Dharma Sangrah

भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय

अवधेश कुमार
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करने वाला था। जो पहले से राजनीतिक दुराग्रह और नकारात्मकता पाले हुए थे उन्हें छोड़ दें तो शायद ही कोई भारतीय, भले वह विश्व के किसी कोने में हो, पूरे कार्यक्रम के दौरान अपने अंदर रोमांच और स्फुलिंग का अनुभव नहीं किया होगा। आजादी के अमृत काल में भारत को स्वनिर्मित संसद भवन मिलना सबके लिए गर्व और उल्लास का विषय होना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा भी कि नए संसद भवन को देखकर हर भारतीय गौरवान्वित है क्योंकि इसमें विरासत और वास्तु कला व कौशल है तो संस्कृति के साथ संविधान के स्वर ही है। किसी राष्ट्र के कालखंड में ऐसे अवसर बार-बार नहीं आते। इसलिए राजनीति सहित समाज जीवन के हर क्षेत्र को आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ खड़ा होना चाहिए था। दुर्भाग्य है कि ऐसे मंगल अवसर पर भी विपक्ष के बड़े समूह ने बहिष्कार और अशोभनीय टिप्पणियों की नकारात्मकता प्रदर्शित की है। हालांकि बहिष्कार व विरोध करने वाले विपक्षी दलों के अंदर भी ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो मान रहे हैं कि यह एक बड़ी चूक है और उन्हें उद्घाटन समारोह में शामिल होना चाहिए था।

उद्घाटन समारोह में उपस्थित सांसदों, नेताओं की सूची देखी जाएगी तो उसमें वे नहीं होंगे। आप व्यक्तिगत बात करेंगे तो ऐसी पश्चाताप भरी भावना प्रकट करने वाले नेता मिल जाएंगे। परंतु बीता हुआ समय वापस नहीं लौटाया जा सकता। पुराने संसद भवन के योगदान को कोई नकार नहीं सकता। प्रधानमंत्री ने कहा कि पुराने भवन ने आजादी के बाद भारत की लोकतांत्रिक जरूरतों को पूरा किया और यह भवन 21वीं सदी के भारत के सपनों को पूरा करेगा। वास्तव में भारत का नया संसद भवन विश्व की उत्कृष्टतम शिल्पकला आर्किटेक्चर के साथ किसी भी विकसित देश के संसद भवन में उपलब्ध सहूलियतों- सुविधाओं, तकनीकों, सुरक्षा गजट, पर्यावरण अभी हर मानकों पर खरा उतरने वाला है प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में ही कहा कि सूर्य की रोशनी अभी भी अंदर आ रही है। इसके निर्माण के पहले भारत में उपलब्ध वास्तुकला के महान उदाहरण वाले भवनों तथा विश्व के श्रेष्ठ संसद भवन का अध्ययन करने के बाद इसका नक्शा तैयार किया गया था। 

इसी कारण यह ज्योतिष, खगोल, भारतीय वास्तु कला के साथ आधुनिक आर्किटेक्चर में समय का अन्यतम उदाहरण बन गया है। इसमें लोकसभा का आंतरिक हिस्सा राष्ट्रीय पक्षी मोर पर और राज्यसभा का राष्ट्रीय फूल कमल पर आधारित है। आधुनिक ऑडियो विजुअल तकनीक के साथ हर तरह के सुरक्षा गैजेट्स उपलब्ध है। सांसदों को उनकी सीट पर ही कोई भी रिपोर्ट उपलब्ध होने की व्यवस्था तो है ही संसद में अधिसूचित किसी भी भारतीय भाषा में बोलने के साथ उसका अंग्रेजी और हिंदी में भाषान्तरण होता रहेगा। इसमें सांसदों और कर्मियों की कार्य दक्षता बढ़ाने का पूरा ध्यान रखा गया है। सच है कि बहिष्कार और विरोध करने वाले सांसद भी इसके अंदर आकर महसूस करेंगे कि सहुलियतों और सुविधाओं के हिसाब से यह वाकई हर दृष्टि से उत्कृष्ट एवं उनके लिए हर दृष्टि से अनुकूल है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी देखरेख में राष्ट्रीय स्तर के जो भी निर्माण कराए उनमें देश के हर भाग का कोई न कोई योगदान हो इसका ध्यान रखा है। ऐसा ही संसद भवन के संदर्भ में भी है। जल,मिट्टी, पत्थर, बालू सहित भारत के अलग-अलग क्षेत्रों की विशेषताओं वाली उपलब्ध सामग्रियां उपयोग में लाई गई हैं। इस कारण इसका संस्कार संपूर्ण भारत की विविधता को समाहित किए हुए हैं। श्लोकों, उद्धरणों, जीवनियों एवं प्रसंगों के जगह-जगह विवरणों से यह भारतीय इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, अध्यात्म, कला, विज्ञान तकनीक आदि की महान विरासत से लेकर आधुनिकतम उपलब्धियां तक दर्शाने वाला भवन है।

