हैवानियत का छोर नहीं

अनिल शर्मा
कठुआ की हैवानियत शांत हुई नहीं थी कि इंदौर के राजबाड़ा क्षेत्र में मासूम बच्ची का शव मिलने की खबर ने दहला दिया। कुछ दिन ही बीते थे कि मंदसौर में फिर एक बच्ची एक हैवान का शिकार हो गई। इंदौर के मामले में आरोपी को फांसी की सजा फिलहाल मिली है (फांसी नहीं) और मंदसौर की घटना हो गई।

बच्चियों के साथ रेप और हत्या की ये दुर्घटनाएं मप्र में फांसी का कानून लागू हो जाने के बावजूद कम नहीं हो रही हैं। इससे लगता है कि इन हैवानों के लिए अब फांसी की सजा भी बेमानी-सी हो गई है। आखिरकार इनकी सजा कैसी और क्या होनी चाहिए ताकि इन्हें सजा और ऐसे हैवानों को जो भविष्य में ऐसी घटना कारित कर सकते हैं, सबक हासिल कर सके।
 
मप्र सरकार बच्चियों के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना सहित अनेक योजनाएं चला रही हैं। उनकी सुरक्षा के लिए भी योजनाएं चल रही हैं, फिर भी अन्य राज्यों की बनिस्बत मप्र में ही बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं।

मप्र सरकार का सूचना और रक्षा तंत्र कमजोर कहा जाए या कहा जाए कि सरकारी नौकरी पाने के लिए जो खर्च किया जाता है उसकी वापसी (मुनाफे सहित) के चक्कर में लोगों को इस बात की फुर्सत ही नहीं कि वे अपने कर्तव्य के प्रति थोड़ा-बहुत उत्तरदायित्व निभा लें। इंदौर के एक थाने में एक व्यक्ति उसे लूटे जाने की शिकायत करने पहुंचा तो उसे जवाब मिला कि भैया, जो हो गया उसे भूल जा। हमें गुंडों को पकड़कर उनसे दुश्मनी मोल नहीं लेनी।
 
बच्चियों के साथ होने वाली इस तरह की घटनाएं आखिरकार कब रुकेंगी, कहा नहीं जा सकता। देशभर में कहीं-न-कहीं रोजाना 2-3 घटनाएं होती हैं। कांग्रेस के शासन में भी इस तरह की घटनाएं होती थीं, मगर बच्चियों के साथ रेप और हत्या की संख्या आज की बनिस्बत कम होती थीं। कुछ दिनों की चिल्ल-पौ के बाद मंदसौर का ये कांड भी सजा मिलने के बाद ठंडा हो जाएगा एक नए कांड के इंतजार में।
 
भाजपा के शूरवीर जो मंदिर बनाने के नाम पर सत्ता में आए थे, अपने प्रदेश की बच्चियों को सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं। जब तक समाज नहीं जागेगा, तब तक इस तरह के कांड होते रहेंगे। और समाज इसलिए नहीं जागेगा, क्योंकि समाज के लोग चिल्ला लेंगे, भाषणबाजी हो जाएगी, पेपरबाजी हो जाएगी और फिर सब अपने-अपने घर! किसी को किसी से कुछ लेना-देना नहीं।
 
और हैवानियत फिर कुछ दिनों के विराम के बाद एक नया कांड कर हलचल मचा देगी।
 

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