रिकॉर्ड है। 48 पानी की टंकियां बगीचे की जमीन पर बनी हैं। 249 बगीचों का रिकॉर्ड ही नहीं है। 47 महापुरुषों की प्रतिमाओं के आसपास के क्षेत्र और 6 बगीचों की जमीं पर जोनल कार्यालय खोल दिए गए।
 
14 श्मशान की खाली जमीनों को बगीचा बताया गया तो 3 छतरियों की खाली जमीन की हरियाली को। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी भी बनती है कि अपने अधिकार की रक्षा करें, विरासत में अपनी पीढ़ियों को हरियाली सौंपें। उनसे मिलने वाली प्राणवायु आपके परिवार और पति के साथ आपको भी स्वस्थ जीवन देगी। इसे आप समूह में भी कर सकते हैं। साथ ही पक्षियों के लिए मौसमानुकूल घरों का निर्माण करें, ये लकड़ी से लेकर अन्य वस्तुओं से घरों में भी बनाए जा सकते हैं।
 
कटते पेड़, बढ़ते सीमेंटों के जंगल उनके जीवन को दूभर कर रहे हैं। बीज भी वितरित किए जा सकते हैं। प्लास्टिकमुक्त जीवन को अपनाने के लिए कपड़ों की थैलियां। धर्मग्रंथ व संस्कारों को बढ़ावा देने वालीं पुस्तकें, महापुरुषों की जीवनियों की किताबें। ऊर्जा बचाने वाले बल्ब, सोलर से चलने वालीं वस्तुएं, भारत में बनी होने के साथ आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने वाली महिलाओं द्वारा निर्मित की गईं वस्तुएं, लघु उद्योगों में बनी हुई हों, उन्हें भी बढ़ावा देने के उद्देश्य से ये काम अत्यधिक पुण्यदायी ही होगा। चाहें तो मूक प्राणियों के लिए भोजन-पानी की स्थायी व्यवस्था के लिए समूह बनाकर पहल करें। गौशाला, अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम भी जाया जा सकता है। पानी की बचत के लिए बाजार में उपलब्ध नोजल बांटें, ये घरों में अत्यधिक जरूरी व उपयोगी हैं।
 
हस्तनिर्मित वस्तुओं का प्राथमिकता से प्रयोग करें। 'R3' वाली वस्तुओं का इस्तेमाल करें, जो 'रियूज, रिसाइकल, रिड्यूज' हो सकें। ये कुछ छोटे-से उदाहरण हो सकते हैं, जो जिंदगी को बदलने में सहायक हो सकते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि दान देने और ज्ञान ग्रहण करने के लिए किसी समय का इंतजार नहीं करना चाहिए। पता नहीं, भविष्य में सही अवसर मिले या न मिले?
 
हेमाद्रि कल्प के मुताबिक अपनी राशि के अनुसार श्रद्धा से विधिपूर्वक योग्य व सत्पात्र व्यक्ति को दान देना चाहिए यानी जिसे उसकी जरूरत हो या दान का सदुपयोग होता हो। आज हमारे देश को, प्रकृति को, समाज को और भविष्य को इसकी आवश्यकता है।
 
हर धर्म दान के महत्व को स्वीकार करता है। ऐसे लोगों को दान कभी नहीं करना चाहिए, जो पदार्थ का दुरुपयोग करते हैं, खुद के हित में सोचते हैं, कभी संतुष्ट नहीं होते, दान लेने के बाद दानदाता का अपमान करते हैं। दान देने के बाद कभी भी पश्चाताप नहीं करना चाहिए। ध्यान रखें कि आप किसी प्रसिद्धि या यश प्राप्ति के दिखावे के लिए दान नहीं कर रहे। आपको ईश्वर ने इस योग्य बनाया है। ईश्वर का आभार मानना चाहिए। दान में दी जाने वाली वस्तुएं उत्तम, सदुपयोग होने वाली होना चाहिए।
 
थोड़ा प्रयास कीजिए फिर देखिए कि हमारी जिंदगी के आनंद की रंग-बिरंगी पतंग हमारे किए इन दान-धर्म के पुण्यों की डोर पर सवार हो, अपने कर्मों का मांजा चढ़ाए जब राशियों के आसमान में इतराएगी और प्रकृति अपने सुखद रूप से झूमकर आशीर्वाद बरसाएगी, तब हमारा मन अपने आप कह उठेगा- 'तिल गुड़ घ्या आणि गोड-गोड बोल्या', क्योंकि ये सब काम न केवल आपके सुहाग को वरन ब्रह्मांड में बसने वाले प्रत्येक चर-अचर के जीवन में भी मिठास भरने में सहायक होंगे, साथ ही मास्क, सैनिटाइजर व सोशल डिस्टेंसिंग को तो भूलना ही नहीं है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Heart attack symptoms: रात में किस समय सबसे ज्यादा होता है हार्ट अटैक का खतरा? जानिए कारण

शरीर में खून की कमी होने पर आंखों में दिखते हैं ये लक्षण, जानिए समाधान

क्या बार-बार गरम ड्रिंक्स पीने से बढ़ सकता है कैंसर का खतरा? जानिए सच

लॉन्ग लाइफ और हेल्दी हार्ट के लिए रोज खाएं ये ड्राई फ्रूट, मिलेगा जबरदस्त फायदा

Hair Care: बालों और स्कैल्प के लिए कॉफी कितनी फायदेमंद है? जानें पूरे फायदे और नुकसान

सभी देखें

नवीनतम

Winter Superfood: सर्दी का सुपरफूड: सरसों का साग और मक्के की रोटी, जानें 7 सेहत के फायदे

Kids Winter Care: सर्दी में कैसे रखें छोटे बच्चों का खयाल, जानें विंटर हेल्थ टिप्स

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

Jhalkari Bai: जयंती विशेष: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को धूल चटाने वाली वीरांगना झलकारी बाई का इतिहास

Guru Tegh Bahadur: गुरु तेग बहादुर का 350वां शहीदी दिवस, जानें उनके 6 खास कार्य

अगला लेख