इन सबके बीच अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित हजारों वर्षों की साधना और चिंतन से उद्भुत राजकाज में सर्व कल्याण एवं सर्वांगीण उन्नति संबंधी मंत्रों और कर्मकांड से अभिषिक्त पवित्र सेंगोल यानी राजदंड। यह इसका महत्व समझने वाले सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के हर एक सांसद को सदा अपने दायित्वों के प्रति सचिव करने वाला दंड है।

वास्तव में सेंगोल की पुनर्स्थापना ने नये संसद भवन को एक विशिष्ट स्थान ही नहीं महान अध्याय का वाहक बना दिया है। इसकी स्थापना को संपूर्ण विश्व ने देखा। श्इसे नरेंद्र मोदी का राज्याभिषेक बताने वालों को विचार करना चाहिए था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इन्हीं कर्मकांड विधियों से सेंगोल ग्रहण किया था। क्या वह पंडित नेहरू का राज्याभिषेक था? यह अलग बात है कि सेंगोल की महत्ता न समझ पाने के कारण उसके मूल स्थान सत्ता केंद्र की जगह पहले आनंद भवन भेज दिया गया जो बाद में इलाहाबाद संग्रहालय का भाग बना।

यह भारतीय परंपरा के अनुसार सत्ता हस्तांतरण के लिए सेंगोल का सुझाव देने वाले समर्थन करने वाले उस समय के हमारे महान नेताओं के साथ संपूर्ण भारत के साथ विश्वासघात था। तो 14 अगस्त, 1947 में जो राष्ट्रीय अन्याय हुआ उसका परिमार्जन नये संसद भवन में उसी पवित्र सेंगोल सिंगोल की उसी मठ के अधिनमों पुरोहितों के द्वारा उन्हीं कर्मकांडो के साथ किया गया है। इस दृष्टि से एक नये अध्याय की शुरुआत भारतीय राष्ट्र जीवन में हुआ है। इसे क्या नाम दिया जाए या देश तय करें। इसका उपहास उड़ाने वाले और विरोध करने वाले इस बात का उत्तर अवश्य दें कि पवित्र सेंगोल को सत्ता केंद्र में रखने के बजाय इलाहाबाद क्यों भेज दिया गया? भारत की अंत: शक्ति धर्म और अध्यात्म है। यही हमारी पहचान है।

इस तरह संपूर्ण विश्व ने उद्घाटन समारोह के साथ भारत की उस विशेषता को देखा। इसे ब्राह्मणवाद का नाम देने वाले नहीं जानते की अधिनम यानी पुरोहित पिछड़े एवं दलित वर्गों के ही थे। इस मायने में भी यह विश्व का अनोखा संसद भवन है जिसमें इसका निर्माण करने वाले श्रमिकों के योगदान एवं उनकी यादों को संजोने वाली गैलरी है। श्रमिकों के प्रति सम्मान अभिव्यक्ति का इससे श्रेष्ठ उदाहरण नहीं हो सकता । हमने देखा कि पंडितों से आशीर्वचन लेने के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने श्रमिकों का भी सम्मान किया।

