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चांद के अनदेखे चेहरे को देखने की कवायद...

शरद सिंगी
रविवार, 10 फ़रवरी 2019 (14:05 IST)
चन्द्रमा को निहारने का आकर्षण किसे नहीं होता। आकाश में लटके चांद पर मनुष्य की निगाह जब भी पड़ती है तो थोड़ी देर के लिए तो ठहर ही जाती है और यदि चांद पूर्णिमा का हो तो उस पर से नज़र को हटाने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है। 
 
सदियों से चांद मनुष्य के लिए सुंदरता का पैमाना भी है और रहस्य भी। बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए इस पर अनेक प्रकार की रहस्यमय कहानियां गढ़ी गई हैं और साहित्य रचा गया है। मुख्य बात यह है कि चन्द्रमा अपनी धुरी पर घूमते हुए भी पृथ्वी को अपनी पीठ नहीं दिखाता जिसकी चर्चा हम पहले कर चुके हैं।
 
चन्द्रमा की जो सतह पृथ्वी से दिखती है उसे तो खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक दूरबीन से भी देख लेते हैं, किंतु उनकी जिज्ञासा पीछे की उस सतह को देखने और समझने की अधिक होती है जिसे वे देख नहीं पाते। 
 
 
अमेरिका ने चांद पर पहली बार नील आर्मस्ट्रांग को उतारने के बाद अगले पांच अभियानों में कुल 12 अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारा, किंतु जब वहां विशेष कुछ नहीं पाया तो उसकी रुचि चांद पर से हट गई। उसी तरह रूस ने भी चांद में रूचि लेना छोड़ दिया, किंतु जब भारत और चीन ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्रगति की तो उनका प्रथम लक्ष्य चांद ही था। 
 
चीन ने अपना स्पेस प्रोग्राम एक दशक पूर्व आरंभ किया था। जिस तरह भारत में चन्द्रमा के बारे में अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं उसी तरह चीन में भी एक बहुत प्रचलित कथा है जिसके अनुसार एक सुंदर युवती अमरता की गोली खाकर चांद पर उड़ गई थी और अब वह चांद की देवी बन चुकी है, जिसका नाम चेंग है। उसी के नाम पर चीन के स्पेस प्रोग्राम का नाम रखा गया है।
 
चांद, पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है। किसी भी ग्रह या उपग्रह पर मनुष्य को उतारने से पहले उसकी कक्षा में रोबो यान भेजकर उसकी जांच और नक़्शे तैयार किए जाते हैं। यह रोबो यान उस ग्रह या उपग्रह की कक्षा में चक्कर लगाता है। उन नक्शों की जांच के बाद सतह का उचित हिस्सा तलाशा जाता है जहां बिना चालक वाला यान उतारा जा सके। फिर चालकरहित यान भेजे जाते हैं जो उसकी सतह पर उतरते हैं। तीसरे चरण में किसी प्राणी को भेजा जाता है और अंतिम चरण में मनुष्य को।
 
चीन ने अपना प्रथम चरण पूरा करने के बाद, दूसरे चरण के यान को चन्द्रमा पर उतार दिया। चीन का लक्ष्य था चन्द्रमा का वह हिस्सा जो पृथ्वी से दिखता नहीं है। यान उतारने के बाद समस्या थी कि उसके साथ संचार संबंध कैसे स्थापित किया जाए, क्योंकि यान तो चन्द्रमा के दूसरी तरफ होगा और संचार सिग्नल चन्द्रमा को भेदकर पृथ्वी पर नहीं पहुंच सकते।

इस समस्या को सुलझाने के लिए एक उपग्रह को चन्द्रमा की कक्षा में रखा गया। पहले सतह वाले यान से सिग्नल चन्द्रमा के आस-पास घूम रहे उपग्रह को मिलते हैं जिन्हें वह तुरंत पृथ्वी पर स्थित नियंत्रण कक्ष की ओर रवाना कर देता है।
 
चीन के चेंग मिशन का चौथा यान चेंग-4 चन्द्रमा की दूसरी तरफ 2 जनवरी को सफलतापूर्वक उतार दिया गया। यह यान अपने साथ कुछ कपास के बीज भी ले गया था जिनमे वह कोपलें भी प्रस्फुटित करने में सफल रहा किन्तु एक दिन बाद चांद पर रात आरंभ हो गई और तापमान शून्य से 52 डिग्री नीचे पहुंच गया जिसे अंकुरित  पौधे बर्दाश्त नहीं कर पाए और झुलस गए। कपास का यह पौधा ऐसा पहला पौधा बन गया जिसे पृथ्वी के बाहर उगाया गया हो।
 
अब भारत की बात करें। भारत का चंद्रयान-1 सन् 2008 में चन्द्रमा पर अपना परचम लहरा चुका है और सबसे पहले उसने ही दुनिया को बताया कि चन्द्रमा की मिट्टी में पानी के कण हैं किंतु यह तरल रूप में नहीं है। इस खोज के बाद दुनिया में चन्द्रमा को फिर से जानने की जिज्ञासा बढ़ी। 
 
इस वर्ष भारत की चंद्रयान-2 को उड़ाने की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसकी लागत लगभग 800 करोड़ है। इसका उद्देश्य चांद की टोपोग्राफी की जानकारी इकट्ठी करना, वहां कौनसे खनिज छुपे हैं उन्हें पहचानना और पानी की खोज में जुटना। भारत का इरादा इस यान को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने का है जो अभी तक अनछुआ है। यदि वहां पानी मिल जाता है तो चांद पर मनुष्य की कॉलोनी बसाने के सपने की राह से एक रोड़ा और दूर होगा। फिर समस्या रहेगी केवल ऑक्सीजन की।
 
तो हमें इंतज़ार रहेगा कि कब हमारा चन्द्रयान-2 चन्द्रमा की सतह पर उतरे और कब हमें चन्द्रमा की और अधिक जानकारी मिले। अब तक की सफलताओं को देखते हुए अब कुछ भी असंभव नहीं लगता। अब तो हमें अगली सफलताओं की ख़ुशख़बरों का निरंतर इंतज़ार रहेगा। 

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