चढ़ता बुखार सोशल मीडिया का

भावना पाठक
इक्कीसवीं सदी को अगर मीडिया युग का नाम दिया जाए तो यह अतिशयोक्ति न‍हीं होगी। हमारा एक दिन भी मीडिया से रूबरू हुए बिना नहीं गुजरता। मीडिया मतलब सिर्फ समाचार पत्र, रेडियो या न्यूज चैनल ही नहीं है, बल्कि मीडिया माने वो हर एक माध्यम है, जिसके जरिये हम सूचनाओं और अभिव्यक्ति का आदान प्रदान करते हैं। फिर चाहे वह व्हाट्सएप्प, हाइक या अन्य मैसेंजर्स के जरिए लोगों के संपर्क में रहना हो, ब्लॉगिंग और सोशल साइट्स के माध्यम से अपने विचार दूसरों के साथ साझा करना हो या दूसरों के विचारों से अवगत होना हो। इन सबके के लिए हम मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। किस सिनेमाघर में कौन-सी फिल्म लगी है, शहर में आज कहां क्या विशेष हो रहा है, मौसम का मिजाज कैसा रहेगा, मीडिया यह सारी खबर रखता है।

मीडिया ने हमें एक दूसरे से बेहतर ढंग से जोड़ दिया है, हमारी कनेक्टिविटी बढ़ा दी है - फेसबुक यह बता देता है कि आज किसका जन्मदिन है, ताकि आप उसको बधाई दे सकें। अगर आप अपने बच्चे के स्कूल या कॉलेज के व्हाट्सएप्प ग्रुप में है, तो व्हाट्सएप्प आपको यह बता देता है कि आज उसके स्कूल में क्या खास है, एसएमएस अलर्ट से यह पता चल जाता है कि आपका बच्चा आज फलां क्लास में उपस्थित नहीं था। कई कॉलेज में यह सुविधा है कि आप अपने बच्चे की ऑनलाइन अटेंडेंस भी देख सकते हैं।
 
ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन एग्जाम, ई-बैंकिंग, इंटरनेट के जरिये अपने फोन से बिजली बिल से लेकर फोन तक का बिल भरना, टिकट करना सब कुछ आज एक क्लिक पर हो जाता है और यह संभव हो पाया इंटरनेट मीडिया की वजह से। सोशल मीडिया का हस्तक्षेप आज हर क्षेत्र में साफ देखा जा सकता है। इसके दबाव के चलते सरकार को कई निर्णय वापस लेने पड़े। संचार की प्रक्रिया पूर्ण तभी मानी जाती है, जब संचार दो तरफा हो। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण सोशल मीडिया है, जहां किसी घटना की प्रतिक्रिया तुरंत सामने आ जाती है। पर हम सिक्के के दूसरे पहलू को नजरअंदाज नहीं कर सकते, अगर इंटरनेट ने हमें बहुतों से जोड़ा है तो तोड़ा भी कम नहीं है। खासकर सोशल मीडिया ने।
 
आज सोशल मीडिया का जादू लोगों के सिर चढ़ बोल रहा है। स्मार्टफोन पर इंटरनेट की सुविधा ने सोशल मीडिया को और ताकतवर बना दिया है। यह मायावी दुनिया बच्चों और युवाओं को खासा आकर्षित करती है। हालांकि 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स अपना अकाउंट बनाने की अनुमति नहीं देती, लेकिन इन बच्चों द्वारा फेक अकाउंट बनाने से रोकने का कोई कारगर उपाय भी इन साइट्स के पास नहीं है। नतीजतन अधिकांश बच्चे 13 वर्ष से पहले ही सोशल साइट्स की चकाचौंध की गिरफ्त में आ जाते हैं। नो द नेट डॉट ओ आर जी डॉट यू. के. के अनुसार लगभग 59% बच्चे 10 वर्ष की उम्र में ही सोशल साइट्स का इस्तेमाल कर चुके हैं। 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सबसे ज्यादा अकाउंट फेसबुक पर हैं। 
 
अप्रैल 2016 की ही घटना लीजिए, कोयम्बटूर की एक 17 वर्षीय बालिका ने इसलिए आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसके परिजनों ने उसको फोन दिलाने से इनकार कर दिया था। आजकल बच्चे फोन और दूसरे गैजेट्स का इस्तेमाल सुविधा से ज्यादा स्टेटस सिंबल के रूप में करते हैं। उनकी जि‍द्द पूरी न करो, तो वो आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।
 