राजनीति साधने वालों ये सारे सच दिखने चाहिए थे। हैरत की बात है कि पिछले दो दशकों से सभी पार्टियों ने पुरानी संसद भवन में बढ़ती समस्याओं को देखते हुए नए संसद भवन की मांग की लेकिन इसके निर्माण की योजना से लेकर उद्घाटन तक विरोध करते रहे। यह भारतीय राजनीति में ही संभश है। पुराना संसद भवन बाहर से निश्चय ही शानदार दिखता है किंतु अंदर की स्थिति ठीक उसके विपरीत है। जगह-जगह तारों के झुंड के साथ कंप्यूटर, इंटरनेट, एयर कंडीशनर आदि अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दीवारों में किलें ठुकीं मिल जाएंगी। एक समय तो इसके गुंबद के प्लास्टर और टाइल्स तक गिरने लगे थे जिनके लिए अलग से सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ी। अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी संसद भवन का विरोध कर रही थी जबकि स्वयं मुलायम सिंह यादव ने इसकी मांग की थी।

दरअसल, संसद भवन परिसर के अपने पार्टी कार्यालय में एक दिन वे भोजन कर रहे थे और ऊपर से छत से प्लास्टर गिर गया था। सन 2012 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कह दिया कि संसद भवन रो रहा है। उन्होंने नए संसद भवन के निर्माण के लिए एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया। यह बात अलग है कि डॉ मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार इसका साहस नहीं दिखा सकी। सन 2015 में  लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने शहरी विकास मंत्रालय को नए संसद भवन के निर्माण के लिए औपचारिक प्रस्ताव दिया। 2026 में परिसीमन के बाद सांसदों की संख्या बढ़ने की संभावना है और पुराने संसद भवन के दोनों सदनों में वर्तमान सदस्यों कोही ठीक-ठाक उपस्थिति में अपनी सीटों तक जाने में कठिनाइयां हो रही थी। इस तरह अपरिहार्य होते हुए भी जो कार्य पूर्व की सरकारें करने का साहस नहीं दिखा सकीं उसे नरेंद्र मोदी ने पूरा किया।
इस पृष्ठभूमि में नए संसद भवन के प्रति कांग्रेस की मानसिकता समझी जा सकती है। किंतु अन्य पार्टियां भी ऐसा करें यह समझ से परे है। पुराने संसद भवन को उपयुक्त एवं नए संसद भवन की आवश्यकता को नकारने वाले नेता भी जानते हैं कि आजादी के 7 वर्ष बाद ही 1956 में इसमें और मंजिले जोड़नी पड़ीं। 1975 में एनेक्सी का निर्माण हुआ तो 2002 में अपग्रेडेशन के साथ संसदीय पुस्तकालय भवन का जिसमें समिति कक्ष और सम्मेलन कक्ष के साथ सभागार बना और 2016 में एनेक्सी का भी विस्तार करना पड़ा।

सच यही है कि लुटियंस और बेकर के द्वारा 1927 में निर्मित और वायसराय इरविन द्वारा उद्घाटित संसद भवन के विस्तार और बदलाव की सीमाएं खत्म हो गई थी। वैसे भी अंग्रेजो के द्वारा अपने शासन की मानसिकता से बनाए गए संसद भवन और विकसित किए गए सेंट्रल विस्टा में आमूल परिवर्तन और नव निर्माण आजादी के बाद आजाद मानसिकता से किया ही जाना चाहिए था। नए संसद भवन के निर्माण के पहले हम युद्ध स्मारक, जॉर्ज पंचम की मूर्ति वाली कैनोपी पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापना तथा राजपथ को कर्तव्य पथ में परिणत होते देख चुके हैं। आगे पूरा सेंट्रल विस्टा कुछ ही समय में हमको नए रूप में दिखाई देगा।

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