Festival Posters

बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापारी

आरिफा एविस
एक जमाना था, जब गांधी जी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और भारत की जनता गांधी जी साथ खड़ी थी। भारत के कुछ लोगों को अपनी इस बहिष्कार की गलती का अहसास हुआ, कि पूरी दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है और भारत तकनीकी तौर पर पिछड़ गया है।



प्राचीन वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल कर नहीं सकते थे, क्योंकि उसके चोरी होने की संभावना ज्यादा होती है। इतनी पूंजी थी नहीं, कि अपने दम पर किसी देश से मुकाबला कर सके। आजादी के तीन दशक बाद एक शानदार गठजोड़ किया गया, उन्हीं अनुयायि‍यों ने नई आर्थिक नीति लागू की और विदेशी पूंजी और वस्तुओं को मंगाना शुरू किया, वो भी अइयाशी वाली वस्तुएं।
 
जब देश दिवाला हो गया और देश का सोना गिरवी रखना पड़ा, उसी समय डंकल अंकल पर समझौता हो गया। तब विपक्ष ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। उसी समय धार्मिक उन्माद की भी जरूरत पड़ी, अर्थात विरोध बहिष्कार तिरस्कारी ही व्यापारी होते हैं। आज देश के दुश्मन से मोस्ट नेशन का दर्जा छीना नहीं जा सका, जबकि यह सरकार के हाथ में है, सॉरी में भूल गई कि डंकल अंकल समझौते के अनुसार हम यह दर्जा नहीं छीन सकते। मतलब जब भी बहिष्कार होगा तभी देश में सबसे ज्यादा विदेशी व्यापार होगा सबसे ज्यादा समझौते होंगे।
 
भारत एक त्यौहारों वाला देश है, तब ऐसे सीजन में त्यौहारी वक्तव्यों का सीजन न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? यूं तो हमें किसी बात से गुरेज नहीं, लेकिन कोई अगर हमारे दुश्मन की तरफदारी करेगा, तो उसका बहिष्कार करना जरूरी है। हां बहिष्कार से व्यापार होना चाहिए, चाहे वह धर्म की चाशनी में ही क्यों न किया जाए अर्थात बहिष्कार तिरस्कार एक राजनीतिक व्यापार है।
 
आज विदेशी चीजों के बहिष्कार का मौसम है। यह भी बड़े मजेदार बात है कि भारत का बाजार विदेशी वस्तुओं से भरा पड़ा है।खादी पहने नेता लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रचार कर रहे हैं। विदेशी तकनीकी से ताकि घर में विदेशी वस्तुएं प्रयोग हो सके और बहिष्कार में स्वदेशी का गुणगान और पर्दे के पीछे व्यापार। बहिष्कार के लिए अंग्रेज बनने और बनाने की होड़ है, क्योंकि स्वदेशी के नाम पर अब हमारे पास है ही क्या? सबकुछ तो विदेशी है, जल, जंगल, जमीन सब कुछ तो बेच दिया है। कम से कम जो वस्तुएं बची हैं, उनके नाम पर तो बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापार बनता ही है। विदेशी वस्तुएं प्रयोग करने के लिए होती हैं और राजनीति के लिए बहिष्कारी। अब नेताओं को समझ में आ रहा है, कि विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करते हुए ही बहिष्कार करना है।
 
बहिष्कार जनता को नहीं करना है। यह काम नेताओं का है, क्योंकि वे लोग तो दिलो जान से स्वदेशी हैं। देखो न सदियों से अब तक सफेदपोश ही हैं, खादी पहन कर ही सारे समझौते विदेशी कंपनियों से हो सकते हैं। बहिष्कार करना स्वदेशी होने की निशानी है, लेकिन विदेशी कंपनियों से नित नए समझौते करना और लुभावने ऑफर देकर अपने यहां स्थापित करना, उससे बड़ा स्वदेशीपन है। अब कंपनी विदेशी माल स्वदेशी और स्वदेशी कंपनी और माल विदेशी तो बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापार आसानी से हो सकता है। इस तरह के बहिष्कार से ही हमारी अर्थव्यवस्था बहुत तेजी चलती और हां! बहिष्कार भी तो उन्हीं चीजों का करना है जिससे हर गरीब जुड़ा है और उनकी रोजी रोटी जुड़ी है। अइयाशी से जुडी वस्तुओं का बहिष्कार करना तो देश द्रोह है। इस बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापार ने ही नेताओं का देश प्रेम बचाया है। जनता के जिंदा रहने या न रहने सवाल इसके सामने कुछ भी नहीं।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Benefits of sugar free diet: 15 दिनों तक चीनी न खाने से शरीर पर पड़ता है यह असर, जानिए चौंकाने वाले फायदे

Vijayadashami essay 2025: विजयादशमी दशहरा पर पढ़ें रोचक और शानदार हिन्दी निबंध

जानिए नवरात्रि व्रत में खाया जाने वाला राजगिरा आटा क्यों है सबसे खास? जानिए इसके 7 प्रमुख लाभ

Navratri 2025: बेटी को दीजिए मां दुर्गा के ये सुंदर नाम, जीवन भर रहेगा माता का आशीर्वाद

Lactose Intolerance: दूध पीने के बाद क्या आपको भी होती है दिक्कत? लैक्टोज इनटॉलरेंस के हो सकते हैं लक्षण, जानिए कारण और उपचार

सभी देखें

नवीनतम

Bhagat Singh: इंकलाब जिंदाबाद के अमर संदेशवाहक: भगत सिंह पर सर्वश्रेष्ठ निबंध

28 सितंबर जयंती विशेष: शहीद-ए-आजम भगत सिंह: वो आवाज जो आज भी जिंदा है Bhagat Singh Jayanti

World Tourism Day 2025: आज विश्व पर्यटन दिवस, जानें इतिहास, महत्व और 2025 की थीम

Leh Ladakh Protest: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने और छठी अनुसूची में शामिल होने के बाद क्या होगा बदलाव

Leh Ladakh Protest: कैसे काम करता है सोनम वांगचुक का आइस स्तूप प्रोजेक्ट जिसने किया लद्दाख के जल संकट का समाधान

अगला लेख