बच्चे तो बच्चे बड़े भी इसकी गिरफ्त में हैं। सोशल साइट्स पर घंटों किसी अनजान शख्सियत से बातें करना, सेल्फी अपलोड कर बार-बार यह चेक करना कि उस फोटो को कितने लाइक्स या कमेंट्स मिले, मानो आज का शगल हो गया हो। हम किस वक्त क्या महसूस कर रहे हैं, कहां गए, क्या खाया, आज किससे अनबन हुई यह सब स्टेटस अपडेट पर होता है, रही सही कसर इमोजीस ने पूरी कर दी। साइबर साइकोलॉजी बिहेवियर एंड सोशल नेटवर्किंग जर्नल के अनुसार वो लोग जो फेसबुक पर एक घंटे से ज्यादा समय बिताते हैं, उनका उनके साथी से फेसबुक को लेकर विवाद होता है और वह विवाद बढ़ते बढ़ते तलाक की शक्ल अख्तियार कर लेता है। 
 
फेसबुक की वजह से भारत सहित दुनिया के कई देशों में तलाक के कई मामले सामने आए हैं। भले ही हम रियो ओलंपिक में मैडल पाने में छोटे-छोटे देशों से भी बहुत पीछे रहे हों, लेकिन साइबर बुलिंग यानि साइबर शरारत में हम तमाम देशों को पछाड़ कर दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं। कई बार जानबूझकर, तो कई बार इसके दुष्परिणामों से अनजान लोग दूसरों को सोशल साइट्स पर परेशान करते हैं, इन साइट्स पर उस शख्स के बारे में उलटी सीधी बातें लिखते हैं, जिससे उनकी नहीं पटती उनका अकाउंट हैक कर वो उस अकाउंट से दूसरों को अश्लील मैसेज भेजते हैं, उसकी फोटो मॉर्फ कर उसको दूसरों के सामने शर्मिंदा करते हैं। ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं, जहां लड़की ने अगर लड़के की फ्रेंडशिप या प्रपोजल को नहीं स्वीकारा वहां लड़के ने उससे बदला लेने के लिए साइबर बुलिंग को हथियार की तरह इस्तेमाल किया है।
कितनी सुरक्षित हैं सोशल साइट्स
सोशल साइट्स पर कोई भी अपनी असली पहचान छुपा आपसे दोस्ती कर आपके और आपके परिवार के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है। इन साइट्स पर आपकी अपलोडेड फोटो को मॉर्फ कर उन्हें अश्लील बना आपको ब्लैकमेल कर सकता है। आपका विश्वास जीत आपको कहीं मिलने के लिए बुलाकर किसी अनहोनी को अंजाम दे सकता है। बेहतर होगा की आप सोशल साइट्स का इस्तेमाल सोच समझ कर करें, किसी अनजान व्यक्ति को अपने बारे में कोई भी जानकारी देने से बचें। हर किसी की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट न करें और हो सके तो अपनी फोटो अपलोड करने से भी बचें।
क्यों जरूरी है मीडिया लिटरेसी 
सोशल मीडिया के नकारात्मक पहलुओं से बचने का तरीका यह नहीं है की हम इससे पूरी तरह से पल्ला झाड़ लें। यह तो उसी तरह हुआ की हम सड़क दुर्घटना से बचने के लिए अपने आप को घर में कैद कर लें, बल्कि इसके विपरीत ज़रुरत तो यह है कि हम अधिक से अधिक मीडिया सजग बनें, मीडिया शिक्षित हों, तभी हम खुद और अपने बच्चों को इसके दुष्प्रभावों से बचा सकते हैं। इसी मीडिया सजगता को दूसरे शब्दों में मीडिया लिटरेसी कहा जाता है। देखा जाए तो मीडिया साक्षरता आज समय की मांग है, जिसकी अनदेखी अब और नहीं की जा सकती। दिन दूने, रात चौगने बढ़ते साइबर क्राइम जिसके हम भारतीय बड़ी आसानी से शिकार बन जाते हैं, इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
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